
मुस्लिम बहुल यूपी में कुंदरकी और दिल्ली में मुस्तफाबाद की जीत क्या बीजेपी के लिए टर्निंग पॉइंट है?
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यूपी में कुंदरकी की जीत के बाद दिल्ली में मुस्तफाबाद की जीत के बारे में चाहे जो कह लें पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी को यहां बहुत बड़ी विजय मिली है. बीजेपी अगर ये काम 2 सीटों पर कर सकती है तो क्या भविष्य में ढेर सारी सीटों पर यही प्रयोग नहीं दुहरा सकती है?
पिछले साल उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बहुल कुंदरकी विधानसभा सीट फिर इस साल दिल्ली विधानसभा की मुस्तफाबाद सीट बीजेपी ने जीतकर यह दिखा दिया है कि मुस्लिम वोटर्स के बीच भी उसकी पहुंच बढी है. हालांकि ऐसे लोगों को कमी नहीं है जो आज भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि दिल्ली के मुस्तफाबाद में बीजेपी की जीत के पीछे मुस्लिम समुदाय का सपोर्ट हो सकता है. राजनीतिक विश्लेषकों का भी कहना है कि मुस्तफाबाद में बीजेपी को मिली जीत मुस्लिम वोटर्स के बंटने के चलते हुई है न कि मुसलमानों का वोट मिलने के चलते. राजनीतिक विश्वेषकों की बात में दम हो सकता है. पर कुंदरकी और मुस्तफाबाद में बीजेपी की जीत में मुसलमानों के समर्थन को बिल्कुल एकतरफा तरीके से खारिज भी नहीं किया जा सकता है.
1-यूपी में मुस्लिम बहुल कुंदरकी की जीत हैरान करने वाली रही
उत्तर प्रदेश में पिछले साल 9 सीटों पर उपचुनाव हुए. कुंदरकी में करीब 65 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम समुदाय के हैं. इसके बावजूद भाजपा प्रत्याशी रामवीर सिंह ने सपा प्रत्याशी मो. रिजवान को 1,44,791 मतों से हराया. कुंदरकी सीट पर अब तक हुए चुनाव में मतों के अंतर की सबसे बड़ी जीत है. जबकि, रामवीर सिंह को मिले मत भी अब तक के प्रत्याशियों को मिले मतों में सबसे अधिक रहे. आश्चर्यजनक ये रहा कि 37 चक्र तक चली मतगणना में भाजपा यहां एक भी चरण में पीछे नहीं रही. अंतिम चरण की मतगणना पूरी होते-होते रामवीर सिंह को 1,70,371 वोट मिले तो सपा को 25,580 मत मिले. यहां की जीत के बारे में कहा गया बीजेपी उम्मीदवार का मुस्लिम टोपी पहनकर चुनाव प्रचार करना काम कर गया. हालांकि प्रदेश में विपक्ष इसे बीजेपी की जीत मानने की बजाय उत्तर प्रदेश प्रशासन की जीत बताया. पर इतने बड़े पैमाने पर हुई जीत विपक्ष के आरोपों को खारिज करने के लिए काफी थी. यही नहीं कुंदरकी में प्रचार के दौरान कई बार ऐसी खबरें आईं जब स्थानीय मुसलमानों ने बीजेपी प्रत्याशी को सिक्कों से तौला था. हो सकता है कि प्रशासन ने कुछ खेल किया हो पर मुसलमानों के सहयोग के बिना प्रशासन भी कुछ खेल नहीं कर पाता.
2-मुस्तफाबाद में कितने मुसलमानों ने सपोर्ट किया होगा?
दिल्ली विधानसभा के चुनावों में मुस्तफाबाद सीट पर बीजेपी के मोहन सिंह बिष्ट ने तीन मुस्लिम उम्मीदवारों आम आदमी पार्टी के अदील अहमद खान ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के ताहिर हुसैन कांग्रेस के अली मेहंदी को हराकर 17,000 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. टीओआई एक रिपोर्ट बताती है कि बीजेपी को यह जीत मुस्लिम मतदाताओं में अपने लिए बदलाव के संकेत के रूप में दिख रही है. पार्टी को उम्मीद है कि यह रुझान दिल्ली के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है. बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष अब्दुल रशीद अंसारी ने कहना है कि दिल्ली में हमारा वोट शेयर बढ़ा है, और हमें लगता है कि इसमें मुस्लिमों और अन्य अल्पसंख्यकों का भी योगदान है.रशीद के अनुसार दिल्ली में मुस्लिम इलाकों में ड्रॉइंग रूम बैठकें आयोजित की गईं, खासकर उत्तर-पूर्वी दिल्ली में, जहां पांच साल पहले सांप्रदायिक दंगे हुए थे.
हालांकि मुस्तफाबाद में बीजेपी की जीत को दूसरे एंगल से भी देखा जा रहा है. इस चुनाव में मुस्लिम मतदाता AAP से नाराज थे और उन्होंने AIMIM और कांग्रेस की ओर रुख किया. इससे मुस्लिम वोट तीन हिस्सों में बंट गया, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ.हालांकि, बीजेपी का दावा है कि कुछ मुस्लिम वोट सीधे उसे भी मिले, हालांकि इसका कोई ठोस आंकड़ा नहीं है.अंसारी कहते हैं कि हमारे पास कोई आंकड़ा नहीं है, लेकिन इतनी बड़ी जीत का अंतर बताता है कि कुछ मुस्लिमों ने भी हमें वोट दिया होगा, भले वे इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार न करें.

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