
कोई 70 घंटे तो कोई 90 घंटे... लेकिन अब सरकार ने बताया सिर्फ इतने घंटे ही करें काम!
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कोई 70 घंटे काम करने को सपोर्ट कर रहा है तो कोई 90 घंटे काम करने का सुझाव दे रहा है, लेकिन इन सभी के बीच सरकार ने 31 जनवरी को इकोनॉमिक सर्वे 2024-25 पेश किया है, जिसमें यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि एक कर्मचारी को कितने घंटे तक काम करना चहिए.
देश में कॉर्पोरेट सेक्टर के कर्मचारियों के काम के घंटों को लेकर बहस छिड़ी हुई है. कोई 70 घंटे काम करने को सपोर्ट कर रहा है तो कोई 90 घंटे काम करने का सुझाव दे रहा है, लेकिन इन सभी के बीच सरकार ने 31 जनवरी को इकोनॉमिक सर्वे 2024-25 पेश किया है, जिसमें यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि एक कर्मचारी को कितने घंटे तक काम करना चहिए.
दरअसल, कुछ समय पहले इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति ने कहा था कि देश को आगे बढ़ाने के लिए कर्मचारियों को 70 घंटे सप्ताह में काम करना चाहिए. जिसे लेकर कुछ लोगों ने आलोचना भी की थी और कुछ ने इसे सपोर्ट भी किया था. जब तक ये मामला शांत होता, इस बीच एक प्राइवेट मीटिंग के दौरान L&T के चेयरमैन ने कर्मचारियों से कह दिया था कि आखिर घर पर बैठे-बैठे कबतक पत्नी को निहारोगे. मेरा बस चले तो मैं आपसे संडे को भी काम कराऊं. उनका इशारा लोगों से सप्ताह में 90 घंटे काम की ओर था.
कितने घंटे तक करने चाहिए काम L&T के चेयरमैन के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई थी. 90 घंटे काम को लेकर अरबपतियों से लेकर आम लोगों ने भी आलोचना की. अब इकोनॉमिक सर्वे 2024-25 में सरकार ने ग्लोबल स्टडीज का हवाला देते हुए, सर्वेक्षण ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सप्ताह में 60 घंटे से अधिक काम करने से स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिम हो सकते हैं.
डेस्क पर 12 घंटे काम करने वाले लोग मानसिक स्वास्थ्य के "संकटग्रस्त" हो सकते हैं. यह तर्क 70-90 घंटे के कार्य सप्ताह के प्रस्ताव पर गरमागरम बहस के बीच आया है, जिसने भारत के व्यापारिक समुदाय को विभाजित कर दिया है.
12 घंटे से ज्यादा काम करने पर क्या होगा? आर्थिक सर्वे में सैपियन लैब्स सेंटर फॉर ह्यूमन ब्रेन एंड माइंड द्वारा किए गए एक अध्ययन का हवाला दिया गया है. इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि डेस्क पर लंबे समय तक बैठे रहने से मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है. सर्वे में कहा गया है कि जो लोग डेस्क पर 12 या उससे ज्यादा घंटे बिताते हैं, उनका मानसिक स्वास्थ्य खराब हो सकता है, उनका मानसिक स्वास्थ्य स्कोर उन लोगों की तुलना में लगभग 100 अंक कम होता है जो डेस्क पर दो घंटे से कम या उसके बराबर समय बिताते हैं.
डिप्रेशन के कारण कितना होता है नुकसान? सर्वे ने माना कि प्रोडक्टविटी कई वजहों से प्रभावित होती है. लेकिन सर्वे ने यह चेतावनी दी कि अभी मजबूत मैनेजमेंट वाले संगठनों में भी, हर महीने औसतन पांच वर्किंग डे का नुकसान होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों का हवाला देते हुए, सर्वे ने यह भी बताया कि डिप्रेशन और चिंता के कारण सालाना 12 अरब वर्किंग डे का ग्लोबल नुकसान होता है, जो 1 ट्रिलियन डॉलर का इकोनॉमी लॉस है. रुपये के हिसाब से, यह लगभग ₹7,000 प्रति दिन है.

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