जान बची, अब करियर कैसे बचाएं? नहीं मिल रहा यूक्रेन से लौटे MBBS छात्रों को जवाब
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हजारों ऐसे एमबीबीएस छात्र हैं जो रूस यूक्रेन युद्ध के कारण भारत लौट आए हैं. अब छात्र व अभिभावक भारत सरकार से मांग कर रहे हैं कि यहां के मेडिकल कॉलेजों में बच्चों को पढ़ने का मौका दिया जाए. aajtak.in ने ऐसे ही छात्रों और उनके अभिभावकों से बातचीत करके उनकी मांग जानी.
ये पीड़ा सिर्फ राहुल और काजल की नहीं बल्कि हजारों ऐसे एमबीबीएस छात्रों की है जो रूस यूक्रेन युद्ध के कारण भारत लौट आए हैं. अब छात्र व उनके अभिभावक भारत सरकार से मांग कर रहे हैं कि यहां के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने का मौका दिया जाए. aajtak.in ने ऐसे ही छात्रों और उनके अभिभावकों से बातचीत करके उनकी मांग जानी.
राहुल और काजल के बड़े भाई विवेक किशोर पांडेय बताते हैं कि यूक्रेन से आए स्टूडेंट्स मुसीबत में हैं. उनका भाई राहुल और काजल कुमारी एमबीबीएस सेकेंड और फर्स्ट इयर में पढ़ते थे. वो मार्च के शुरुआती हफ्ते में इंडिया आए थे. वहां यूनिवर्सिटी वाले फीस ले चुके थे, जून से सेशन एंड हो रहा था. अब फीस मांगेगे लेकिन जब ऑफलाइन पढ़ाई ही नहीं कर पाएंगे तो फीस देने का क्या फायदा. हमने यूनिवर्सिटी से नेबर कंट्री में एडमिशन की मांग भी की है. सबका ओरिजिनल डॉक्यूमेंट यूनिवर्सिटी में जमा है. अब उसके लिए भी जाना पड़ेगा. अभी जाना भी उचित नहीं है. खारकीव के आसपास रूस ने कब्जा कर लिया है. यूनिवर्सिटी से रोमानिया आदि कंट्री में एडमिशन की बातचीत चल रही है.
सुप्रीम कोर्ट में है मामला
विवेक बताते हैं कि इस मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल डाली गई है. अभिभावक और बच्चे बराबर प्रोटेस्ट करते रहते हैं. हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि अगर इंडिया में नॉर्म नहीं हैं तो बाहर कहीं रोमानिया, पोलैंड, कजाकिस्तान आदि जगह एडमिशन कराएं. यूनिवर्सिटी भी कह रही कि ट्रांसफर होगा तो जून जुलाई में होगा. फीस और रहने का लाखों का खर्च हो गया. हम लोगों को बहुत आर्थिक क्षति भी हुई है. चार्टर्ड प्लेन का टिकट दो लोगों का एक लाख रुपये के करीब लगा था जो कि रिफंड नहीं हुआ. तीन साढे तीन महीने बीत गए, एअरलाइंस वाले कह रहे कि अभी पेमेंट सिस्टम काम नहीं कर रहा. अब हमारा मेन फोकस भाई बहन को सेटल करना है. हम सरकार से चाह रहे हैं कि यहीं बच्चों को एडमिशन दे दे, नहीं तो नेबर कंट्री में शिफ्ट कर दे.
दूसरी कंट्री हुईं महंगी, हम कहां जाएं
यूक्रेन से लौटे एमबीबीएस छात्र तलहा नालंदा बिहार के रहने वाले हैं. तलहा ने बताया कि मैं 2020 में गया था. हमारा चौथा सेमेस्टर शुरू हो गया था. वार तो दिसंबर में ही शुरू हो गया था लेकिन वहां के लिए जैसे ये नॉर्मल बात थी. स्थानीय स्टूडेंट्स हंसकर टाल देते थे. उस पर वहां स्टडी का पैटर्न अलग है, अबसेंट होने पर वॉक ऑफ हो जाता है, उसे क्लीयर कराना पड़ता है. यूनिवर्सिटी ने कहा कि जो यहां रहना चाहता है, वो ऑफलाइन पढ़ेगा बाकी सबको ऑनलाइन पढ़ाया जाएगा. कैसे तो जान बचाकर हम वापस लौटे हैं अब आगे स्टडी का कुछ समझ नहीं आ रहा. वहां अभी तक वॉर चल रहा. वहीं हंग्री और पोलैंड काफी महंगा हो गया. 70 लाख रुपये तक फीस चली जाएगी. अब हम लोग मांग कर रहे हैं कि इंडिया में कम फीस लेकर गवर्नमेंट नहीं तो प्राइवेट कॉलेज में ही एडमिशन दे दें.
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