
राणा सांगा को लगी गोली, झाला के सरदार का बदला वेश और सिलहड़ी तोमर की दगाबाजी... कहानी बाबर से हुए खानवा युद्ध की!
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Battle of Khanwa: बाबर के कमांडर और सरदार चाहते थे कि पानीपत जीता जा चुका था. सोना और हीरा लूटा जा चुका अब समय अपने वतन लौटने का था. 2000 सालों से हिन्दुस्तान फतह करने के लिए निकले राजा-लुटेरे ऐसा ही तो करते आए थे. लेकिन उज्बेक सरदार बाबर कोई तैमूर थोड़े ही था, जो विजय पाकर वापस चला जाता. उसने निर्वासन में भारत को अपना घर बनाने का निश्चय किया
"मुगलों ने राजपूतों के साथ कुछ तीखी मुठभेड़ें कीं. मुगलों ने पाया कि अब उन्हें अफगानों या भारत के किसी भी मूल निवासी से ज़्यादा दुर्जेय दुश्मन से लड़ना होगा. राजपूत आमने-सामने की टक्कर के लिए तैयार थे. अपने सम्मान के लिए जान देने में उन्हें रत्ती भर भी गुरेज नहीं था."
19वीं सदी के स्कॉटिश इतिहासकार विलियम एर्स्किन ने ये कहानी अपनी एक किताब में लिखी है. ये वाकया खानवा की लड़ाई से पहले हुए बयाना की जंग का है. इस जंग में राणा सांगा और बाबर की तलवारें टकरा चुकी थी. और इसमें बाबर को घोर शिकस्त का सामना करना पड़ा था. बाबर इस टक्कर को कभी नहीं भूल पाया. उसने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में लिखा है.
"काफ़िरों (हिंदुओं) ने वो जंग किया कि मुगल सेना काफी हद तक नष्ट हो गई. बयाना में सांगा के नेतृत्व में राजपूत सेना ने हमें दबा दिया और हमारे सैनिकों का हौसला भी जाता रहा."
बयाना में मुगलों को रौंदकर राजपूतों के हौसले सातवें आसमान पर थे. राणा सांगा अब अपनी महात्वाकांक्षाओं का विस्तार दे रहे थे. बयाना का युद्ध (21 फरवरी, 1527) जीतने के बाद उन्होंने हड़ौती, जालोर, सिरोही, डुंगरपुर जैसे राजघरानों की वफादारी हासिल कर ली.
बयाना पर कब्जा करने के बाद महाराणा उत्तर-पूर्व की ओर चले गए और भुसावर पर कब्जा कर लिया. अब दिल्ली और काबुल से बाबर की सप्लाई लाइन कट गई.
इधर पानीपत की पहली लड़ाई में लोदियों को शिकस्त दे चुके बाबर को अपने सपनों की बुनियाद हिलती नजर आ रही थी.