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महाकुंभ 2025: प्रयागराज ही नहीं, देश में तीन और शहरों में लगता है महाकुंभ, जानिए कब कितने साल में होता है आयोजन
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महाकुंभ-2025 का आयोजन इस बार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा है. कुंभ मेलों का आयोजन एक प्राचीन परंपरा है, जो भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर आयोजित होते हैं. सवाल है कि इतना बड़ा हुजूम, इतना विशाल जमावड़ा और इतने दिनों तक अध्यात्म व आस्था के संगम की ये तिथि कैसे तय होती है.
कहते हैं कि युगों पहले अमृत की खोज में सागर को मथा गया. अमृत निकला, लेकिन इसे लेकर उन दो दलों में भीषण युद्ध हो गया, जिन्होंने इसे पाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की थी. इसमें एक ओर थे देवता और दूसरे असुर. ये पहली बार था कि दो अलग-अलग तरह की संस्कृति, सोच और विचार रखने वाले लोग एक बड़े लक्ष्य के लिए एक साथ आए थे. वह लक्ष्य तक पहुंचे भी, लेकिन पा नहीं सके. क्यों? क्योंकि लक्ष्य था अमृत और उस पर सिर्फ अपना ही अधिकार रखने की जिद व लालच ने उसे किसी का नहीं रहने दिया. छीना-झपटी हुई और इस छीना-झपटी में अमृत कलश से अमृत कई बार छलका और अलग-अलग स्थानों पर जा गिरा.
क्या है महाकुंभ? कहानी में आगे क्या हुआ? यह दूसरी बात है, लेकिन मुख्य बात ये है कि अमृत की खोज आज भी जारी है. अमृत की यही खोज भारतीय जनमानस को एक साथ-एक जगह ले आती है. पवित्र नदियों के बहते जल के आगे सभी की सारी अलग पहचान छिप जाती है और वह सिर्फ मनुष्य रह जाते हैं. फिर तो गंगा में कमर तक उतरे और डुबकी लगाकर झटके से ऊपर उठे माटी के जीवंत पुतलों से सिर्फ एक ही आवाज आती है, हर-हर गंगे, जय गंगा मैया. गंगा घाट वह जगह बन जाते हैं, जहां सांसारिकता के सागर का मंथन होता है और इस मंथन से एकता की भावना का अमृत मिलता है. जिस आयोजन के तहत यह पूरी प्रक्रिया होती है, वह महाकुंभ कहलाता है.
प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन महाकुंभ-2025 का आयोजन इस बार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा है. कुंभ मेलों का आयोजन एक प्राचीन परंपरा है, जो भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर आयोजित होते हैं. सवाल है कि इतना बड़ा हुजूम, इतना विशाल जमावड़ा और इतने दिनों तक अध्यात्म व आस्था के संगम की ये तिथि कैसे तय होती है. यह भी कि, किस स्थान पर कुंभ लगने वाला है, इसका पता कैसे चलता है. कौन है जो ये सारे फैसले करता है.
इन सवालों का जवाब है, खगोल विज्ञान. कुंभ कहां आयोजित होगा. यह निर्णय खगोल विज्ञान, ज्योतिष, और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर किया जाता है. कुंभ मेले चार स्थानों पर बारी-बारी से आयोजित होते हैं:
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) हरिद्वार (उत्तराखंड) उज्जैन (मध्य प्रदेश) नाशिक (महाराष्ट्र)
कैसे तय होता है स्थान? कुंभ मेला का स्थान तय करने में सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रहों की स्थिति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और बृहस्पति वृषभ राशि में होता है, तब कुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित होता है. वहीं, जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होता है, तो कुंभ मेला हरिद्वार में आयोजित होता है. इसके साथ ही जब सूर्य सिंह राशि और बृहस्पति ग्रह भी सिंह राशि में होते हैं, तो कुंभ मेला उज्जैन में होता है. आखिर में जब, सूर्य सिंह राशि और बृहस्पति सिंह या कर्क राशि में होता है, तब कुंभ मेला नाशिक में आयोजित होता है.
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