
दो मेला, दो किरदार... कब्र और मेले पर उठे विवाद और महाराजा सुहेलदेव की गाजी सालार से जंग की पूरी कहानी
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संभल और बहराइच में आयोजित होने वाला नेजा मेला और जेठ मेला दोनों ही सालार मसूद से जुड़े हैं, लेकिन हाल के समय में इन पर ऐतिहासिक और धार्मिक आधार पर सवाल उठाए गए हैं. जहां एक पक्ष इन्हें सूफी परंपरा का हिस्सा मानता है, वहीं दूसरा पक्ष इन्हें विदेशी आक्रमण से जोड़ता है.
महाराष्ट्र में मुगल शासक औरंगजेब की कब्र से जुड़े विवाद के बीच उत्तर प्रदेश में भी इतिहास के एक किरदार को लेकर विवाद शुरू हो गया है. दरअसल उत्तर प्रदेश के संभल प्रशासन ने नेजा मेले पर रोक लगा दी है. बता दें कि 1034 ईस्वी में बहराइच जिला मुख्यालय के नजदीक मौजूद चित्तौरा झील के किनारे महाराजा सुहेलदेव ने 21 दूसरे छोटे-छोटे राजाओं के साथ मिलकर एक युद्ध में गाजी सैयद सालार मसूद को मार डाला था. महाराजा सुहेलदेव ने सैयद सालार मसूद के शव को बहराइच में ही दफना दिया था.
सैयद सालार मसूद महमूद गजनवी का भांजा होने के साथ उसका सेनापति भी था. नेजा मेला उत्तर प्रदेश के संभल में आयोजित होने वाला एक पारंपरिक मेला है, जो सैयद सालार मसूद गाजी की याद में लगाया जाता था. इस बार संभल प्रशासन ने इस मेले पर रोक लगा दी है. इस मेले का नाम "नेजा" इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें एक ऊंचे बांस या लकड़ी के डंडे (नेजा) को सजाकर उसकी इबादत की जाती है. इसे मसूद की कब्र से जुड़ा प्रतीक माना जाता था.
बहराइच में हर साल जेठ महीने (मई-जून) में एक बड़ा बड़ा मेला लगता है. यह मेला सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर आयोजित होता है, जहां उसकी कब्र स्थित है. इस मेले को जेठ मेला या "गाजी मियां का मेला" भी कहा जाता है. अब हिन्दू संगठनों ने इस मेले पर भी रोक लगाने की मांग की है.
दो मेला, दो किरदार
जेठ मेला के समानांतर ही बहराइच में ही चित्तौरा झील के पास महाराजा सुहेलदेव के सम्मान में "विजयोत्सव दिवस" भी मनाया जाता है, जो उनकी सालार मसूद पर विजय की याद में है. यह आयोजन जेठ मेले के शुरुआती दिनों में होता है.
नेजा मेला और जेठ मेला दोनों ही सालार मसूद और महाराजा सुदेलदे से जुड़े हैं, लेकिन हाल के समय में इन पर ऐतिहासिक और धार्मिक आधार पर सवाल उठाए गए हैं. जहां एक पक्ष इन्हें सूफी परंपरा का हिस्सा मानता है, वहीं दूसरा पक्ष इन्हें विदेशी आक्रमण से जोड़ता है.

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