मुख्तार अंसारी के बाद अब जानी दुश्मन बृजेश सिंह भी यूपी सदन में नहीं दिखेंगे
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उत्तर प्रदेश विधानसभा में बाहुबली मुख्तार अंसारी ढाई दशक तक विधायक रहे, लेकिन इस बार चुनाव नहीं लड़े. इसी तरह से मुख्तार के जानी दुश्मन माफिया बृजेश सिंह भी यूपी की सदन में नजर नहीं आएंगे, क्योंकि इस बार एमएलसी चुनाव में उन्होंने खुद लड़ने के बजाय अपनी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह को उतारा है.
उत्तर प्रदेश विधानसभा से बाहुबली मुख्तार अंसारी के बाहर होने के बाद अब उनके जानी दुश्मन माफिया बृजेश सिंह भी सदन में नजर नहीं आएंगे. वाराणसी-चंदौली-भदोही स्थानीय निकाय की विधान परिषद सीट पर एमएलसी बृजेश सिंह ने खुद चुनाव मैदान में उतरने के बजाय अपनी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह को निर्दलीय उतार रखा है. बृजेश सिंह की पत्नी का मुकाबाला बीजेपी के डॉ. सुदामा पटेल और सपा के उमेश यादव से हैं. ऐसे में यह एमएलसी सीट पूर्वांचल की सबसे हॉट सीट बनी हुई है, जहां पर त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है.
वाराणसी-चंदौली-भदोही स्थानीय निकाय की एमएलसी सीट पर माफिया बृजेश सिंह के परिवार यानि कपसेठी हाउस का दो दशक से सियासी वर्चस्व कायम है. पिछली बार 2016 के एमएलसी चुनाव में इसी सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर बृजेश सिंह खुद मैदान में उतरे थे, जिन्हें बीजेपी ने वाकओवर देते हुए अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था. बृजेश सिंह सपा की मीना सिंह को हराकर एमएलसी बने थे.
वाराणसी एमएलसी सीट पर साल 1998 में बृजेश सिंह के भाई उदयनाथ सिंह ने पहली बार जीत हासिल की थी. उन्होंने 2004 का चुनाव भी जीता था. दोनों ही बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीतकर सदन पहुंचे थे. उदयनाथ सिंह के निधन के बाद साल 2010 के चुनाव में बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी और जीतकर एमएलसी बनी. हालांकि, बाद में उन्हें बसपा से निकाल दिया गया था और 2016 में बृजेश सिंह निर्दलीय एमएलसी बने थे.
पांच साल एमएलसी रहने के बाद बृजेश सिंह ने इस बार भी वाराणसी सीट से अपना नामांकन दाखिल किया था, पर साथ ही अपनी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह को भी निर्दलीय उतार रखा था. ऐसे में बृजेश सिंह ने अपना नामांकन वापस ले लिया है तो उनकी पत्नी ही मैदान में है. ऐसे में बीजेपी ने डॉ सुदामा पटेल को अपना प्रत्याशी बनाकर मुकाबले को रोचक बनी दिया है, जहां पर अब बीजेपी के लिए भी यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है.
बता दें कि पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह के बीच अदावत जगजाहिर है, दोनों ही एक दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं. अपराध की दुनिया में कदम रखने के बाद मुख्तार अंसारी 1996 से लगातार मार्च 2022 तक विधानसभा सदस्य रहे थे. 2017 में योगी सरकार के आने के बाद मुख्तार अंसारी पर कानूनी शिकंजा जमकर कसा है. इस बार मुख्तार ने खुद चुनाव लड़ने के बजाय अपने बेटे अब्बास अंसारी को उतारा था. वह जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. ऐसे में ढाई दशक में पहली बार है जब मुख्तार अंसारी विधानसभा सदन नहीं पहुंच सके.
माफिया बृजेश सिंह और मुख्तार की अदावत नब्बे के दशक में शुरू हुई और दोनों ही एक के दूसरे खून के प्यासे हो गए थे. रंजिश के चलते दोनों ही गैंगों का कई बार आमना-सामना हुआ. ऐसे में बृजेश सिंह का नाम अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के साथ जुड़ने के बाद लंबे समय तक वह अंडरग्राउंड रहे. 24 सालों तक गायब रहने के बाद बृजेश सिंह को साल 2008 में दिल्ली स्पेशल पुलिस ने गिरफ्तार किया. यूपी की जेल में रहते हुए बृजेश सिंह ने सियासत में कदम रखा और 2012 के विधानसभा चुनाव में चंदौली की सैयदराजा सीट से किस्मत आजमाया, लेकिन जीत नहीं सके.
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