
दलित सियासत, हिंदू एकता और 80-20 का एजेंडा... दीक्षाभूमि से मोदी ने एक साथ साधे कई निशाने
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागपुर में दीक्षाभूमि से दलित पॉलिटिक्स से हिंदू एकता और उत्तर से पूर्वोत्तर तक, एक साथ कई निशाने साधे. पीएम ने समावेशी भारत की बात भी की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिन पहले महाराष्ट्र के नागपुर में थे. संघभूमि और दीक्षाभूमि, ये दोनों संतरों के इस शहर की पहचान से जुड़े हैं और प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दौरे के दौरान इन दोनों ही स्थलों का दौरा किया. पीएम मोदी दीक्षाभूमि पर बने उस स्तूप के भीतर भी गए जहां संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की अस्थियां रखी गई हैं. उन्होंने बाबासाहब को श्रद्धा सुमन अर्पित किए और विजिटर्स बुक में लिखा, "विकसित और समावेशी भारत का निर्माण ही डॉक्टर आंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी." प्रधानमंत्री के दीक्षाभूमि जाने और विजिटर्स बुक में लिखे संदेश में समावेशी भारत की बात, दोनों के ही सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं.
पीएम ने एक तीर से साधे कई निशाने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीक्षा भूमि जाकर, समावेशी भारत की बात कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. पीएम के समावेशी भारत की बात को सामाजिक न्याय के साथ ही दलित पॉलिटिक्स, बुद्धिस्ट पॉलिटिक्स और हिंदुत्व की एकता, कई समीकरण साधने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. दरअसल, साल के अंत तक बिहार में विधानसभा चुनाव हैं और वहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का मुकाबला विपक्षी महागठबंधन से है. महागठबंधन की अगुवाई लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) कर रहा है. लालू की पॉलिटिक्स की पिच भी सामाजिक न्याय ही रहा है.
विपक्षी पार्टियां पिछले लोकसभा चुनाव में यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश करती नजर आईं कि बीजेपी जीती तो बाबासाहब का संविधान बदल देगी. चुनावी जनसभाओं से लेकर संसद सदस्यता की शपथ लेने तक, विपक्षी दलों के प्रमुख नेता भी संविधान की प्रतियां लहराते नजर आए थे. लोकसभा चुनाव में बीजेपी अकेले दम बहुमत के आंकड़े से पीछे रह गई तो इसके पीछे भी संविधान बदलने के नैरेटिव की ही मुख्य भूमिका मानी गई. पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह की डॉक्टर आंबेडकर को लेकर टिप्पणी को भी विपक्षी नेताओं ने बाबासाहब का अपमान बताते हुए उनके और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.
सामाजिक न्याय की पिच
बिहार में चुनाव से पहले सामाजिक न्याय की पिच से लेकर संविधान तक, बीजेपी पहले से ही अलर्ट मोड में है. पीएम के दीक्षाभूमि दौरे को जहां इस नैरेटिव को काउंटर करने की बीजेपी की कोशिश से जोड़ा जा रहा है. वहीं, समावेशी भारत की बात को जातिगत जनगणना के मुद्दे की काट के रूप में देखा जा रहा है. एक पहलू ये भी है कि बिहार की दलित पॉलिटिक्स के दो बड़े चेहरे चिराग पासवान और जीतनराम मांझी एनडीए में हैं, केंद्र में मंत्री भी हैं. वहीं, अब कांग्रेस ने दलित चेहरे (राजेश कुमार) को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है. ऐसे में एनडीए दलित पॉलिटिक्स की पिच पर विपक्ष के लिए किसी भी तरह का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता.

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