
JNU में ईरान, फ़िलिस्तीन और लेबनान के प्रतिनिधियों का सेमिनार रद्द, संभावित तनाव के चलते लिया फैसला
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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में ईरान, फिलिस्तीन और लेबनान के राजदूतों के सेमिनार रद्द कर दिए गए हैं. ईरानी राजदूत डॉ. इराज इलाही का गुरुवार सुबह एक सेमिनार में भाषण था, लेकिन कुछ घंटे पहले ही छात्रों को रद्द होने की सूचना दी गई. 7 और 14 नवंबर को फिलिस्तीनी और लेबनानी राजदूतों के सेमिनार भी रद्द किए गए.
राजधानी दिल्ली में स्थिति जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में होने वाले सेमिनार को कैंसिल कर दिया गया है. सूत्रों के मुताबिक, इस सेमिनारों में ईरान, फिलिस्तीन और लेबनान के प्रतिनिधी भाग लेने वाले थे. उन्होंने पुष्टि की कि एसआईएस के डीन की ओर से आयोजकों को यह संदेश आया है कि किसी भी ऐसे सेमिनार के लिए पहले से अनुमति लेनी होगी.
सेमिनार से कुछ घंटे पहले आया छात्रों को मेल
गुरुवार को सुबह 11 बजे ईरानी राजदूत डॉ. इराज इलाही एक सेमिनार में "ईरान पश्चिम एशिया में हालिया विकास को कैसे देखता है" इस विषय पर बोलने वाले थे लेकिन, सेमिनार से कुछ घंटे पहले, समन्वयक सिमा बैद्य ने सुबह 8 बजे छात्रों को एक ईमेल भेजा, जिसमें सुबह 9 बजे बताया गया कि यह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया है.
इस ईमेल में बैद्य ने यह भी बताया कि 7 नवंबर को फिलिस्तीन में हिंसा पर होने वाला सेमिनार, जिसे फिलिस्तीनी राजदूत अदनान अबू अल-हैजा संबोधित करने वाले थे और 14 नवंबर को लेबनान की स्थिति पर होने वाला सेमिनार जिसे लेबनानी राजदूत डॉ. रबी नरश संबोधित करने वाले थे, दोनों रद्द कर दिए गए हैं.
ईरानी और लेबनानी दूतावासों के सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कार्यक्रमों को रद्द करने का निर्णय विश्वविद्यालय द्वारा लिया गया था और वे इसके कारणों से अनजान थे. फ़िलिस्तीनी दूतावास ने किसी भी टेक्स्ट मैसेज या फ़ोन कॉल का जवाब नहीं दिया है. विश्वविद्यालय के सूत्रों ने कहा है कि स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (SIS), जिसके अंतर्गत पश्चिम एशियाई अध्ययन केंद्र आता है, के वरिष्ठ प्रोफेसरों ने कैंपस में संभावित विरोध को लेकर चिंता जताई थी. उनका मानना था कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर सेमिनारों से कैंपस में तनाव पैदा हो सकता है, इसलिए इन्हें रद्द करना उचित समझा गया.
विश्वविद्यालय के एक सूत्र ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इन सेमिनारों का मकसद वर्तमान अंतरराष्ट्रीय हालात के बीच पश्चिम एशियाई देशों के नज़रिए को समझना था लेकिन इस बात को लेकर चिंता थी कि इन विषयों पर कैंपस में कैसी प्रतिक्रिया हो सकती है.

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