इलेक्टोरल बॉन्ड पर CAA जैसा हमलावर क्यों नहीं हो रहे केजरीवाल और राहुल गांधी?
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देश के सबसे मुखर नेताओं में शुमार अरविंद केजरीवाल इलोक्टरल बॉन्ड के मुद्दे पर शांत दिख रहे हैं. सोशल मीडिया साइट एक्स के वॉल पर उन्होंने कल शाम के बाद करीब आधा दर्जन ट्वीट किया है पर इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर एक भी शब्द नहीं बोला है
इलेक्टोरल बॉन्ड या कहें कि चुनावी चंदे के धंधे का खेल सबके सामने आ गया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा को चुनाव आयोग ने जारी कर दिया है.चुनाव आयोग के मुताबिक भाजपा सबसे ज्यादा चंदा लेने वाली पार्टी है.दूसरे नंबर पर आश्चर्यजनक रूप से तृणमूल कांग्रेस का नाम है,जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नाम तीसरे नंबर पर है.
कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया है कि देश में आजादी के बाद का ये सबसे बड़ा घोटाला है. पर आश्चर्यजनक बात यह है कि दिल्ली के चीफ मिनिस्टर और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस नेता राहुल गांधी आखिर इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाने में सुस्ती क्यों दिखा रहे हैं. चुनाव आयोग द्वारा बांड खरीदने वालों की सूची वेबसाइट पर डाल दी गई है. देश भर के जर्नलिस्ट और नेता इस सूची को लेकर केंद्र सरकार और पीएम नरेंद्र मोदी पर हमलावर हैं पर अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी अभी भी कोई बयान नहीं जारी कर सके हैं. जबकि सूची जारी हुए करीब 20 घंटे बीत चुके हैं.
1-राहुल-केजरीवाल की इस मुद्दे पर सुस्ती
इलेक्टोरल बॉन्ड के गंदे धंधे पर देश के सबसे मुखर नेताओं में शुमार अरविंद केजरीवाल शांत दिख रहे हैं. सोशल मीडिया साइट एक्स पर उन्होंने कल शाम के बाद करीब आधा दर्जन ट्वीट किया है पर इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर एक भी शब्द नहीं बोला है.केजरीवाल लगातार सीएए के मुद्दे पर बोल रहे हैं और लिख रहे हैं. कांशीराम, एडमिरल रामदास को श्रद्धांजलि दे रहे हैं, साहिब सिंह वर्मा का नमन भी कर रहे हैं पर इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में कुछ नहीं बोल रहे हैं. हो सकता है कि पहले ठीक से जांच परख लें उसके बाद तैयारी के साथ बोलें.
यही हाल राहुल गांधी का भी है . करीब 3 दिन पहले उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड पर मुंह खोला था और नरेंद्र मोदी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था. पर इस बीच वे महिलाओं, किसानों , मजदूरों को न्याय दिलाने में व्यस्त हैं.जाहिर है कि वो भी अभी इलेक्टोरल बॉन्ड की जो सूची जारी हुई है उसका अध्ययन नहीं कर पाएं हैं. उसे अपने हिसाब से सुरक्षित बनाकर ही बोलना होगा. मतलब साफ है कि इलेक्टोरल बॉन्ड को लोकसभा चुनावों में मुद्दा बनाने लायक नहीं समझते हैं.
2-जनता पहले से ही समझती है चंदे का धंधा दरअसल आम जनता पहले ही समझती रही है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के नाम पर बहुत खेला होता है. जिस पार्टी के सत्ता में आने की ज्यादा उम्मीद रहती है पूंजीपति उस पार्टी के लिए अपनी तिजोरी खोल देते हैं. बहुत बड़े मात्रा में चुनावों में काले धन को भी खपाया जाता रहा है. अब सरकार ने सब कुछ डिजिटल कर दिया है.अवैध रूप से मिलने वाले कैश की रकम को वैध किया जा सके इसलिए ही इलेक्टोरल बॉन्ड का कानून लाया गया है. फर्क बस इतना ही है कि पहले कैश में लिया जाता था अब चेक में लिया जाने लगा है.पहले भी इलेक्टोरल बॉन्ड पूंजीपति इसी चक्कर में देते थे कि अपने लिए वो मनमाफिक नीतियां बनवा सकें. बहुत कुछ वैसा ही है पर इतनी साफगोई जरूर है कि अब अगर कोई संवैधानिक संस्थान इस संबंध में रिपोर्ट मांग ले तो सब जगजाहिर जो जाएगा. जो पहले नहीं था. जैसे कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले पांच सालों का हिसाब दुनिया के सामने रखने को कहा तो एसबीआई ने चुनाव आयोग के सारी जानकारी सौंप दी. पहले ये सब कैश में हो रहा था इसलिए अगर सुप्रीम कोर्ट तो क्या देश की संसद भी उन जानकारियों को हासिल नहीं कर पाता.
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