कैप्टन अमरिंदर की राह या मुफ्ती सईद का मॉडल, J-K में गुलाम नबी किस दिशा में बढ़ाएंगे कदम
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जम्मू-कश्मीर में तीन दशक पुराना सियासी इतिहास एक बार फिर से दोहराया जा रहा है. 1999 में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी डीपीपी बनाई थी और मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे. मुफ्ती सईद के नक्शेकदम पर गुलाम नबी आजाद ने भी कदम बढ़ा दिए हैं और कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बनाने जा रहे हैं.
कांग्रेस से नाता तोड़ चुके गुलाम नबी आजाद अब कश्मीर में अपनी अलग नई सियासी पारी की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं. इस दिशा में जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के नेताओं में जीएम सरूरी, हाजी अब्दुल राशिद, मोहम्मद अमीन भट, गुलजार अहमद वानी, चौधरी मोहम्मद अकरम और सलमान निजामी ने पार्टी को अलविदा कहकर गुलाम नबी आजाद का हाथ थाम लिया है.
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के तीन साल पूरे हो चुके हैं और सूबे में में अगले कुछ महीनों के भीतर ही चुनाव होने की उम्मीद हैं. ऐसे में सूबे की राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों की नजर गुलाम नबी आजाद पर है. सवाल ये भी है कि आजाद जम्मू कश्मीर के आने वाले विधानसभा चुनावों में क्या और किस तरह की भूमिका निभाएंगे. वे मुफ्ती मोहम्मद सईद का फॉर्मूला अपनाएंगे या अमरिंदर सिंह की राह पकड़ेंगे.
गुलाम नबी आजाद की जन्मस्थली भले ही जम्मू डिवीजन का डोडा इलाका है, लेकिन उनकी पहचान कश्मीर घाटी के नेता के रूप में रही है. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर जाने जाते थे. ऐसे में एक तरह उनके पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है तो उनके नई पार्टी बनाने से बीजेपी को सत्ता में अपनी वापसी की उम्मीद दिख रही है. इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि कश्मीर में गुपकार अलायंस पूरी तरह बिखर चुका है. ऐसे में सभी पार्टियों के अलग-अलग चुनाव लड़ने से बीजेपी को अपना फायदा मिलने की आस है.
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव आयोग ने जो परिसीमन किया है, उसके मुताबिक सात सीटों को बढ़ाया गया है. इस तरह से अब जम्मू-कश्मीर में 90 सीटें पहुंच गई है. इनमें जम्मू की 6, जबकि कश्मीर की एक सीट शामिल है. कुल 90 सीटों की बात करें तो इसमें कश्मीर की 47 और जम्मू की 43 सीटें हैं. इनमें से दो सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए रिजर्व रखी गई हैं तो 9 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित किया गया है. इस तरह से जम्मू-कश्मीर के सियासी समीकरण अब पूरी तरह से बदल गए हैं.
जम्मू-कश्मीर के बदले हुए सियासी हालत में गुलाम नबी आजाद के पास पास पीडीपी और नैशनल कॉफ्रेंस में जाने पर बहुत ज्यादा सियासी लाभ की उम्मीद नहीं थी. इसीलिए कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने का फैसला किया है. ऐसे में जम्मू-कश्मीर के पुराने कांग्रेसी नेताओं को अपने साथ जोड़ रहे हैं ताकि चुनावी पिच पर मजबूती से खड़े हो सकें.
जम्मू डिवीजन में बीजेपी काफी मजबूत है और यहां उसे ज्यादातर सीटें मिल सकती हैं. वहीं, कश्मीर के इलाके वाली सीटों पर बीजेपी की स्थिति ठीक नहीं मानी जाती, क्योंकि मुस्लिम बहुल सीटें हैं. ऐसे में गुलाम नबी आजाद कुछ सीटें जीतने में सफल रहते हैं तो सियासी संभावनाओं में वो किंगमेकर बन सकते हैं. ऐसी सूरत में बीजपी को भी उनसे हाथ मिलाने में कोई परहेज नहीं होगा, क्योंकि घाटी की नुमाइंदगी के लिए सरकार में उसे भी किसी पार्टी की जरूरत होगी.
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