बीजेपी, सपा, बसपा, कांग्रेस... यूपी निकाय चुनाव में 4 बड़ी पार्टियों का क्या-क्या दांव पर है?
AajTak
उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव का ऐलान होते ही सियासी तपिश बढ़ गई है. सूबे में निकाय चुनाव को 2024 का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है. ऐसे में सूबे की चार प्रमुख पार्टियों की साख दांव पर लगी है. बीजेपी से लेकर सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए यह चुनाव काफी अहम माना जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव की आखिरकार घोषणा हो गई है. दो चरणों में 4 मई और 11 मई को मतदान होंगे जबकि नतीजे 13 मई को घोषित किए जाएंगे. नगर निकाय चुनाव के बाद सीधे लोकसभा के चुनाव होने हैं, जिसके चलते इसे 2024 का सेमीफाइल माना जा रहा है. सत्ताधारी बीजेपी से लेकर विपक्षी दल सपा, बसपा, कांग्रेस सहित सभी सियासी पार्टियों की प्रतिष्ठा इससे जुड़ी हुई है. ऐसे में सवाल उठता है कि शहरी निकाय चुनाव में किस दल का क्या दांव पर लगा है?
बता दें कि उत्तर प्रदेश की 762 नगरीय निकाय में से 760 निकायों में चुनाव हो रहे हैं, जिसमें नगर निगम महापौर, नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष की सीटें शामिल हैं. इसके अलावा करीब 13 हजार वार्ड पार्षद पद के लिए भी चुनाव हो रहे हैं. इसके लिए सीटों के आरक्षण की लिस्ट भी बकायदा जारी कर दी गई है और चुनावी घोषणा के साथ अब सियासी दलों के लिए अग्निपरीक्षा की घड़ी है.
बीजेपी की प्रतिष्ठा सबसे ज्यादा दांव पर नगर निकाय चुनाव में सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा बीजेपी की दांव पर लगी है. बीजेपी नगर निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती रही है और सरकार में रहते हुए उस पर बड़ा दबाव है. बीजेपी ने पिछले नगर निगम चानाव में बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन नगर पालिका और नगर पंचायत में पिछड़ गई थी. बीजेपी को सपा और निर्दलीयों ने कड़ी टक्कर दी थी. नगर पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी से दो गुना ज्यादा निर्दलीय जीते थे. इस बार सपा और बसपा ने विधानसभा चुनाव के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी थी, जिसके चलते बीजेपी की चुनौती बढ़ गई है.
2017 के चुनाव में बीजेपी 16 में से 14 नगर निगम में अपना मेयर बनाने में कामयाब रही थी. मेरठ और अलीगढ़ में बसपा के मेयर बने थे. इस बार शाहजहांपुर नया नगर निगम बना है, जिसकी वजह से 17 नगर निगम सीटों पर मेयर चुनाव हो रहे हैं. बीजेपी सभी 17 नगर निगम में अपना मेयर बनाने का प्लान बनाया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर डिप्टीसीएम तक की रैली की रूपरेखा बनाई गई है.
बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा चुनौती नगर पालिका और नगर पंचायत सीटों पर जीत दर्ज करने की है, क्योंकि पिछली बार भी इन सीटों पर प्रदर्शन अच्छा नहीं था. खासकर मुस्लिम बहुल सीटें चुनौती बनी हुई हैं, लेकिन पार्टी इस बार कुछ मुस्लिमों को चुनावी मैदान में उतारने का दांव चल सकती है. बीजेपी की महिला मोर्चा टीम जिला स्तर पर महिलाओं के लिए 'सहभोज' का आयोजन शुरू कर रही है, जिसे निकाय चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा. सहभोज में दलित महिलाओं को खास तौर कर बुलाया गया है. लाभार्थी महिलाओं को जोड़ने का खास तौर पर लक्ष्य रखा गया है, क्योंकि निकाय चुनाव में 37 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं.
सपा के लिए क्यों अहम निकाय चुनाव उत्तर प्रदेश की सियासत में सपा 2022 विधानसभा चुनाव के बाद अब निकाय चुनाव में बीजेपी के विकल्प के रूप में बनाए रखना चाहती है. पिछले चुनाव में सपा एक भी मेयर सीट नहीं जीत सकी थी जबकि नगर पालिका और नगर पंचायत के चेयरमैन जरूर बनाने में सफल रही थी. सपा ने निकाय चुनाव की तैयारी काफी पहले ही शुरू कर दी थी और उसके लिए पर्यवेक्षक भी नियुक्त कर दिए थे. सपा इस बार निकाय चुनाव में नए राजनीतिक समीकरण के साथ उतर रही है. यादव-मुस्लिम के साथ दलित कैंबिनेशन बनाने की कवायद में अखिलेश यादव जुटे हुए हैं, क्योंकि उन्हें शहरी क्षेत्र का सियासी समीकरण बेहतर तरीके से पता है.
129वां संविधान संशोधन विधेयक 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू करने के उद्देश्य से लाया गया है. यह बिल न सिर्फ संसद में, बल्कि सुप्रीम कोर्ट में भी संवैधानिक और कानूनी परीक्षा से गुजरेगा. इस बिल की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह संवैधानिक ढांचे, संघीय ढांचे और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर कितना खरा उतरता है.
अमित शाह ने कहा, 'ये लोग कहते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ का अधिकार मिले तो हमें आपत्ति नहीं है. तो फिर पूरा शरिया लागू करिए. क्रिमिनल में क्यों शरिया निकाल दिया. क्या चोरी करने पर हाथ काट दोगे, कोई महिला के साथ जघन्य अपराध करे तो पत्थर मारकर मार दोगे, देशद्रोही को रोड पर सूली चढ़ाओगे तो निकाह के लिए पर्सनल लॉ, वारिस के लिए पर्सनल लॉ और क्रिमिनल शरिया क्यों नहीं? अगर उनको देना ही है तो पूरा दे देते.'