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शख्सियत: उत्तर प्रदेश के 'मेट्रो मैन' कुमार केशव
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उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कार्पोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर कुमार केशव कानपुर और आगरा में अत्याधुनिक तकनीक से लैस मेट्रो रेल के निर्माण में जुटे हैं. इन्होंने ‘कम्युनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोल सिस्टम’ से चलने वाली लखनऊ मेट्रो का निर्माण किया है.
उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कार्पोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर (एमडी) कुमार केशव रोज सुबह आठ बजे से अपने मोबाइल में व्यस्त हो जाते हैं. सुबह आठ बजे तक इनके मोबाइल पर कानपुर और आगरा की निर्माणाधीन मेट्रो ट्रेन की प्रगति रिपोर्ट आ आती है. प्रोजेक्ट डायरेक्टर द्वारा भेजी गई इस रिपोर्ट में बीते 24 घंटे में किया गया कार्य, अब तक किया गया कुल कार्य, कितना काम हो चुका है और अभी कितना बाकी है, अगले 24 घंटे में कितने काम का लक्ष्य है, ऐसी बहुत सारी जानकारियां कुमार केशव के मोबाइल पर रोज पहुंच जाती हैं. सुबह दस बजे लखनऊ में अपने घर से गोमतीनगर में आंबेडकर पार्क के सामने मौजूद अपने दफ्तर पहुंचने से पहले कुमार केशव मोबाइल पर आई सभी रिपोर्ट को पढ़कर अपना होमवर्क कर चुके होते हैं. दफ्तर पहुंचते ही केशव अपने दफ्तर के अधिकारियों के साथ बैठक में व्यस्त हो जाते हैं. लखनऊ मेट्रो का सफलतापूर्वक निर्माण करने वाले केशव अब अपनी टीम के जरिए कानपुर और आगरा में मेट्रो का निर्माण करने में जुट गए हैं. लखनऊ मेट्रो में उपलब्ध अल्ट्रा मॉर्डन तकनीकी का उपयोग करने के बाद केशव कानपुर और आगरा की मेट्रो में कई सारी नई व्यवस्थाओं की शुरुआत करने जा रहे हैं. लखनऊ मेट्रो की शुरुआत के पहले ही दिन से स्मार्टकार्ड और टिकट वेंडिग मशीन का उपयोग होने लगा था जो देश की अन्य किसी मेट्रो में शुरुआत से नहीं हुआ था. लखनऊ मेट्रो में सिग्नल सिस्टम भी काफी एडवांस लगाया गया है. यह ‘कम्युनिकेशन बेस्ड ट्रेन कंट्रोल सिस्टम’ पर आधारित है. इसमें रेडियो सिग्नल से ट्रेन को कंट्रोल किया जाता है. इससे एक मेट्रो ट्रेन के पीछे 300 मीटर की दूरी पर दूसरी मेट्रो ट्रेन को चलाया जा रहा है. इस सिस्टम के जरिए पीछे की मेट्रो ट्रेन आगे चल रही मेट्रो ट्रेन की गति भांप कर उसके अनुसार अपनी गति नियंत्रित करती रहती है. इस तकनीकी में ड्राइवर का इनपुट बहुत ज्यादा नहीं होता है. विश्व की हाइस्पीड ट्रेन में इस सिस्टम का उपयोग होता है. कोच्चि मेट्रो के बाद लखनऊ मेट्रो देश की दूसरी मेट्रो है जिसमें इस तरह का सिस्टम लगाया गया है. इसकी वजह से स्टेशन पर यात्रियों का दबाव बढ़ने पर मेट्रो की ‘फ्रीक्वेंसी’ भी बढ़ा दी जाती है. लखनऊ मेट्रो में ऊर्जा बचाने के लिए सौ फीसद लाइटें एलईडी हैं. इस वजह से लखनऊ मेट्रो के सभी स्टेशन और डिपो को ‘इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल’ से प्लैटिनम रेटिंग मिली है. केशव ने लखनऊ मेट्रो में ‘ट्विन यू गर्डर’ का उपयोग किया गया जिसके चलते जमीन से लखनऊ मेट्रो ट्रेन की पटरियों की ऊंचाई दिल्ली मेट्रो की तुलना में काफी कम है. दिल्ली और बेंगलूरू की मेट्रो की तुलना में लखनऊ में मेट्रो की पटरियों की ऊंचाई दो मीटर कम है. ऊंचाई कम करने के कारण लखनऊ मेट्रो में सीढि़यां कम रखनी पड़ीं. ‘स्केलेटर्स’ की ऊंचाई भी इसी अनुपात में कम रही. ‘स्केलेटर्स’ और लिफ्ट की ऊंचाई कम रखने के कारण बिजली की भी बचत हुई.
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