
क्या ट्रंप को जिताने की साजिश रच रहा रूस, अमेरिका ने लगाया आरोप, वो 4 आजमाए हुए तरीके, जिनसे चुनाव में लगती रही सेंध
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अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को अब दो महीने से भी कम समय बाकी है. ऐसे में इलेक्शन में मॉस्को के दखल की सनसनीखेज जानकारी सामने आई. अमेरिकी न्याय विभाग ने रूसी टीवी के अमेरिकी एंकर और उनकी पत्नी को इलेक्शन पर असर डालने का आरोप लगाया. चुनावों में विदेशी दखलंदाजी का आरोप वैसे दोनों ही देश एक-दूसरे पर लगाते रहे.
वाइट हाउस ने हाल ही में रूस की स्टेट मीडिया पर आरोप लगाया कि वो अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों पर असर डालने की कोशिश कर रहा है. साल 2020 में हुए इलेक्शन के दौरान भी अमेरिका ने यही इलजाम लगाया था. आरोप कितने सही या गलत हैं, इसे छोड़ भी दें तो ये सच है कि बहुत से देश दूसरों के इलेक्शन पर असर डालने की कोशिश करते रहे.
बहुत से देश अपने पड़ोसियों या दुश्मन देशों के चुनाव में दखल देते रहे. इसमें सबसे ऊपर अमेरिका रहा. एक किताब 'मेडलिंग इन द बैलट बॉक्स' के लेखक डव एच लेविन कहते हैं कि साल 1946 से लेकर 2000 के भीतर दुनिया में लगभग 939 इलेक्शन हुए. इसमें अमेरिका ने 81 फॉरेन इलेक्शन्स के नतीजों पर असर डाला. वहीं रूस (तब सोवियत संघ) ने 36 चुनावों से छेड़खानी की. यानी कुल मिलाकर हर 9 में से 1 देश के चुनाव पर अमेरिका या रूस का असर रहा. कम से कम किताब में यही बताया गया है.
प्रत्यक्ष दखल से बचते हैं सभी
कोई भी देश फॉरेन इलेक्टोरल इंटरवेंशन सीधे-सीधे नहीं करता ताकि उसकी इमेज खराब न हो. वो चुपके से चुनावों पर असर डालता है. ये भी दो तरीकों से होता है. जब विदेशी ताकतें तय करती हैं कि उन्हें किस एक का साथ देना है. दूसरे तरीके में विदेशी शक्तियां लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव के लिए देशों पर दबाव बनाती हैं. सब कुछ गुपचुप ढंग से ताकि काम भी हो जाए और कोई सुराग भी न मिल सके.
क्या फायदे हैं फॉरेन इलेक्टोरल इन्टरवेंशन के दूसरे देश के फटे में टांग अड़ाने से वैसे तो सारे देश बचते हैं लेकिन चुनाव अलग मुद्दा है. इसमें जो सरकार चुनकर आती है, उसकी फॉरेन पॉलिसी सिर्फ उसे ही नहीं, पड़ोसियों से लेकर दूर-दराज को भी प्रभावित करती है. वो किससे क्या आयात करेगा, क्या एक्सपोर्ट करेगा, किसका साथ देगा, या किसका विरोध करेगा, ये सारी बातें इसपर तय करती हैं कि वहां सेंटर में कौन बैठा है. ये वैसा ही है, जैसे पावर सेंटर पर किसी दोस्त का होना.

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