महाराष्ट्र पंचायत चुनाव के नतीजों ने शिंदे-फडणवीस-पवार और उद्धव का भविष्य बता दिया
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महाराष्ट्र पंचायत चुनाव के नतीजे किसी भी प्री-पोल सर्वे जितना ही मायने रखते हैं. ज्यादा कुछ नहीं तो ये महाराष्ट्र में आगे का सियासी रोड मैप जरूर दिखा रहे हैं - और ये भी बता रहे हैं कि बीजेपी और उसके सहयोगियों के साथ साथ उद्धव ठाकरे का भविष्य कैसा रहने वाला है?
लोक सभा चुनाव 2024 के ठीक पहले महाराष्ट्र पंचायत चुनाव के नतीजे सभी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं - एकनाथ शिंदे के लिए भी, देवेंद्र फडणवीस के लिए भी, अजित पवार के लिए भी और बची खुची शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे के राजनीतिक भविष्य के हिसाब से भी.
ये नतीजे किसी प्री-पोल सर्वे जैसे ही हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से ये ज्यादा मायने रखते हैं. सर्वे में कुछ सैंपल के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं, लेकिन इसमें सबकी हिस्सेदारी होती है. वे सभी लोग वोट देते हैं, जो बाकी चुनावों में भी वोट देते हैं.
चूंकि पंचायत चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार राजनीतिक दलों का सिंबल नहीं लिये होते हैं, इसलिए ठीक ठीक आकलन करना थोड़ा मुश्किल होता है. ऐसे चुनावों में अकेले उम्मीदवार या पैनल चुनाव लड़ते हैं, लेकिन उनके सपोर्ट में उनकी पसंदीदा पार्टी काडर भी लगा होता है. ऐसे चुनावों में राजनीतिक दलों के लिए कुछ भी दावे कर डालने की भी पूरी गुंजाइश होती है - और ऐसा भी देखने को मिलता है कि जीत जाने के बाद चुने हुए प्रतिनिधि सत्ताधारी पार्टी के साथ खड़े हो जाते हैं.
6 नवंबर, 2023 की शाम तक करीब दो तिहाई सीटों के नतीजे आ चुके हैं. 2359 ग्राम पंचायतों के लिए 74 फीसदी मतदान हुए थे, और 1600 से ज्यादा सीटों पर जीते हुए उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है. बीजेपी का दावा है कि 650 सीटें जीत कर वो सबसे आगे खड़ी है. बीजेपी के बाद उसके सहयोगी शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी के बागी अजित पवार के गुट का नंबर बताया जा रहा है.
उद्धव ठाकरे की ही तरह शरद पवार के लिए भी अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार के नेतृत्व वाला एनसीपी के बागी गुट प्रदर्शन बेहतर दर्ज किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, बारामती तालुका में घोषित किये गये 28 ग्राम पंचायतों के नतीजों में 26 के सरपंच पद पर अजित पवार गुट ने कब्जा कर लिया है - और खास बात है कि वहां के दो सरपंच बीजेपी के समर्थन वाले चुनाव जीते हैं. मतलब, शरद पवार के पास बची एनसीपी बारामती में ही मैदान से बाहर हो चुकी है.
पंचायत चुनावों की ही तरह अगर बीएमसी के चुनाव भी हो गये होते तो ज्यादा सही तस्वीर देखने को मिलती. बीएमसी के नतीजे शहरी मतदाता का मूड बताते तो पंचायत चुनाव रिजल्ट ग्रामीण वोटर का रुझान - फिर भी पंचायत चुनाव के नतीजों से ये समझना थोड़ा आसान तो हो ही सकता है कि आम चुनाव में कौन कितने पानी में रहने वाला है.
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