ममता कुलकर्णी बनीं महामंडलेश्वर तो हंगामा क्यों... सनातन में हैं गणिका, अजामिल, आम्रपाली जैसे कई उदाहरण
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सनातन सभी को सभी में समाहित करने की बात करता है. यह पंथ, मत, मान्यताओं से परे है. सनातन में जो सबसे बड़ी अवधारणा है, वह है अवसर देना. इस 'अवसर' की व्याख्या बहुत बड़ी है. साधारण शब्दों में इसे समझें तो, सनातन कहता है कि अगर पाप करने वाला कोई व्यक्ति यह समझ लेता है कि उसने जो किया वह पाप है और वह वास्तव में उसका पश्चाताप करता है तो उसे नया 'अवसर' जरूर देना चाहिए.
अभिनेत्री रहीं ममता कुलकर्णी बीते दिनों काफी चर्चा में रहीं. दरअसल प्रयागराज महाकुंभ में ममता कुलकर्णी ने पूरी रीति से किन्नर अखाड़े में दीक्षा ली और फिर अखाड़े ने हाथों-हाथ उन्हें महामंडलेश्वर बना दिया. उन्होंने पिंडदान किया, संगम में स्नान किया, फिर उनका पट्टाभिषेक हुआ और वह महामंडलेश्वर बना दी गईं. ममता कुलकर्णी के महामंडलेश्वर बनते ही कई तरह के सवाल उठने लगे.
सवाल ये कि क्या ममता कुलकर्णी किन्नर अखाड़े से दीक्षा ले सकती हैं? सवाल ये भी कि क्या ममता कुलकर्णी की दीक्षा असल मायने में कोई महत्व रखती है? इसी के साथ उनके पुराने गाने और वीडियो भी ट्रेंडिंग में आ गए थे. सवाल ये भी कि क्या महामंडलेश्वर बनने या बनाने के लिए किसी तरह की योग्यता की परख नहीं होनी चाहिए? चूंकि ममता कुलकर्णी सिर्फ अभिनेत्री नहीं हैं, उनके गैंगस्टर्स से संबंध रहे हैं और वो इस सिलसिले में देश से बाहर भी रहीं, इसलिए भी ये सवाल गंभीर थे.
सभी को समाहित करने की बात करता है सनातन दरअसल सनातन सभी को सभी में समाहित करने की बात करता है. यह पंथ, मत, मान्यताओं से परे है. सनातन में जो सबसे बड़ी अवधारणा है, वह है अवसर देना. इस 'अवसर' की व्याख्या बहुत बड़ी है. साधारण शब्दों में इसे समझें तो, सनातन कहता है कि अगर पाप करने वाला कोई व्यक्ति यह समझ लेता है कि उसने जो किया वह पाप है और वह वास्तव में उसका पश्चाताप करता है तो उसे नया 'अवसर' जरूर देना चाहिए.
'अवसर' दिए जाने की बात है सनातन की सबसे बड़ी खूबसूरती अवसरों के मामले में सनातन बेहद लचीला है, वह एक के बाद एक कई अवसर देता है. इसे कहानियों में देखा जाए तो दैत्य हिरण्यकश्यप के उदाहरण से समझा जा सकता है. प्रह्लाद को मारने के लिए उसने कई प्रयास किए. इनमें से वह एक में भी सफल नहीं हो सका, लेकिन हर एक प्रयास के बाद उसे सत्य को समझ लेने का अवसर दिया गया. आखिर में भी वह नहीं समझा और इसकी सीमा बहुत बढ़ गई, तब नृसिंह अवतार में उसका वध हुआ.
शिशुपाल को भी मिले 100 बार सुधरने के मौके इसी तरह शिशुपाल के उदाहरण से भी समझा जा सकता है. श्रीकृष्ण उसकी 100 भूलों को क्षमा करते रहे, लेकिन जब वह 101 पर आ गया, तब कृष्ण ने उसका वध कर दिया. ये 'अवसर' ही सनातन की खूबसूरती है. अवसर की इस खूबसूरती का एक रहस्य यह भी है कि, ये अवसर सिर्फ एक जन्म तक ही नहीं रहते हैं, बल्कि इनका सिलसिला जन्म-जन्मांतरों तक चलता है. सीधा अर्थ है कि सनातन का संबंध शरीर से नहीं है, बल्कि आत्मा से है. यह आत्मा को शुद्ध कर देने का माध्यम है.
क्या कहता है छान्दोग्य उपनिषद? छान्दोग्य उपनिषद में दर्ज है कि ।।विकारावर्ति च तथा हि स्थितिमाह।। इस सूक्ति का अर्थ है 'जन्म और मृत्यु के विकारों से रहित आत्मा, जो कि अंत में खुद ब्रह्म हो जाती है और ब्रह्म में ही स्थित रहती है.' उपनिषद की यह सूक्ति हर प्रकार से आत्मा की शुचिता और शुद्धि की बात करती है. यह शुचिता और शुद्धि एक जन्म में नहीं आती, कई बार इसके लिए कई जन्म लगते हैं और सनातन कई जन्मों तक इन अवसरों को देता है.
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सनातन सभी को सभी में समाहित करने की बात करता है. यह पंथ, मत, मान्यताओं से परे है. सनातन में जो सबसे बड़ी अवधारणा है, वह है अवसर देना. इस 'अवसर' की व्याख्या बहुत बड़ी है. साधारण शब्दों में इसे समझें तो, सनातन कहता है कि अगर पाप करने वाला कोई व्यक्ति यह समझ लेता है कि उसने जो किया वह पाप है और वह वास्तव में उसका पश्चाताप करता है तो उसे नया 'अवसर' जरूर देना चाहिए.
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