फर्जी हों या गड़बड़ी करने वाली पार्टियां... ECI को रजिस्ट्रेशन कैंसिल करने तक का अधिकार नहीं
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चुनावी चंदा में पारदर्शिता बढ़ाने को लेकर सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई थी, लेकिन इसका साइड इफेक्ट ये हुआ कि इसके चक्कर में राजनीतिक दलों की संख्या भी बढ़ गई. जांच के बाद इनमें से अधिकतर फर्जी या बिना चुनाव लड़ने वालीं पार्टियां पाई गईं. वजह साफ है कि उन्होंने सिर्फ चंदा लूटने और राजनीतिक ब्लैकमेलिंग के लिए पार्टी बनाई थी.
चुनाव आयोग के सीमित अधिकारों को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है. चुनावी चंदा में गड़बड़ी हो, रजिस्ट्रेशन के बाद पार्टियों का कदाचार या फिर आचार संहिता का खुलेआम उल्लंघन- निर्वाचन आयोग को इन गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन तक रद्द करने का हक नहीं है. ऐसे में विधि आयोग की सिफारिशों के बावजूद चुनाव आयोग संसद यानी विधायिका और कार्यपालिका की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहा है.
चुनावी चंदा में पारदर्शिता बढ़ाने को लेकर सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई थी, लेकिन इसका साइड इफेक्ट ये हुआ कि इसके चक्कर में राजनीतिक दलों की संख्या भी बढ़ गई. जांच के बाद इनमें से अधिकतर फर्जी या बिना चुनाव लड़ने वालीं पार्टियां पाई गईं. वजह साफ है कि उन्होंने सिर्फ चंदा लूटने और राजनीतिक ब्लैकमेलिंग के लिए पार्टी बनाई थी. चंदाजीवी शब्द लगता है कि ऐसे ही लोगों के लिए गढ़ा गया है.
देशभर में 2812 पार्टियां
निर्वाचन आयोग में 2800 से ज्यादा राजनीतिक पार्टियां पंजीकृत हैं. दो दशक पहले 2001 में चुनावी बॉन्ड्स स्कीम आई. इस पर अमल 2018 में शुरू हुआ, तब से अब तक पार्टियों के रजिस्ट्रेशन में आश्चर्यजनक इजाफा हुआ. आंकड़े बताते हैं कि 2001 में देशभर में रजिस्टर्ड, लेकिन गैर मान्यता प्राप्त 694 राजनीतिक पार्टियां थीं. लेकिन अब इनकी संख्या 2812 पहुंच चुकी है.
सिर्फ 6 दलों को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता
ये भी जान लीजिए कि इनमें से मान्यता प्राप्त दल सिर्फ 60 ही हैं. कांग्रेस, भाजपा, टीएमसी, एनसीपी, बसपा और सीपीएम यानी छह दल राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मान्यता प्राप्त हैं. बाकी अन्य क्षेत्रीय पार्टियां हैं. इन क्षेत्रीय पार्टियों की भीड़ में करीब 55 दल ही ऐसे हैं जो गंभीरता से चुनाव लड़ते हैं.
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