कन्फ्यूजन से चली कमाई पर कैंची...दूर नहीं हो रहीं दिल्ली में दारू के धंधे की दुश्वारियां!
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सरकार की उम्मीद है कि जल्द से जल्द उपराज्यपाल नई शराब नीति के तहत इस साल किए गए बदलावों को मंजूरी दे दें ताकि एक्साइज यानि आबकारी से मिलने वाली 8 हजार करोड़ की रकम का लक्ष्य हासिल किया जा सके.
दिल्ली की नई आबकारी नीति को लागू हुए अभी 7 महीने भी पूरे नहीं हुए हैं और राजधानी में शराब की बिक्री को लेकर कंफ्यूजन काफी बढ़ चुका है. कंफ्यूजन इतना बढ़ गया कि कुछ महीने पहले आए शराब कारोबारी दिल्ली से बोरिया-बिस्तर समेटने लगे हैं. कुल 32 जोन में से 9 जोन के शराब कारोबारियों ने इस साल अपना लाइसेंस सरेंडर करने का फैसला कर लिया है. जाहिर सी बात है कि सभी के लिए दिल्ली जैसे मुनाफे की जगह से पीछे हटने जैसा बड़ा फैसला कुछ ही महीनों पहले आए प्राइवेट कंपनियों के लिए आसान तो नहीं रहा होगा. मतलब नई शराब नीति के तहत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मुश्किलों में फंसती हुई नजर आ रही है.
नई नीति लाई ही इसलिए गई थी कि सरकार शराब बेचने के कारोबार से बाहर निकलना चाहती थी और पूरे ठेकों को प्राइवेट हाथों में सौंप कर ज्यादा मुनाफा कमाना उसका एक बड़ा मकसद था. पिछले साल मुकम्मल योजना बनाई गई और नई नीति के तहत सारे के सारे शराब की दुकानों के लाइसेंस प्राइवेट हाथों में सौंप कर सरकार इस कारोबार से पूरी तरह बाहर निकल गई. पहले दिल्ली में लगभग 700 शराब की दुकानें थीं, जिनमें से लगभग 500 सरकारी एजेंसियां चलाती थीं जबकि लगभग 200 प्राइवेट हाथों में थीं. दिल्ली सरकार ने जो नई नीति लाई उसमें इन दुकानों की संख्या बढ़ाकर 849 कर दिया गया. कोशिश ये की गई कि दिल्ली के हर इलाके में दुकानों के लाइसेंस दे दिए जाएं जिससे मुनाफा भी पूरा हो और खरीददारों को ज्यादा दूर भी नहीं जाना पड़े.
लेकिन नई नीति आते ही मुश्किलें भी बढ़ने लगीं. पहला कदम तो कामयाब रहा. लगभग साढ़े 850 दुकानों से करीब सालाना 8900 करोड़ रुपये का लाइसेंस फीस आना था. चूंकि नई नीति 17 नवंबर 2021 को लागू हुई इसलिए कमाई के लिए पिछले वित्तीय साल में महज साढ़े चार महीने ही बचे थे. इसलिए उस हिसाब से इतने समय के लिए 849 दुकानों से तकरीबन 3500 करोड़ रुपए कमाई भी हो गई. श्री गणेश तो समझिए ऐसा हुआ कि इस कमाई की बदौलत साल 2020-21 के मुकाबले साल 2021-22 में लगभग एक हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी हो गई, लेकिन अच्छी खबर यही तक रही. दिल्ली के हर वार्ड में तीन शराब की दुकानें खुलनी थीं लेकिन 67 वार्ड ऐसे थे जो कि अनधिकृत कॉलनियों के अंतर्गत आते थे और इसी वजह से इन नॉन कंफर्मिंग इलाकों में शराब की दुकान खुल ही नहीं सकती थी. इस तरह 849 इलाकों में से 200 दुकानों पर एक तरह खुलने से पहले पहले ही ताला लग गया. अब 9 जोन में लगभग 200 दुकानों का लाइसेंस अलग-अलग वजहों से रिन्यू नहीं हुआ है यानि 850 की कुल संख्या अब 450 से भी कम रह गई है.
अब आगे सरकार के सामने क्या रास्ता बचा है?
सरकार हर साल इन लाइसेंस के लिए नए टर्म और कंडीशंस जारी करती है. यानि साल 2022-23 के लिए भी नई शर्तें आएंगी जिसके तहत नए लोगों को लाइसेंस दिए जाएंगे. यानि जो कारोबारी सरेंडर किए गए जोन में शराब की दुकान चलाना चाहतें हैं वो नई शर्तों के आधार पर फिर से बोली लगा पाएंगे. नए टर्म और कंडीशंस को दिल्ली की कैबिनेट ने पहले ही पास कर दिया है और उसमें वो जरुरी संशोधन भी कर दिए हैं जिनकी वजह से पिछले सात महीनों में जबरदस्त असमंजस की स्थिति बनी रही. लेकिन इस बीच दिल्ली में नए उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने कामकाज संभाल लिया है और कैबिनेट की शर्तों को मंजूरी देना अब उनके हाथ में ही है. हालांकि दिल्ली सरकार को ये पूरा भरोसा है कि चूंकि आबकारी नीति के नियम और शर्तों को हर साल ही बनाना है इसलिए इस रूटीन मामले में एलजी की तरफ से अड़ंगा नहीं लगेगा. फिर भी जो नियम वित्तीय वर्ष के शुरू होते ही लागू होने थे उनमें देरी तो हो ही गई है. यही वजह है कि पिछले साल के नियमों को ही उन्हीं शर्तों के आधार पर पहले अप्रैल और मई के दो महीनों के लिए बढ़ाया गया और जब नए नियमों को इस दौरान भी मंजूरी नहीं मिल पाई तो दोबारा उन्हीं का एक्सटेंशन दो महीनों यानि जून और जुलाई के लिए और बढ़ा दिया गया. इसका मतलब ये कि अगर उपराज्यपाल की तरफ से देरी नहीं भी हुई तो नए शर्त महज साल के 8 महीनों के लिए ही लागू होंगे.
सरकार का अब भी यही मानना है कि जो नई नीति दिल्ली में लागू की गई वो सरकार की कमाई के हिसाब से फायदेमंद तो थी ही लोगों के लिए भी कम फायदे की बात उसमें नहीं थी. इसके अलावा सरकार दिल्ली की छवि इस मामले में सुधारना भी चाहती थी कि यहां शराब का कारोबार अब भी सरकारी तरीके से चल रहा है, यानि जो प्रोफेशनल तरीके की कमी थी वो इस नीति के जरिए वो लाना चाहती थी. इसके अलावा सरकार से जुड़े अधिकारी बताते हैं कि दिल्ली में कई ब्रांड के शराब पहले नहीं मिला करते थे. आम तौर पर थोक कारोबारी, निर्माता खुद ही होता था इसलिए वो अपनी ब्रांड की शराब को ज्यादा पुश करता था, जिसे ब्रांड पुशिंग कहते थे, इसलिए उपभोक्ताओं का अनुभव बहुत अच्छा नहीं था. अब थोक कारोबारी अलग हैं और वो बेहतर सर्विस मुहैया करवा पा रहे हैं. साथ ही दुकानों की शक्ल भी बेहतर हुई है यानि सरकारी दुकानों से बेहतर सर्विस और उपभोक्ता संतुष्टि भी हासिल हो रही है. साथ ही दुकानों में आपस में प्रतियोगिता बढ़ी है इसलिए उन्हें वही शराब कम कीमत पर भी मिल रही है. कई बार तो 100 फीसदी तक उन्हें छूट मिली है जिसे अब सरकार ने कम करके 25 फीसदी का कैप लगा दिया है. इसके अलावा पड़ोसी राज्यों और शहरों में भी कंपटीशन बढ़ा है और अब हरियाणा के शहर जैसे गुरुग्राम और फरीदाबाद भी दिल्ली से मिल रही चुनौतियों की वजह से दाम और कम कर रहे हैं.
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