यूपी में BJP की हार का कारण आया सामने, क्या पार्टी से दूरी बना रहे हैं गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव समर्थन?
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लोकसभा चुनाव खराब प्रदर्शन के कारणों की रिपोर्ट यूपी बीजेपी चीफ ने पार्टी आलाकमान को सौंप दी हैं. अपनी इस रिपोर्ट में उन्होंने पार्टी के खराब प्रदर्शन के कई कारण गिनाए हैं. रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि राज्य इकाई को अपने मतभेदों को तुरंत सुलझा लेना चाहिए.
उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने पार्टी आलाकमान को लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारणों की रिपोर्ट सौंप दी है. इस रिपोर्ट में बीजेपी की हार के कई कारण गिनाए गए हैं. इनमें राज्य में पार्टी के वोट शेयर में 8 प्रतिशत की गिरावट, कुर्मी और मौर्यों का कम समर्थन और दलित वोटों में आई कमी को पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारणों के रूप में प्रमुखता से सूचीबद्ध किया गया है.
पार्टी में मची अंदरूनी कलह के बीच यह रिपोर्ट आग में घी डालने का काम कर रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी हार के लिए 'अति आत्मविश्वास' को जिम्मेदार ठहराया. तो वहीं उनके डिप्टी केशव प्रसाद मौर्य ने इसका खंडन करते हुए कहा कि 'संगठन सरकार से बड़ा है.'
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि राज्य इकाई को अपने मतभेदों को तुरंत सुलझा लेना चाहिए. साथ ही इस मतभेद को 'अगड़ा बनाम पिछड़ा' संघर्ष में बदलने से रोकने के लिए जमीनी स्तर पर काम शुरू करना चाहिए.
उत्तर प्रदेश में भाजपा का उदय
भाजपा ने 2014 में उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीट में से 71 और 2019 में 62 सीटें जीती थीं. इसने 2017 में राज्य का विधानसभा चुनाव जीता और 2022 में भी राज्य में अपनी सत्ता बरकरार रखी. लोकसभा चुनाव की बात करें तो उत्तर प्रदेश में भाजपा का वोट शेयर 2009 में 18 प्रतिशत के मुकाबले 2014 में बढ़कर 42 प्रतिशत और 2019 में 50 प्रतिशत हो गया. 2014 के आम चुनाव में पार्टी को गैर-यादव ओबीसी का 60 प्रतिशत (31 प्रतिशत की बढ़त) तो वहीं गैर-जाटव अनुसूचित जातियों का 45 प्रतिशत (37 प्रतिशत की बढ़त) समर्थन मिला.
पार्टी ने अपने सामाजिक आधार को ब्राह्मण-बनिया समाज से आगे बढ़ाया और गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों को अपने पाले में शामिल किया. ऐसा करने से एक ऐसा गठबंधन तैयार हुआ जो राज्य की आबादी का लगभग 60 प्रतिशत है. इतने समर्थन के साथ यूपी में चुनाव हारने की गुंजाइश लगभग खत्म हो जाती है. पार्टी राज्य में इन जातीय समूहों को समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से अलग करने में सफल रही. भाजपा इन वर्गों को यह समझाने में कामयाब रही कि कैसे यादव और जाटव सपा और बसपा में पार्टी और सत्ता के प्रमुख पदों पर काबिज हैं. जिससे बाद यादव और गैर-यादव ओबीसी और जाटव और गैर-जाटव दलितों के बीच दरार पैदा हो गई.
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