दिल्ली के थाने में रखा बक्सा, लाश के टुकड़े और अदालतों की दौड़... पिता को आज भी है श्रद्धा वॉल्कर के अंतिम संस्कार का इंतजार
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दिल्ली के महरौली थाने में पिछले सवा दो साल से मालखाने के अंदर एक छोटे से बक्से में श्रद्धा वॉल्कर बंद है. महरौली थाने से लगभग 4 किलोमीटर दूरी पर मौजूद है साकेत कोर्ट. 1 जून 2023 यानी लगभग पिछले पौने दो साल से इसी कोर्ट में श्रद्धा केस की सुनवाई लंबित है.
Shraddha Walker Murder Case: दिल्ली में एक पुलिस थाने के मालखाने में एक छोटा सा बक्सा रखा है, जिसमें बंद है श्रद्धा वॉल्कर. जिसे आज भी अपने अंतिम संस्कार का इंतजार है. ये वही श्रद्धा वॉल्कर है, जिसे उसके प्रेमी ने मौत की नींद सुला दिया था और लाश के टुकड़ों को कई दिनों तक फ्रीज में बंद रखा था. इस मुकदमें को शुरू हुए करीब दो साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन अब भी इस केस हर दिन सुनवाई का इंतजार था. अब जाकर अदालत ने फैसला किया है कि मार्च के महीने से अब हर दिन इस केस की सुनवाई होगी. हालांकि इस केस में अभी तक बहुत सी कार्रवाई अधूरी है.
साकेत कोर्ट में लंबित है श्रद्धा वॉल्कर केस दिल्ली के महरौली थाने में पिछले सवा दो साल से मालखाने के अंदर एक छोटे से बक्से में श्रद्धा वॉल्कर बंद है. महरौली थाने से लगभग 4 किलोमीटर दूरी पर मौजूद है साकेत कोर्ट. 1 जून 2023 यानी लगभग पिछले पौने दो साल से इसी कोर्ट में श्रद्धा केस की सुनवाई लंबित है. इस सुनवाई के दौरान ऐसा कई बार हुआ जब एक छोटे से बक्से में बंद श्रद्धा को महरौली थाने के मालखाने से निकाल कर कोर्ट में पेश किया गया.
श्रद्धा के नाम पर बाकी हैं उसकी चंद हड्डियां श्रद्धा के पिता विकास वॉल्कर को नवंबर 2022 में पहली बार पता चला था कि उनकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है. उनकी बेटी श्रद्धा के इसी दोस्त यानी आफताब पूनावाला ने श्रद्धा का कत्ल करने के बाद लाश के टुकड़ों को महरौली के जंगलों में किस्तों में ठिकाने लगा दिया था. लगभग सवा दो साल से विकास वॉल्कर को पता है कि उनकी बेटी श्रद्धा अब इस दुनिया में नहीं है. श्रद्धा के नाम पर कुछ है तो छोटे से बक्से में बंद उसकी चंद हड्डियां. मगर इस बदकिस्मत बाप की बदनसीबी देखिए कि श्रद्धा तो छोड़िए उसकी लाश के बचे खुचे टुकड़े तक उन्हें अंतिम संस्कार के लिए नहीं सौंपे गए.
सवा दो साल से अंतिम संस्कार का इंतजार बीते पौने दो साल से जब जब विकास वॉल्कर साकेत कोर्ट में हाजिर होते हैं, तो बस कभी कभार कोर्ट रूम के अंदर ही उन्हें बक्से में बंद श्रद्धा नजर आ जाती है. न जाने ये कैसा मजाक है जो कानून के नाम पर एक बेबस बाप के साथ किया जा रहा है. जिस बाप की जवान बेटी को पहले ही उससे छीन लिया गया हो, जिसके कत्ल और कत्ल के तरीके की कहानी को सुन कर श्रद्धा को न जानने वाले भी गमजदा हो जाते हों, उसी श्रद्धा के अंतिम संस्कार के लिए पिछले सवा दो साल से उसके बाप को इंतजार कराया जा रहा है.
अदालत में ट्रॉयल का इंतजार ऊपर से सितम देखिए कि महरौली थाने के इस मालखाने से चार किलोमीटर दूर साकेत कोर्ट के रास्ते 12 सौ किलोमीटर दूर मुंबई तक श्रद्धा कब पहुंचेगी ये अब भी कोई बताने वाला नहीं है. श्रद्धा केस की सुनवाई करने वाला फास्ट ट्रैक कोर्ट कितना फास्ट है, ये इसी से समझ लीजिए कि पौने दो साल हो चुके हैं लेकिन अब भी ट्रायल तो छोड़िए गवाहों की गवाहियां तक पूरी नहीं हो पाई है.
केस प्रॉपर्टी हैं श्रद्धा की हड्डियां और इस बात की भी गारंटी नहीं है कि अगर फास्ट ट्रैक कोर्ट का फैसला आ भी जाता है, तो भी श्रद्धा के पिता श्रद्धा का अंतिम संस्कार कर पाएं. जानते हैं क्यों? क्योंकि बहुत मुमकिन है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले के बाद जब उस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी, तो बहुत मुमकिन है कि हाई कोर्ट भी श्रद्धा की हड्डियों को केस प्रॉपर्टी के तौर पर श्रद्धा के पिता को फैसला आने तक सौंपने से इनकार कर दे.
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