HMPV In India: भारत में क्या सर्दी में बढ़ेगा HMPV वायरस का प्रकोप? कोरोना जैसे होंगे हालात? 5 डॉक्टर्स ने दिए सारे जवाब
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ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (HMPV) वायरस चीन के बाद भारत में भी फैल गया है. इस वायरस के लक्षण क्या हैं, इससे बचने के लिए क्या करें और क्या न करें, इस वायरस से भारत के लिए कितना जोखिम है, इस बारे में कई डॉक्टर्स की राय जानेंगे.
HMPV virus in India: भारत में सोमवार को बच्चों में ह्यूमन मेटाप न्यूमोवायरस (HMPV) संक्रमण के सात मामले सामने आए. ये मामले बेंगलुरु, नागपुर और तमिलनाडु में दो-दो और अहमदाबाद में एक हैं और ये ऐसे समय में सामने आए हैं जब चीन और अन्य देश वायरल बुखार और निमोनिया के बड़े प्रकोप से जूझ रहे हैं. भारत में HMPV वायरस के मिले मामलों को लेकर लोगों में चिताएं तो हैं लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि HMPV के लिए बहुत कम मामलों में ही अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है और उचित सावधानियों से इसके जोखिम को रोका जा सकता है.
HMPV एक आम श्वसन वायरस है जो निचले और ऊपरी श्वसन संक्रमण का कारण बनता है. यह कोई नया वायरस नहीं है जो अभी पैदा हुआ है बल्कि पिछले कुछ सालों में दूसरे देशों में भी इसके मामले सामने आए हैं. HMPV के लिए कोई विशेष एंटीवायरल ट्रीटमेंट नहीं है बल्कि इसके प्रसार को रोककर ही इससे बचा जा सकता है. अब ऐसे में लोगों के मन में सवाल भी हैं कि आखिर इस वायरस से कैसे बचा जाए, क्या किया जाए और क्या न किया जाए? तो आइए इस बारे में डॉक्टर्स का क्या कहना है और वे कौन सी सावधानी बरतने की सलाह देते हैं, ये जान लेते हैं.
भारत को कितना जोखिम?
पुणे में बीजे मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. राजेश कार्यकार्ते ने इस वायरस के बारे में कहा, 'हमारे शरीर ने समय के साथ वायरस की मौजूदगी के हिसाब से खुद को ढाल लिया है. अधिकतर मामलों में, सभी वायरस के संक्रमण लक्षणहीन या हल्के होते हैं लेकिन कुछ व्यक्तियों के लिए खास तौर पर जिन्हें कोई गंभीर बीमारी है, उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति पैदा हो सकती है. कोविड-19 के विपरीत, HMPV लंबे समय से मौजूद है और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह भारत में पहले की तुलना में अभी अधिक तेजी से फैल रहा है.' ग्लोबल एयर पॉल्यूशन एंड हेल्थ पर WHO टेक्निकल एडवाइजर और पीएसआरआई इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के चेयरमैन डॉ. जीसी खिलनानी ने भी कहा, 'यह वायरस कमजोर इम्यूनिटी और वृद्ध लोगों के लिए जोखिम पैदा कर सकता है.'
मैक्स हेल्थकेयर के डॉ. संदीप रुधिराजा का कहना है, 'डायबिटीज, हृदय रोग या किडनी फेलियर जैसी मौजूदा स्वास्थ्य स्थितियों वाले बुजुर्ग व्यक्तियों को विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए. इस वायरस से वयस्कों में हल्के लक्षण दिखाई देते हैं और बुजुर्ग रोगियों में गंभीर लक्षण विकसित हो सकते हैं.' एम्स नई दिल्ली में मेडिसिन डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नीरज निश्चल का कहना है, 'सबसे पहले, मैं यह कहना चाहूंगा कि इसकी तुलना कोविड-19 से न करें क्योंकि कोविड वायरस पूरी तरह से एक नया वायरस था और हममें से किसी के पास इसके खिलाफ इम्यूनिटी नहीं थी लेकिन HMPV वायरस 2001 से ही हमारे आसपास है और इस बात के सबूत भी हैं कि यह वायरस 1950 के दशक के अंत से ही हमारे साथ है.'
'मुझे लगता है कि इस वायरस के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि 10 साल की उम्र तक, ज़्यादातर बच्चों में इस वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी होती है. इसलिए मैं जो कहने की कोशिश कर रहा हूं वह यह है कि कोविड-19 एक बिल्कुल अलग चीज थी और यह वायरस अलग है. यह कोई नया वायरस नहीं है और मुझे नहीं लगता कि हमें इस वजह से घबराना चाहिए.' आईसीएमआर के पूर्व हेड साइंटिस्ट डॉ. रमन गंगाखेडकर का कहना है, 'माना जाता है कि HMPV अपनी खोज से पहले दशकों, संभवतः सदियों से मनुष्यों में एक-दूसरे में फैल रहा था. उस समय अच्छी तकनीक और उपकरणों की कमी के कारण इसकी पहचान नहीं की जा सकी थी. यह आमतौर पर छोटे बच्चों को प्रभावित करता है और अधिकांश मामलों में हल्के सांस संबंधित लक्षण पैदा करता है.' इंडियन आर्म्ड फोर्स के पूर्व महामारी विज्ञानी डॉ. अमित्व बनर्जी का कहना है, 'अगर हम बड़े पैमाने पर टेस्टिंग करें तो हम देखेंगे कि लगभग हर किसी में एचएमपीवी के खिलाफ एंटीबॉडीज हैं. अधिकतर बच्चे पांच साल की उम्र तक संक्रमित हो जाते हैं. यह ऊपरी और निचले श्वसन पथ दोनों को प्रभावित कर सकता है और उसके बाद निमोनिया हो सकता है.'
यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर की वायरोलॉजिस्ट सारा सॉयर कहती हैं- वायरस हमारी दुनिया में नहीं रहे हैं बल्कि हम वायरस की दुनिया में रह रहे हैं. उन्होंने हमें जीवनदान दिया हुआ है. पृथ्वी पर मौजूद कुल जीव-जंतुओं कीआबादी वायरस की संख्या की तुलना में कुछ भी नहीं है. किस्मत अच्छी है कि सभी वायरस हमें नुकसान नहीं पहुंचाते. क्योंकि वायरस बेहद चुनिंदा कोशिकाओं पर ही हमला करते हैं.
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