'यादव लैंड' में क्या BJP को पटखनी दे सकेंगे अखिलेश, जानिए यूपी में तीसरे चरण की 10 सीटों का समीकरण
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यूपी में तीसरे चरण के लिए वोटिंग 7 मई को होनी है. समाजवादी पार्टी के लिए इन सीटों को जीतना इस बार डू ऑर डाई जैसा है. क्योंकि अगर एक बार फिर ये क्षेत्र हाथ से निकल गया तो यहां बीजेपी स्थापित हो जाएगी.
उत्तर प्रदेश में 7 मई को लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण के लिए वोटिंग होनी है. सभी की निगाहें ब्रज और रुहेलखंड क्षेत्रों पर हैं. कोर वोटर्स के लिहाज से देखा जाए तो ये चुनाव क्षेत्र समाजवादी पार्टी का गढ़ है. यादव-मुस्लिम बहुलता वाली इन 10 सीटों को इसलिए ही 'यादव लैंड' के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि पिछले 2 चुनाव से अपने इस खास मैदान में अखिलेश यादव और उनकी पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है. इस बार के लोकसभा चुनावों में भी अगर समाजवादी पार्टी यहां की सीटों पर जीत का परचम नहीं लहरा पाती है तो हमेशा के लिए जमीन खोने का डर रहेगा.
समाजवादी पार्टी के लिए इन सीटों पर सबसे मजबूत समीकरण
एटा, फ़िरोज़ाबाद, मैनपुरी, बदायूँ और संभल जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में, यादव मतदाताओं का बाहुल्य है. जो सैफई परिवार (मुलायम सिंह यादव परिवार) के लिए समर्पित रहे हैं. इसके साथ ही संभल, आंवला, फ़तेहपुर सीकरी, आगरा और फ़िरोज़ाबाद में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. संभल में 50 फीसदी तो बरेली में 33 33 फीसदी आबादी मुस्लिम है. 2014 के चुनावों में सपा ने यहां केवल पांच सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की थी. आजमगढ़ और मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव जीते. कन्नौज से डिंपल यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव और बदायूं से धर्मेंद्र यादव. मुलायम सिंह यादव द्वारा मैनपुरी लोकसभा सीट छोड़ने के बाद इसपर हुए लोकसभा उपचुनाव में सपा के तेज प्रताप सिंह यादव उर्फ तेजू चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.
पर 2019 के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को यहां बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. ये यादव लैंड में समाजवादी पार्टी का अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन था. इस चुनाव में मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव और आजमगढ़ से अखिलेश यादव और संभल से शफीकुरहमान बर्क ही चुनाव जीत सके थे. राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह अन्य पिछड़ी जातियां भाजपा की ओर एकजुट हुईं उससे सपा को विजय दिलाने वाला मुस्लिम-यादव समीकरण का प्रभाव कम हुआ.
मुलायम की कमी खलेगी
समाजवादी पार्टी पहली बार लोकसभा चुनावों में बिना मुलायम सिंह के चुनाव मैदान में है. शायद इसलिए भी अखिलेश यादव के लिए यह कड़ी परीक्षा है. सपा के गठन के बाद से अब तक जितने भी चुनाव हुए, उसमें मुलायम की बड़ी भूमिका रहती थी. यूपी में विपक्षी गठबंधन को अखिलेश लीड कर रहे हैं. पिछले दो लोकसभा चुनावों और 2 विधानसभा चुनावों में सपा कुछ खास नहीं कर पाई है. जमीन से जुड़े नेता होने के कारण ही मुलायम को धरती पुत्र कहा जाता रहा है. वह पार्टी को यादवों की पार्टी बनाने के साथ ही पिछड़े वर्ग की पार्टी भी बनाए रखे. यह इसलिए संभव हो सका कि पिछड़े वर्ग के नेताओं से उनका सामंजस्य बेहतर बनाए रखा. इटावा, मैनपुरी, कन्नौज में यादव बहुल सीट पर मजबूत एमवाई समीकरण के कारण वह हमेशा मैदान में बाजी मारते रहे. यादव के आलवा दूसरी प्रभावशाली पिछड़ी जातियों पर पकड़ से वह हमेशा आगे रहे.अखिलेश की राजनीति में कभी कभी ऐसा लगता है कि पार्टी के कोर वोटर्स यादव और मुसलमान भी न उनका साथ छोड़ दें. आज अखिलेश के साथ आजम खान कितना हैं, ये भी समझ में नहीं आता. ओमप्रकाश राजभर, संजय निषाद, जयंद चौधरी ,दारा सिंह चौहान, केशव देव मौर्य आदि साथ छोड़ चुके हैं. अपना दल कमेरावादी से भी उनका संबंध खराब हो चुका है.
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