
अरुणाचल पर Sorry, पैंगोंग झील पर ऑन्सर ही डिलीट... Deepseek में समाया है चाइनीज डीप स्टेट का DNA!
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डीपसीक में ओपनएआई के चैटजीपीटी और गूगल के जेमिनी के साथ प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता हो सकती है. लेकिन जब राजनीतिक और सामरिक रूप से संवेदनशील सवालों की बात आती है, तो इस चैटबॉट में चीइनीज स्टेट का DNA नजर आता है. इसमें भारत के लिए खास मैसेज है.
यदि आप किसी खोह या गुफा में नहीं रहते हैं तो जरूर जानते होंगे कि बमुश्किल दो सप्ताह पहले लॉन्च किए गए AI चैटबॉट डीपसीक (DeepSeek) ने अमेरिका के टेक वर्ल्ड में खलबली मचा दी है. डीपसीक ने लोकप्रियता के मामले में पहले ही रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं, अमेरिका के शेयर बाजारों को हिलाकर रख दिया है और कुछ ही दिनों में अरबों डॉलर का सफाया कर दिया है. डीपसीक की लॉन्चिंग ने AI की प्रतिष्ठित दुनिया के द्वारपाल बने Nvidia को भी छिपने के लिए मजबूर कर दिया है.
भारत की जनता भी डीपसीक से सम्मोहित है. लेकिन इससे पहले की डीपसीक भर आप आंख मूंद कर यकीन करें हमें एक अहम सवाल पूछना है: क्या हम डीपसीक पर भरोसा कर सकते हैं?
ड्रैगन के फिंगरप्रिंट
इंडिया टुडे ने कुछ राजनीतिक रूप से संवेदनशील सवालों के साथ इस चीनी चैटबॉट की टेस्टिंग की, और यह महसूस करने में हमें देर नहीं लगी कि इसके मूल में, वास्तव में चीनी डीएनए है; ये नया चीनी प्रोडक्ट जल्द भारत में सरकारी जांच के दायरे में आ सकता है और इसका भी वही हश्र हो सकता है जैसा 2020 में भारत में बैन किए गए 59 चीनी ऐप्स (टिकटॉक सहित) का हुआ.
हमने पाया कि ये चैटबॉट को ऐसे उत्तरों को छोड़ देता है या सेंसर कर देता है जो चीनी सरकार के राजनीतिक रुख से मेल नहीं खाते हैं. इसमें भारतीय राज्यों की सीमाओं के बारे में सरल उत्तर भी शामिल हैं. डीपसीक के डीपथिंक (R1) मॉडल ने भारत में चीनी आक्रमकता, गलवान संघर्ष, अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन जैसे विवादास्पद मुद्दों पर सीधे सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया. कई बार इसने जवाब तो दिया लेकिन उसे एक पल में हटा दिया.
यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं कि डीपसीक के साथ हमारी बातचीत कैसी रही.

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