भारत की 'अग्निपथ' का नेपाल में विरोध क्यों? जानें भारतीय सेना में क्यों भर्ती होते हैं गोरखा सैनिक
AajTak
अग्निपथ योजना को लेकर नेपाल में भी विवाद शुरू हो गया है. अग्निपथ योजना के तहत नेपाल के युवाओं की भर्ती के लिए भारतीय सेना की रैली टल गई है. 1947 में हुए एक समझौते के तहत, भारतीय सेना में नेपाल के गोरखा सैनिकों को भर्ती किया जाता है. भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की संख्या 40 हजार है.
चार साल के लिए सेना में भर्ती के लिए लाई गई केंद्र सरकार की 'अग्निपथ' योजना को लेकर नेपाल में भी विवाद शुरू हो गया है. नेपाल में विपक्षी पार्टियां अग्निपथ योजना का विरोध कर रहीं हैं. जैसी चिंता भारत में थी, वैसी ही वहां भी जताई जा रही है. विरोध करने वालों का कहना है कि चार साल बाद ये युवा क्या करेंगे?
अग्निपथ योजना के तहत ही नेपाली युवाओं को भी सेना में भर्ती किया जाना है. आजादी के बाद यूके, नेपाल और भारत में हुए एक समझौते के तहत नेपाली गोरखाओं को भारतीय और ब्रिटिश सेना में भर्ती किया जाता है.
नेपाली युवाओं की भर्ती के लिए सेना भर्ती रैली करने वाली थी, लेकिन नेपाल सरकार की ओर से जवाब नहीं आने के बाद इस रैली को रद्द कर दिया गया.
इस पूरे मामले पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि लंबे समय से गोरखा सैनिकों को भारतीय सेना में भर्ती किया जा रहा है और अग्निपथ योजना के तहत गोरखा सैनिकों को भर्ती किया जाएगा.
अग्निपथ योजना का ऐलान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 14 जून को किया था. इस योजना के तहत साढ़े 17 साल से 21 साल के युवाओं को चार साल के लिए तीनों सेनाओं में भर्ती किया जाएगा. इन युवाओं को 'अग्निवीर' कहा जाएगा. इस साल 46 हजार अग्निवीरों की भर्ती होनी है. चार साल बाद इनमें से 25% को सेना में शामिल किया जाएगा, जबकि बाकी के 75% अग्निवीरों को सेवा मुक्त कर दिया जाएगा. चार साल बाद सेवा से मुक्त हुए अग्निवीरों को कोई पेंशन नहीं मिलेगी.
नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़के ने बुधवार को भारत के राजदूत नवीन श्रीवास्तव से मुलाकात कर भर्ती रैली टालने की अपील की थी. नेपाली गोरखाओं की भर्ती के लिए 25 अगस्त से रैली होनी थी.
मणिपुर हिंसा को लेकर देश के पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम खुद अपनी पार्टी में ही घिर गए हैं. उन्होंने मणिपुर हिंसा को लेकर एक ट्वीट किया था. स्थानीय कांग्रेस इकाई के विरोध के चलते उन्हें ट्वीट भी डिलीट करना पड़ा. आइये देखते हैं कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व क्या मणिपुर की हालिया परिस्थितियों को समझ नहीं पा रहा है?
महाराष्ट्र में तमाम सियासत के बीच जनता ने अपना फैसला ईवीएम मशीन में कैद कर दिया है. कौन महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री होगा इसका फैसला जल्द होगा. लेकिन गुरुवार की वोटिंग को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा जनता के बीच चुनाव को लेकर उत्साह की है. जहां वोंटिग प्रतिशत में कई साल के रिकॉर्ड टूट गए. अब ये शिंदे सरकार का समर्थन है या फिर सरकार के खिलाफ नाराजगी.