बगावत से लगा ब्रांड ठाकरे को बट्टा! अब कैसे और कौन चलाएगा शिवसेना?
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1966 में बाल ठाकरे ने मराठा अस्मिता की आवाज उठाते हुए शिवसेना का गठन किया था. उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा और न ही कभी सरकार में कोई पद लिया. इसके बावजूद महाराष्ट्र की सियासत के वो तुरुप का पत्ता बने रहे. बाल ठाकरे ने अपनी ऐसी छवि गढ़ी कि बीजेपी भी शिवसेना की जुनियर पार्टनर बनकर रही. इस तरह ब्रांड ठाकरे ही शिवसेना की सबसे बड़ी ताकत बन गया था.
महाराष्ट्र में एक सप्ताह से चल रहे सियासी महाभारत उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के साथ खत्म हो गया है. उद्धव ठाकरे भले ही बीजेपी से अलग होकर सत्ता के सिंहासन पर काबिज हो गए थे, लेकिन शिवसेना और ठाकरे परिवार की इमेज को बचाकर नहीं रख पाए. उद्धव ठाकरे के कभी करीबी रहे एकनाथ शिंदे ने बगावत का बिगुल ऐसा फूंका कि न तो उद्धव सरकार बची और न ही शिवसेना. उद्धव को सत्ता से साथ पार्टी भी गवांनी पड़ गई. महाराष्ट्र के सियासी संग्राम में सबसे ज्यादा नुकसान तो ब्रांड ठाकरे को हुआ है, जिसके चलते अब उद्धव कैसे शिवसेना को दोबारा खड़ा करेंगे?
साल 2012 में बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना के सर्वेसर्वा उद्धव ठाकरे बन गए, लेकिन अपने पिता की तरह न तो छवि को मजबूत रख सके और न ही शिवसेना का आधार बढ़ा सके. शिवसेना 2014 का विधानसभा बीजेपी से अलग होकर लड़ी, लेकिन बाद में फडणवीस सरकार में शामिल हो गई. पांच साल तक सत्ता में भागीदार रही, लेकिन पहले जैसा सियासी प्रभाव नहीं रह गया था. ऐसे में साल 2019 विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा, लेकिन सीएम पद को लेकर दोस्ती टूट गई. विचारधारा के दो विपरीत छोर पर खड़ी पार्टियां सियासी मजबूरियों की वजह से साथ आईं और महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी गठबंधन बना.
वहीं, उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री बनना महाराष्ट्र की राजनीति की ऐतिहासिक घटना थी, क्योंकि ठाकरे परिवार से संवैधानिक पद पर बैठने वाले वो पहले व्यक्ति बने थे. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने कई उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए ढाई साल पूरे किए, लेकिन एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना विधायकों की बगावत ने उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया और इसके साथ ही महा विकास अघाड़ी सरकार का अंत हो गया.
संकट से निपटने में उद्धव ठाकरे पूरी तरह फेल रहे
शिवसेना में मतभेदों के चलते बगावत से पहली बार उपजे इतने बड़े संकट से निपटने में पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे पूरी तरह फेल रहे. हालांकि, शिवसेना में बगावत की चिंगारी काफी पहले से सुलग रही थी. राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावों में इस चिंगारी को हवा मिली. महाराष्ट्र में बीजेपी नेता मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना में मतभेदों का फायदा उठाने में कामयाब रहे. एकनाथ शिंद के जरिए उद्धव ठाकरे ही सत्ता ही नहीं बल्कि शिवसेना की नींव भी हिला दी.
हालांकि, यह सियासी घटनाक्रम ऐसे समय हुआ, जब उद्धव ठाकरे का स्वास्थ्य ठीक नहीं था. उद्धव ठाकरे के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि पार्टी और विधायकों पर उनकी पकड़ कमजोर हुई है, इससे पार्टी में उनकी साख को भी नुकसान पहुंचा है और ब्रांड ठाकरे को भी गहरा झटका लगा. ऑटो चालक से राजनीति में कदम रखने वाले शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने बगावती सुर अपनाकर पार्टी में अपनी ताकत का अहसास कराया.
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