
सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति मुर्मू को 'poor lady' कहकर संसदीय मर्यादा तो लांघ ही दी है!
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सोनिया गांधी को यह समझना चाहिए कि अगर मोदी सरकार की जगह कांग्रेस की सरकार आ जाती है और राष्ट्रपति मुर्मू ही रहती हैं तो उन्हें कांग्रेस का गुणगान करने वाला बोरिंग भाषण पढ़ना पड़ेगा. सवाल ये है कि, क्या मुर्मू के पहले के राष्ट्रपति अपने मन से मनोरंजक अभिभाषण तैयार करते थे?
संसद में शुक्रवार को बजट सत्र से पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण के बाद सोनिया गांधी ने इस तरह के बयान दिए हैं जिनको लेकर कहा जा रहा है कि यह सामंती मानसिकता के अलावा और कुछ नहीं. सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति के लिए poor lady यानी बेचारी शब्द का इस्तेमाल किया और कहा कि 'राष्ट्रपति का अभिभाषण बहुत बोरिंग (उबाऊ) था. आखिर में वे बहुत थक गई थीं, बेचारी बमुश्किल कुछ बोल पा रही थीं.' सोनिया के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया. सोनिया गांधी को लेकर काफी तीखी प्रतिक्रियाएं दी गईं. राष्ट्रपति भवन ने भी सोनिया की टिप्पणी को अवांछनीय और अस्वीकार्य करार दिया. इसके अलावा द्वारका (दिल्ली) में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश के एक शाही परिवार का एक सदस्य आदिवासी समुदाय की बेटी के भाषण को बोरिंग कहता है, उसे गरीब कहता है, उसे वो एक चीज़ कहता है. उन्हें पिछड़े तबके से बढ़ता कोई व्यक्ति पसंद नहीं आता. वे उसे कदम कदम पर अपमानित करते हैं.
सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीतिक छींटाकशी अपनी जगह है, लेकिन सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पर टिप्पणी करते हुए शब्दों का ख्याल न रखकर विवाद को न्यौता दिया है. यह मामला इसलिए भी गंभीर हो जाता है क्योंकि वे न सिर्फ एक वरिष्ठ बल्कि एक गंभीर राजनेता हैं. जिन्हें संसदीय परंपराओं के बीच रहने का लंबा अनुभव है. ऐसे में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर टिप्पणी करने के बजाय सीधे राष्ट्रपति पर टिप्पणी करके उन्होंने अपरिपक्वता दर्शायी है. आइये, उनकी टिप्पणी और उसके मायनों का थोड़ा विश्लेषण करें:
1-राष्ट्रपति के लिए पुअर लेडी का संबोधन संसदीय मर्यादा के अनुरूप नहीं
सोनिया गांधी देश की वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं जिन्हें यूपीए 1 और यूपीए 2 सरकार की चेयरपर्सन के रूप में देश को मुश्किल के समय में चलाने का श्रेय जाता है. इतने अनुभवी नेता के लिए राष्ट्रपति के लिए इस तरह का शब्द का इस्तेमाल करना शोभा नहीं देता है. ऐसा नहीं है कि उन्हें राष्ट्रपति की क्या मर्यादा होती है उसकी जानकारी नहीं है. बात सिर्फ इतनी है कि कांग्रेस विशेषकर गांधी परिवार के लोग अब भी ये समझते हैं कि देश के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण वे खुद हैं.
2-सरकार के कामकाज का लेखा जोखा होता है राष्ट्रपति का अभिभाषण, इसे बोरिंग कहना परंपरा को भूलना है
यूपीए के दस साल के कार्यकाल में क्या राष्ट्रपति के अभिभाषण में किसी तरह का इनोवेशन हुआ था? यदि किसी को राष्ट्रपति का अभिभाषण बोरिंग लगता है तो वह अतीत से बोरिंग रहा है. कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल में भी वह ऐसा ही था. क्योंकि अभिभाषण मे सरकार के कामकाज का ही लेखा-जोखा होता है, इसलिये जाहिर है कि विपक्ष उस पर अपना विरोध दर्ज कराता है. लेकिन, इसे बोरिंग कहना है तो ऐसा है मानो कि उसे मनोरंजक होना चाहिये. देश ने कुल 14 राष्ट्रपति अभी तक देखें हैं और सभी ने सरकार के लिखित अभिभाषण को पढ़ने की परंपरा का ही पालन किया है. हां, सबकी भाषणशैली अलग अलग होती है. राष्ट्रपति मुर्मू ओडिशा के आदिवासी अंचल से आती हैं. उनकी मातृभाषा उडि़या होने के बावजूद उन्होंने हिंदी में भाषण दिया है. ऐसे में सोनिया गांधी यह भले बोरिंग लगा हो, लेकिन राष्ट्रपति मुर्म का भाषण कई मायनों में अनुकरणीय है. देश ने तो पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का दौर भी देखा है. मनमोहन सिंह की स्पीच चाहे लोकसभा में हो या लाल किले की प्राचीर से हो उसे भी सुनना मुश्किल ही होता था. पर पूरा देश ही नहीं विपक्ष भी उन्हें ध्यान से सुनता था. विपक्ष के किसी नेता ने उनकी शैली और उनके स्पीच को लेकर इस तरह की टिप्पणी नहीं की थी.

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