कहानी बृजेश सिंह की... पिता की मौत के बदले से लेकर जरायम की दुनिया के 'बादशाह' तक
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करीब 13 साल बाद माफिया डॉन बृजेश सिंह की वाराणसी सेंट्रल जेल से गुरुवार को रिहाई हो गई. पढ़ाई कर अच्छी नौकरी करने का सपना पालने वाला वाराणसी के धौरहरा गांव का अरुण सिंह कैसे उत्तर प्रदेश का बाहुबली बृजेश सिंह बन गया? आइए आपको बताते हैं.
करीब 13 साल बाद माफिया डॉन बृजेश सिंह की वाराणसी सेंट्रल जेल से गुरुवार को रिहाई हो गई. अब बृजेश सिंह एक आम जिंदगी जिएगा, लेकिन बृजेश सिंह की पूरी जिंदगी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है. पढ़ाई कर अच्छी नौकरी करने का सपना पालने वाला वाराणसी के धौरहरा गांव का अरुण सिंह कैसे उत्तर प्रदेश का बाहुबली बृजेश सिंह बन गया? आइए आपको बताते हैं.
बॉलीवुड की फिल्मों में आपने देखा होगा कि कैसे 12वीं की परीक्षा पास कर कॉलेज में अपने सपनों को पूरा करने के लिए जाने वाला नौजवान गैंगस्टर बनता है. अरुण सिंह उर्फ बृजेश सिंह की कहानी कुछ ऐसी ही है. बनारस के धौरहरा गांव के संभ्रांत किसान व स्थानीय नेता रविंद्र नाथ सिंह के बेटे अरुण सिंह ने 12वीं की परीक्षा पास की तो वह भी अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए आगे की पढ़ाई करने लगा और बीएससी में एडमिशन ले लिया.
रविंद्र नाथ सिंह हर पिता की तरह चाहते थे कि उनका बेटा भी अफसर बने परिवार और गांव का नाम रोशन करें, लेकिन 27 अगस्त 1984 की तारीख ने अरुण सिंह की जिंदगी बदल दी. पिता रविंद्र नाथ सिंह की गांव के ही दबंगों ने बेरहमी से हत्या कर दी. पिता की हत्या से अरुण सिंह बौखला गया और उसने अपनी जिंदगी का रुख ही बदल दिया. उसने पिता की हत्या का बदला लेने की कसम खाई और 1 साल के अंदर ही 27 मई 1985 को पिता की हत्या के मुख्य आरोपी हरिहर सिंह की हत्या कर दी.
अरुण सिंह अब बृजेश सिंह बनने की राह पर निकल चुका था और उसके ऊपर हत्या का पहला मुकदमा दर्ज हुआ था, लेकिन बृजेश सिंह अभी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा क्योंकि पिता के बाकी हत्यारों से बदला लेना बाकी था. अप्रैल 1986 को चंदौली के सिकरौरा गांव के पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव समेत सात लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. यह वो लोग थे जो बृजेश सिंह के पिता की हत्या में शामिल थे.
यहां बृजेश सिंह के पिता की हत्या का बदला तो पूरा हो गया लेकिन बृजेश सिंह की जिंदगी बदल गई. बृजेश सिंह को गिरफ्तार किया गया तो जेल में उसकी मुलाकात त्रिभुवन सिंह से हुई. त्रिभुवन सिंह ने भी अपने भाई के हत्यारों को मौत के घाट उतारा था और वह जेल में बंद था. बृजेश और त्रिभुवन की कहानी कुछ एक जैसी थी तो दोनों में दोस्ती भी हो गई. जेल में रहकर बृजेश सिंह को समझ में आ गया था कि जरायम की दुनिया ही अब उसका सब कुछ है. यही उसे ताकत हासिल करनी है और पैसा कमाना है.
यहां से बृजेश और त्रिभुवन सिंह ने स्क्रैप और बालू की ठेकेदारी करने वाले साहिब सिंह का साथ पकड़ा. दोनों साहिब सिंह के लिए काम करने लगे. साहब सिंह को सरकारी ठेके दिलवाने लगे. यहीं बृजेश सिंह का टकराव पूर्वांचल के दूसरे माफिया मुख्तार अंसारी से शुरू हुआ. दरअसल मुख्तार अंसारी, साहब सिंह के विरोधी मकनू सिंह के लिए काम कर रहा था.
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