
युद्ध की आग में जलते सीरिया में रूस की आर्मी क्या कर रही है, क्यों यूक्रेन से जंग के बीच ये देश भी हुआ हमलावर?
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रूस-यूक्रेन जंग के बीच रूस ने सीरिया पर भी बड़ा हवाई हमला किया. इसे उस अटैक की जवाबी कार्रवाई माना जा रहा है, जो सीरियाई विद्रोहियों ने रूस पर की थी. पुतिन की सेना मिडिल ईस्ट के इस देश में करीब 7 सालों से तैनात है और कथित तौर पर गृहयुद्ध की आग को बुझाने में मदद कर रही है. हालांकि सीरियाई जनता खुद रूस को वहां नहीं देखना चाहती.
रूस की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. हाल ही में उसने अपनी ही प्राइवेट आर्मी की बगावत देखी. यहां तक कि पुतिन का आसन तक हिलता दिखने लगा था. यूक्रेन लगभग डेढ़ सालों बाद भी अपनी जगह जमा हुआ है. इस बीच सीरिया भी ने सिर उठाना शुरू कर दिया. करीब एक सप्ताह पहले इस देश के बागियों ने रूस पर ड्रोन अटैक किया था. सीरियाई लोगों में रूस के खिलाफ गुस्सा है, जिसकी वजह है पुतिन की आर्मी, जो उनके यहां सालों से जमी हुई है.
सबसे पहले ताजा मामला देखते चलें इसी रविवार को रूस ने उत्तर पश्चिमी सीरिया के विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाके में एयर स्ट्राइक की. हमले में 10 से ज्यादा मौतें हुईं, जबकि बहुत से लोग घायल हो गए. सीरिया में बगावत करने वालों ने हमले को नरसंहार माना, जबकि वहां की सरकार ने इसपर कोई ऑफिशियल बयान नहीं दिया. रूस सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद का सपोर्ट करता है और उन्हें तख्तापलट से बचाने के लिए सालों से वहां सेना जमा कर रखी है.
कैसे शुरू हुआ सीरिया में वॉर
साल 2011 की शुरुआत थी, जब सीरिया में गृहयुद्ध छिड़ गया. यहां के लोग मौजूदा सत्ता से चिढ़े हुए थे. देश में भारी महंगाई और करप्शन था. वे चाहते थे कि सत्ता पलटे और उनकी पसंद की सरकार बने. राष्ट्रपति बशर असद से पहले पद छोड़ने की मांग हुई और फिर मामला सड़कों तक आ गया. असद को ये असहमति पसंद नहीं आई और उन्होंने लोगों को दबाना शुरू कर दिया. यहीं से प्रदर्शन हिंसा में बदला और देश सिविल वॉर की चपेट में आ गया.
शक्तिशाली मुल्क बीच में कूद पड़े
मामला यहीं तक रहता तो भी शायद ठीक था. लेकिन जैसा कि दस्तूर है, ये मौका ताकतवर देशों के लिए अपनी जोर-आजमाइश का था. वे भी लड़ाई में कूद पड़े. कोई इस, तो कोई उस पाले का सपोर्ट करने लगा. अमेरिका यहां था इसलिए जाहिर है कि रूस भी होगा. सितंबर 2015 में रशियन फेडरेशन ने फॉर्मल तरीके से सीरियाई वॉर में दखल दिया और असद का समर्थन करने लगा. दूसरे देश हथियारों और पैसों से मदद कर रहे थे, जबकि रूस ने सीधे अपनी सेना ही वहां तैनात कर दी.

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