
15 साल में 11317 मौतें... CPEC के लिए बलूचिस्तान में चीन से दोस्ती पाकिस्तान को कितनी महंगी पड़ रही है?
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पाकिस्तान ने हमेशा सुलह पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय आंदोलनों से निपटने के लिए सैन्य बल का उपयोग करना पसंद किया है. इस वजह से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और बलूच आंदोलन पाकिस्तानी दृष्टिकोण का विरोध करने के लिए एकजुट हो गए हैं.
पाकिस्तान (Pakistan) के बलूचिस्तान प्रांत में कई ठिकानों पर हाल ही में हुए हमले इलाके में बढ़ रही उठापटक की तरफ इशारा हैं. पिछले दिनों मार्च के दौरान बलूचिस्तान प्रांत में स्थित ग्वादर बंदरगाह पर कुछ हथियारबंद लोग ग्वादर पोर्ट अथॉरिटी (GPA) के परिसर में घुसे और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. पाकिस्तानी अखबारों की रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि स्थानीय सुरक्षाकर्मियों ने जवाबी कार्रवाई में आठ हमलावरों को ढेर कर दिया. इस हमले की जिम्मेदारी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने ली थी. ये हमले बलूचिस्तान के सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाने वाली समस्याओं और नासूर बन चुके हालात का नतीजा थे. हमलों का एक प्रमुख कारण CPEC (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) की इच्छा है, जो बलूचिस्तान के जरिए झिंजियांग से ग्वादर तक एक कम्यूनिकेशन कॉरिडोर चलाने की थी, जिसका प्रांत के निवासियों ने समर्थन नहीं किया.
पाकिस्तान को मिलता रहा है चीन का समर्थन
दशकों से चीन का करीबी सहयोगी रहा पाकिस्तान अपनी कई समस्याओं के समाधान के लिए चीन की उदारता का इस्तेमाल करना चाहता है. जबकि उनके भारत-केंद्रित एजेंडे में कई समानताएं हैं. पाकिस्तान को उम्मीद थी कि चीन, भारत के खिलाफ उसके साथ जुड़ जाएगा. 1947 के बाद पर नजर दौड़ाने से पता चलता है कि पाकिस्तान को चीन का कूटनीतिक और सैन्य समर्थन मिलता रहा है.
साल 1963 में एक दिखावटी सीमा समझौते के आधार पर कश्मीर की शक्सगाम घाटी को चीन को सौंपने से लेकर सीपीईसी की मेजबानी और उत्तरी गिलगित पर नियंत्रण को लगभग सौंपने तक, चीन को पाकिस्तान द्वारा दिए गए रणनीतिक उपहारों की सूची लंबी है.
ऐतिहासिक रूप से, पाकिस्तान ने ज्यादातर सुरक्षा और विकास संबंधी प्राथमिकताओं के आधार पर गठबंधन चुने हैं. अमेरिका के साथ देश के जुड़ाव ने उसे कई फायदे दिए हैं. हालांकि, अफगानिस्तान में फायदा उठाने और रणनीतिक गहराई हासिल करने के लिए गुप्त संस्थाओं का उपयोग करने की इसकी दोषपूर्ण दृष्टि उजागर हो गई है. नतीजतन, अफगानिस्तान सहित पूरे इलाके में असुरक्षा फैली हुई है. अमेरिका और चीन जैसे शक्तिशाली सहयोगियों की तलाश में, पाकिस्तान ने पश्चिमी प्रांतों और उनके लोगों को एकीकृत करने की उपेक्षा की है.
पाकिस्तान ने हमेशा सुलह पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय प्रतिरोध आंदोलनों से निपटने के लिए सैन्य बल का उपयोग करना पसंद किया है. इस वजह से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और बलूच आंदोलन पाकिस्तानी दृष्टिकोण का विरोध करने के लिए एकजुट हो गए हैं.

पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान पर जबरन कब्जे के बाद से बलूच लोग आंदोलन कर रहे हैं. पाकिस्तानी सेना ने पांच बड़े सैन्य अभियान चलाए, लेकिन बलूच लोगों का हौसला नहीं टूटा. बलूच नेता का कहना है कि यह दो देशों का मामला है, पाकिस्तान का आंतरिक मुद्दा नहीं. महिलाओं और युवाओं पर पाकिस्तानी सेना के अत्याचार से आजादी की मांग तेज हुई है. देखें.