अयोध्या के अवसाद में कब तक डूबी रहेगी बीजेपी, रामलला से दूरी क्यों बना रहे हैं पार्टी के नेता?
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अयोध्या की हार को बीजेपी भुला नहीं पा रही है. पर बीजेपी को यह समझना होगा कि अयोध्या में कोई पहली बार बीजेपी को हार नहीं मिली है. फिर तीसरी बार अगर केंद्र में लगातार पार्टी को सत्ता मिली है तो क्या उसमें रामलाल मंदिर की बिलकुल भूमिका नहीं है? अब तक हिमंता बिस्व सरमा ही आगे आए हैं, जो कह रहे हैं कि वे अयोध्या जाकर भगवान राम से आशीर्वाद लेंगे.
भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में करारी हार हो या केंद्र में सरकार बनाने के लिए पूर्ण बहुमत के लायक सीट न जीतने का गम, कोई भी दुख अयोध्या में मिली पराजय के बराबर नहीं है. पर राजनीति और युद्ध में कोई भी पराजय स्थाई नहीं होती है. रण में सेनापति का रोल हमेशा युद्ध करना ही होता है. आज मिली हार को कल विजय में बदलना होता है. सेनापतियों के लिए किसी हार को अवसाद मान लेना ठीक नहीं होता. पर भारतीय जनता पार्टी अयोध्या की हार से उबर नहीं पा रही है. चुनाव परिणाम आने के 10 दिन बीतने जा रहे हैं पर पार्टी के नेताओं को अब भी राम लला याद नहीं आ रहे हैं. अब तक केवल असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा के बारे में ही यह खबर आई है कि वो अयोध्या आ रहे हैं राम लला के दर्शन करने. आखिर बीजेपी नेताओं को क्या हो गया है और वे अयोध्या को लेकर क्यों अवसाद में हैं, आइये समझते हैं.
जय जगन्नाथ के संदेश को समर्थकों ने गलत समझ लिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए चुनाव परिणाम को बीजेपी और एनडीए का जीत बताया था. पर जय श्रीराम की जगह जय जगन्नाथ का संबोधन किया था. दरअसल प्रधानमंत्री का आशय ये था कि भारतीय जनता पार्टी ने एक नए किले को फतह किया है. उस किले का नाम उड़ीसा है. चूंकि उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण/विष्णु) का वास है, इसलिए पीएम ने जय जगन्नाथ का उदघोष किया. रामलला भी विष्णु के ही अवतार हैं और श्रीकृष्ण भी. पर पार्टी कार्यकर्ताओं तक शायद संदेश गलत चला गया. क्योंकि चुनाव जीतने के बाद भी नेता और कार्यकर्ता अयोध्या के श्रीराम मंदिर की न चर्चा कर रहे और न ही जयश्रीराम का उद्घोष कर रहे. गलत संदेश जाने का एक और कारण यह रहा कि चुनाव जीतने की बात तो बीजेपी कर रही है पर अभी तक विजयश्री का आशीर्वाद लेने राम लला के पास न केंद्र से और न ही यूपी का कोई कद्दावर नेता अयोध्या पहुंचा है. शायद यही कारण है कि अब कोई भी कार्यकर्ता या नेता राम लला का नाम लेने से परहेज करता दिख रहा है. महीने में 3 बार अयोध्या जाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी चुनाव परिणाम आने के बाद अयोध्या की ओर रुख नहीं किया.
बाबरी विध्वंस पर भी ऐसा हुआ था पर पार्टी नहीं हुई थी विचलित
अयोध्या में हमेशा से बीजेपी का परफार्मेंस खास नहीं रहा है. पर यह अयोध्या का तेज और राम लला का प्रताप ही है कि 1984 में केवल 2 संसदीय सीट जीतने वाली बीजेपी आज देश की सबसे ताकतवर पार्टी बनकर बैठी है. राम मंदिर के उद्घाटन के बाद ही तुरंत बीजेपी नहीं हारी है, इसके पहले भी जब राम मंदिर निर्माण से संबंधित कोई घटना हुई तो पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विवादास्पद ढांचे के गिरा देने के बाद अयोध्या विधान सभा क्षेत्र में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को समाजवादी पार्टी नेता तेज नारायण पांडे उर्फ पवन पांडे ने हराया था. पवन पांडे ने 5405 वोटों के अंतर से अयोध्या विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया. यही नहीं उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार की वापसी भी नहीं हो पाई थी.
1985 में हुई पालमपुर बैठक में भाजपा ने पहली बार पार्टी मंच से राम जन्मभूमि को मुक्त कराने का संकल्प लिया. अयोध्या के नाम पर 1989 के लोकसभा चुनाव में भाजपा पूरी हिंदी पट्टी पर छा गई, किंतु फैजाबाद सीट (अयोध्या) से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के मित्रसेन यादव चुने गए. यही नहीं अयोध्या विधानसभा सीट भी बीजेपी हार गई थी. वहां से जनता दल के जय शंकर पांडेय जीते थे.
इसलिए अगर 2024 में भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर हार गई तो उसमें निराश होने जैसी कोई बात नहीं है. 54,567 वोटों से हार कोई बहुत बड़ी हार नहीं है. आखिर BJP के लल्लू सिंह को 4,99,722 वोट जो मिले वो राम लला के नाम पर ही मिले. करीब 5 लाख लोग लल्लू सिंह का चेहरा देखकर वोट नहीं दिए. वो सिर्फ राम लला के नाम पर ही बीजेपो को वोट दिए थे. इसलिए इन 5 लाख लोगों का तिरस्कार किसी भी कीमत पर नहीं होनी चाहिए.
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