![पति-पत्नी के 'टॉक्सिक' रिश्तों में अनाथ हुए मासूम, अब है नए मां-बाप का इंतजार, इन 7 बच्चों की कहानी में छिपा है अनकहा दर्द](https://akm-img-a-in.tosshub.com/aajtak/images/story/202501/6784bfeb66cc5-shelter-home-story-132524867-16x9.jpg)
पति-पत्नी के 'टॉक्सिक' रिश्तों में अनाथ हुए मासूम, अब है नए मां-बाप का इंतजार, इन 7 बच्चों की कहानी में छिपा है अनकहा दर्द
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घर के रोज-रोज के कलेस अक्सर बच्चों के लिए नासूर बन जाते हैं. शराब पीकर बीवी से झगड़ा हो या फिर एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर के कारण मारपीट, ये सभी वजहें रिश्तों को घुन की तरह खाने लगती हैं. इस सबका सबसे बड़ा खामियाजा भुगतते हैं मासूब बच्चे. घरौंदा बाल आश्रम में रह रहे इन बच्चों की कहानी समाज के तौर हमें झकझोरने वाली है.
केस 1- साल 2023 की एक सर्द रात में NCR के बापू धाम इलाके में दो बच्चे पुलिस को मिलते हैं. इनमें एक छह साल का और दूसरा तीन साल का है. गोल मटोल से तोतली भाषा में बोलने वाले ये बच्चे अकेले घूम रहे थे. बड़ा लड़का करीब 5-6 साल का और दूसरा ढाई तीन साल का था. पुलिस आसपास के लोगों से पूछताछ करती है तो पता चलता है कि इन बच्चों की मां दिन में करीब 11 बजे इन्हें यहां लेकर आई थी. महिला ने लोगों से बताया था कि वो इन बच्चों को अपनी जान-पहचान में छोड़ना चाहती थी. उसने यह भी बताया था कि पहले उसके घर में रोज झगड़े होते थे. फिर पति ने किसी और से शादी कर ली थी. अब वो अकेले इन बच्चों को नहीं पाल पा रही थी और अब वो भी किसी से शादी करना चाहती थी. लेकिन वो पुरुष इन बच्चों को अपनाने के लिए तैयार नहीं था. लोगों ने बताया कि पहले तो वो महिला यहीं बैठी रही, लेकिन, कुछ देर बाद वहां से नदारद हो गई और देर शाम तक नहीं लौटी. बच्चों को घर का पता भी नहीं मालूम था. इस तरह दोनों बच्चे उसी रात बाल आश्रम पहुंच गए. बीते तीन साल में न माता-न पिता, कोई उन्हें लेने नहीं आया. अब अगर उन्हें गोद भी लिया जाएगा तो हो सकता है कि दोनों भाई बिछड़ जाएं.
केस 2- 'तूने तीन बेटियां पैदा कर दीं. इन्हें कैसे पढ़ाएंगे लिखाएंगे, मेरे सिर का बोझ कर दिया...'दो बेटी और एक बेटे के बाद चौथी औलाद भी बेटी होने के बाद से पति पत्नी में हर दिन कलह होती थी. आखिर में इस घरेलू कलह का अंत इतना भयावह था कि एक बेटी की जान चली गई और बाकी दो लड़कियां और एक लड़का अनाथ हो गए. घरौंदा की टीम जब सूचना पर पुलिस के साथ मौके पर पहुंची तो मां बाप फरार थे और वहां एक बच्ची की लाश पड़ी थी और तीन बच्चे सहमे से बैठे थे. पड़ोसियों ने बताया कि मां ने ही गुस्से में बच्ची को इतनी तेज पटका कि उसकी जान चली गई. माता-पिता दोनों वहां से भाग गए. तीनों बच्चे भी दस साल के अंदर के थे. इन तीनों बच्चों को भी कार्यवाही के बाद बाल आश्रम में रखा गया. इनके भी पेरेंट्स कभी उन्हें पूछने नहीं आए.
केस 3- गाजियाबाद खोड़ा से एक फोन कॉल के बाद घर में 24 घंटे से बंद मिले भाई बहन भी बाल आश्रम पहुंच गए हैं. इस केस में भी यही पता चला था कि इन बच्चों के माता-पिता में हर दिन झगड़ा होता था. पति शराब पीकर हर रात पत्नी को बहुत मारता था. इनमें गालीगलौच होता. बच्चे सहमे रहते थे. कल रात मां अकेली थी, सुबह मकान मालिक ने ने देखा तो घर में ताला लगा था. करीब 24 घंटे बाद पता चला कि कमरे के अंदर बच्चे रो रहे थे. शिकायत पर पहुंची पुलिस ने तीन साल के बेटे और पांच साल की बेटी को बाहर निकाला और ये बच्चे भी घरौंदा बाल आश्रम पहुंच गए.
ये वो सात बच्चे हैं जो गाजियाबाद स्थित घरौंदा बाल आश्रम में रह रहे हैं. इन बच्चों की जिंदगी में जो बीता इसके पीछे घरेलू कलह और माता पिता के खराब रिश्तों का की वजह साफ नजर आ रही है. टॉक्सिक रिश्तों ने इन्हें बाल आश्रम में 'अनाथ' बच्चा बनकर रहने पर मजबूर कर दिया. आज ये बच्चे ऐसे माता-पिता का इंतजार कर रहे हैं जाे उन्हें एक छत और अपना नाम दे सकें. भले ही बाल आश्रम में उन्हें घर जैसा ही माहौल देने की कोशिश की जाती है. फिर भी बच्चे लंबे समय तक ट्रॉमा में रहने को अभिशप्त होते हैं.
रात में जागकर डर जाते हैं
घरौंदा बाल आश्रम में सहायक अधीक्षक और हाउस मदर अंजू भिलवार ने बताया कि ऐसे कई बच्चे हैं जो घरेलू हिंसा के मामलों के कारण यहां आए. घरौंदा जो इन बच्चों के लिए अस्थायी ही सही लेकिन बहुत महत्वपूर्ण घर है. यहां बच्चों को हर तरह से संरक्षण ही नहीं, भोजन, शिक्षा, संस्कार और प्रशिक्षण दिया जाता है. यहां बच्चों को मातृत्व प्रदान किया जाता है. यहां हम सभी स्टाफ के लोग पूरा रखरखाव देखते हैं. यहां की व्यवस्था, देखभाल, स्टाफ का व्यवहार और समर्पण किसी परिवार के समान ही है. फिर भी जो बच्चे घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं या घरों में हिंसा होते देखते हैं, उन छोटे बच्चों में लंबे समय तक भय और असुरक्षा की भावना रहती है. रात में अचानक डर जाना, रोने लगना, गुमसुम रहना या दूसरे बच्चों से ज्यादा झगड़ना जैसे लक्षण भी दिखते हैं. इन बच्चों की हम लोग समय-समय पर काउंसिलिंग कराते हैं.
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