बांग्लादेश हिंसा पर चुप क्यों मानवाधिकार गैंग, कौन बदल रहा डेमोग्राफी?
Zee News
पिछले लगभग चार दशकों से बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा का एक एक सेट पैटर्न है. वहां दुर्गा पूजा के मौके पर हर बार इस तरह की अफवाह उड़ाई जाती है कि हिन्दुओं ने इस्लाम धर्म का अपमान किया है, जिसके बाद दंगे शुरू हो जाते हैं.
नई दिल्ली: कश्मीर की तरह ही बांग्लादेश में भी हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है. बांग्लादेश में अब तक 10 हिन्दुओं की हत्या हो चुकी है, 17 हिन्दू लापता हैं. 23 हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार की खबरें आ चुकी हैं तो हाली में 160 दुर्गा पूजा पंडालों को जेहादी भीड़ ने तहस नहस कर दिया. 15 से ज्यादा मंदिरों में तोड़फोड़ और आगजनी के मामले सामने आ चुके हैं. 150 से ज्यादा हिन्दू परिवारों के घर लूट लिए गए और नोआखली के इस्कॉन मंदिर के दो पुजारी समेत 5 पुजारियों की हत्या कर दी गई लेकिन इसके बावजूद मानव अधिकारों के सर्टिफिकेट बांटने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस पर चुप हैं. अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात करने वाले देश और नेताओं ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. यहां तक कि हमारे देश के विपक्षी नेताओं के पास भी इस पर कहने के लिए कुछ नहीं है.
वर्ष 2008 में जब दिल्ली के चर्चित बाटला हाउस एनकाउंटर में दो आतंकवादी मारे गए थे, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिल्ली पहुंच गई थीं और उन्होंने इसे मानव अधिकारों पर सबसे बड़ा हमला बताया था. उन्होंने ये भी कहा था कि अगर ये एनकाउंटर फेक साबित नहीं हुआ तो वो राजनीति छोड़ देंगी लेकिन ना तो उन्होंने एनकाउंटर सही साबित होने पर राजनीति छोड़ी और ना ही बांग्लादेश में हिन्दुओं की हत्याओं पर कोई दुख जताया. इससे उलट अगर, भारत के किसी राज्य में किसी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को कुछ लोग मार देते तो यही अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, पश्चिमी देश और हमारे देश के विपक्षी नेता क्या करते? ये नेता भारत में अल्पसंख्यकों को खतरे में बताते, ये अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भारत में लोकतंत्र और मानव अधिकारों को खतरे में बताती और ये पश्चिमी देश भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने लगते. लेकिन जब बात बांग्लादेश की आती है, तो ये सब चुप हो जाते हैं.