महाकुंभ 2025 का क्या है बिहार से कनेक्शन? यहां मौजूद है सागर मंथन का सबसे बड़ा सबूत
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अमृत पाने के लिए सागर मंथन कैसे हुआ, इसकी कथा भी रोचक है. पुराणों में वर्णित कहानी के अनुसार, देवराज ने भगवान विष्णु की सलाह मानकर असुरों को समुद्र मंथन के लिए मना लिया. इसकी सूचना जैसे ही त्रिलोक में फैली तो सागर मंथन के लिए तैयारियां की जाने लगीं. सवाल उठा कि इतने विशाल सागर को मथा कैसे जाए? इसका उपाय भी भगवान विष्णु ने बताया.
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ-2025 की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. श्रद्धालुओं के कदम प्रयागराज के पवित्र संगम तट की ओर बढ़ चले हैं. मानव जीवन के लिए जल तो वैसे भी अमृत है और तीन नदियों का संगम स्थल प्रयागराज तो वैसे भी वह जगह, जिसका अमृत से सीधा संबंध है. विष्णु पुराण और स्कंद पुराण में जिस कथा का वर्णन हुआ है, उसके मुताबिक सागर मंथन से जब अमृत निकला तो उसे पाने के लिए देवों और असुरों के बीच छीना झपटी होने लगी. इसी छीना-झपटी में अमृत कलश से छलककर अमृत चार स्थानों पर गिरा, जिसमें संगम तट भी एक है.
सागर मंथन के लिए क्या हुई तैयारी? अमृत पाने के लिए सागर मंथन कैसे हुआ, इसकी कथा भी रोचक है. पुराणों में वर्णित कहानी के अनुसार, देवराज ने भगवान विष्णु की सलाह मानकर असुरों को समुद्र मंथन के लिए मना लिया. इसकी सूचना जैसे ही त्रिलोक में फैली तो सागर मंथन के लिए तैयारियां की जाने लगीं. सवाल उठा कि इतने विशाल सागर को मथा कैसे जाए? इसका उपाय भी भगवान विष्णु ने बताया. उन्होंने मंदार पर्वत को इस कार्य के लिए मथानी की तरह प्रयोग करने का सुझाव दिया. अब अगला सवाल उठा कि इतने विशाल पर्वत के लिए रस्सी कैसी होनी चाहिए. इस समस्या का समाधान महादेव शिव ने किया. उनके कंठहार नागराज वासुकी ने इस विशाल मथानी के लिए रस्सी बनना स्वीकार किया. इस तरह सागर मंथन की तैयारी पूरी हो गई.
नारद मुनि की एक चाल से बची देवताओं की जान अब तय दिन सभी देवता और असुर समुद्र के किनारे पहुंचे, लेकिन एक समस्या और थी. समुद्र मंथन के समय पहाड़ की रगड़ से वासुकी नाग को जब खरोंच लगती तो वह कई बार गुस्से में डंस भी सकता था. यह उसका प्राकृतिक स्वभाव था. इसलिए वासुकी नाग को मुंह की ओर से पकड़ना खतरे से खाली नहीं था. तब देवताओं की समस्या का समाधान नारद मुनि ने दिया. उन्होंने कहा कि, असुरों के आने से पहले ही सभी देवता वासुकी के मुख की ओर खड़े हो जाएं. देवता इसका आशय समझ नहीं सके, लेकिन उन्होंने वैसा ही किया, जैसा देवर्षि नारद ने कहा था.
अब जैसे ही असुर वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि देवता पहले से ही वासुकी नाग के मुख की ओर खड़े हैं. उन्होंने इसका विरोध किया और कहा कि, इन देवताओं ने हमें हमेशा ही कमतर समझा है. दोयम दर्जे का माना है. इसीलिए इन्हें वासुकी का मुख पकड़ने को दिया गया है और हमें इसकी पूंछ. आखिर हम किसी के चरण क्यों पकड़ें? नारद मुनि के सिखाए अनुसार देवता भी इस बात पर अड़े रहे कि, वासुकी नाग का मुख तो वही पकड़ेंगे. पूंछ का भाग असुरों को पकड़ना होगा.
इस पर काफी देर तक तर्क-वितर्क चलता रहा. बात बिगड़ती देखकर नारद मुनि मध्यस्थता के लिए आए और देवराज इंद्र को समझाने के अंदाज में बोले, कि हमारा लक्ष्य अमृत पाना है. आप थोड़ा बड़प्पन दिखाइए, असुरों को कह दीजिए कि वही वासुकी का मुख पकड़ें. देवराज इंद्र ने ऐलान किया कि देवताओं ने असुरों से हार नहीं मानी है, लेकिन देवर्षि नारद की बात के सम्मान में वह और अन्य देवता पूंछ की ओर होने के लिए तैयार हैं.
नारद मुनि की इस चालाकी का असर ये हुआ कि अभिमानी असुरों को सागर मंथन के दौरान कई बार नागराज वासुकी के मुख से निकलने वाले जहर का सामना करना पड़ा. देवता इससे बच गए.
महाकुंभ का आयोजन अमृत की खोज का परिणाम है. इसके लिए सदियों पहले सागर के मंथन का उपक्रम रचा गया था. मंदार पर्वत की मथानी बनी, वासुकी नाग की रस्सी बनाई गई और जब यह मंदार पर्वत सागर में समाने लगा तो उसे स्थिर करने के लिए भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुआ) अवतार लिया. उन्होंने मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर स्थिर किया और फिर सागर मंथन शुरू हो सका.
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