मधुबनी हत्याकांड: कहीं बिहार में 'जातीय संघर्ष' की दूसरी आहट तो नहीं?
AajTak
मधुबनी जिले के बेनीपट्टी के महमदपुर गांव में होली के मौके पर रक्त चरित्र की पटकथा लिखी गई, उसके बाद एक बार फिर बिहार में जातीय संघर्ष शुरू होने की आशंका जताई जा रही है. घटना के एक सप्ताह के बाद भी महमदपुर में तनाव की स्थिति बरकरार है. जिस जाति के लोगों की निर्मम हत्या की गई है, उसी समाज के ज्यादातर राजनेताओं का गांव में रोजाना आना जाना लगा रहता है.
बिहार के मधुबनी में होली के दिन एक ही जाति के 5 लोगों की निर्मम हत्या के बाद से ही प्रदेश की राजनीति में भी उबाल आ गया है. मधुबनी जिले के बेनीपट्टी के महमदपुर गांव में होली के मौके पर रक्त चरित्र की पटकथा लिखी गई उसके बाद एक बार फिर बिहार में जातीय संघर्ष शुरू होने की आशंका जताई जा रही है. घटना के एक सप्ताह के बाद भी महमदपुर में तनाव की स्थिति बरकरार है. जिस जाति के लोगों की निर्मम हत्या की गई है उसी समाज के ज्यादातर राजनेताओं का गांव में रोजाना आना जाना लगा रहता है.हैरानी की बात यह है कि विपक्ष के साथ-साथ, सरकार के नुमाइंदे भी नीतीश कुमार के सुशासन पर सवाल खड़े कर रहे हैं. महमदपुर में घटना के 1 सप्ताह के बाद किस तरीके के हालात है इसका जायजा लेने के लिए आजतक की टीम ने गांव का दौरा किया. इस जघन्य हत्याकांड को लेकर पीड़ित परिवार से लेकर उसी जाति के नेताओं के अंदर आक्रोश साफ देखा जा सकता है.एक तरफ जहां पीड़ित परिवार इस बात को लेकर आक्रोशित हैं कि उनके परिवार के लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई वहीं दूसरी तरफ उसी समाज के राजनेता अपनी राजनीति को चमकाने के लिए पीड़ित परिवार से मिल रहे हैं और न्याय का भरोसा दिला रहे हैं. घटना में मारे गए महंत चंदेश्वर नारायण सिंह के भाई सूरज नारायण सिंह ने कहा, “हम लोगों को न्याय चाहिए. हमारे परिवार के लोगों की हत्या हुई है और इस पूरे मामले में पुलिस और आरोपियों की मिलीभगत है. इस पूरे घटना में पुलिस की लापरवाही साफ नजर आती है क्योंकि घटना के 3 घंटे के बाद पुलिस मौके पर पहुंची.”6 महीने पहले तालाब में मछली मारने को लेकर गैबीपुर गांव के दबंगों और महमदपुर गांव के पीड़ित परिवार के बीच जो विवाद शुरू हुआ था उसका इतना रक्त रंजित अंत होगा यह किसी ने भी नहीं सोचा था. आजतक की टीम ने गैबीपुर और महमदपुर गांव के बीच बने उस तालाब का भी जायजा लिया जहां पर नवंबर के महीने में मछली मारने को लेकर विवाद शुरू हुआ था.इस विवाद में महमदपुर गांव के संजय सिंह और गैबीपुर गांव के मुकेश साफी ने एक दूसरे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी. एक तरफ जहां संजय सिंह ने गैबीपुर गांव के प्रवीण झा समेत गांव के अन्य लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी वहीं मुकेश साफी ने संजय सिंह समेत महमदपुर गांव के अन्य लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी. संजय सिंह इस मामले में फिलहाल जेल में बंद है. आरोप है कि होली के दिन प्रवीण झा ने हथियारों से लैस अपने 30-40 समर्थकों के साथ महमदपुर गांव पर हमला बोल दिया और हत्याकांड को अंजाम दिया. इस घटना में 2 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि तीन अन्य की इलाज के दौरान अस्पताल में दम तोड़ दिया.पुलिस ने फिलहाल इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करके 35 में से 10 नामजद अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया है, मगर मुख्य आरोपी प्रवीण झा अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है. इस बात की आशंका जताई जा रही है कि प्रवीण झा अपने अन्य साथियों के साथ नेपाल फरार हो चुका है. इस हत्याकांड को लेकर सबसे पहले नीतीश कुमार सरकार में वन एवं पर्यावरण विभाग के मंत्री नीरज कुमार बबलू ने अपनी आवाज उठाई और इसे नरसंहार करार दिया.मंत्री नीरज कुमार बबलू ने बिहार पुलिस को निकम्मा बताया और इस पूरे हत्याकांड में पुलिस और आरोपियों की मिलीभगत की बात भी कही. रविवार को पीड़ित परिवार से मिलने के लिए नीतीश सरकार में पूर्व मंत्री और जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता जय कुमार सिंह, पूर्व विधायक मनजीत सिंह समेत जदयू नेता शैलेंद्र कुमार सिंह और डॉ. सुनील कुमार सिंह पहुंचे. इस हत्याकांड को लेकर जय कुमार सिंह ने भी नीतीश कुमार के सुशासन पर हमला बोला.मणिपुर हिंसा को लेकर देश के पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम खुद अपनी पार्टी में ही घिर गए हैं. उन्होंने मणिपुर हिंसा को लेकर एक ट्वीट किया था. स्थानीय कांग्रेस इकाई के विरोध के चलते उन्हें ट्वीट भी डिलीट करना पड़ा. आइये देखते हैं कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व क्या मणिपुर की हालिया परिस्थितियों को समझ नहीं पा रहा है?
महाराष्ट्र में तमाम सियासत के बीच जनता ने अपना फैसला ईवीएम मशीन में कैद कर दिया है. कौन महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री होगा इसका फैसला जल्द होगा. लेकिन गुरुवार की वोटिंग को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा जनता के बीच चुनाव को लेकर उत्साह की है. जहां वोंटिग प्रतिशत में कई साल के रिकॉर्ड टूट गए. अब ये शिंदे सरकार का समर्थन है या फिर सरकार के खिलाफ नाराजगी.