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महाकुंभ का अंतिम शाही स्नान कल... महाशिवरात्रि पर स्नान के लिए उमड़ेगी भीड़, होगी कुंभ की विदाई
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जो अभी तक कुंभ में नहीं जा पाए हैं, और कल्पवास नहीं कर सके हैं, वह संगम तट पर शिवरात्रि का स्नान करके व्रत रखते हुए कल्पवास कर सकते हैं. इसके लिए एक दिन पहले ही त्रयोदशी तिथि के दिन केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करें. फिर शिवरात्रि के दिन, घाट पर पहुंचकर स्नान करें और फिर यहां व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
शिव और शक्ति के मिलन का खास पर्व है शिवरात्रि. यूं तो हर माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और चतुर्दशी के संयोग को शिवरात्रि कहा जाता है, लेकिन फाल्गुन माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी की तिथि महाशिवरात्रि कहलाती है. इस दिन की विशेष मान्यता है कि यह शिव-पार्वती के विवाह का दिन है. प्रयागराज पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह इसलिए भी खास है, क्योंकि बुधवार को ही महाकुंभ का अंतिम अध्याय यानी अंतिम शाही स्नान भी है. कई अखाड़े तो माघ पूर्णिमा के स्नान के बाद ही विदा ले चुके हैं, लेकिन शिवरात्रि का दिन महाकुंभ की विदाई का दिन भी होता है. इस दिन भी कुछ अखाड़े स्नान करते हैं और फिर कुंभ समापन की घोषणा होती है.
एक दिन के कल्पवास का ले सकते हैं लाभ जो अभी तक कुंभ में नहीं जा पाए हैं, और कल्पवास नहीं कर सके हैं, वह संगम तट पर शिवरात्रि का स्नान करके व्रत रखते हुए कल्पवास कर सकते हैं. इसके लिए एक दिन पहले ही त्रयोदशी तिथि के दिन केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करें. फिर शिवरात्रि के दिन, घाट पर पहुंचकर स्नान करें और फिर यहां व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
शिवरात्रि के दिन गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करके दिनभर शिव भजन में बिताएं और फिर, सन्ध्याकाल में मन्दिर जाना चाहिए. कल्पवाल के व्रतियों को शिवपूजा रात्रि के समय करना चाहिए एवं अगले दिन स्नानादि के बाद अपने व्रत का पारायण करना चाहिए.
अंतिम शाही स्नान के साथ महाकुंभ की विदाई माघ पूर्णिमा के बाद महाकुंभ का अंतिम स्नान महाशिवरात्रि के दिन यानी कल होगा. इस वर्ष महाशिवरात्रि की तिथि का आरंभ 26 फरवरी को प्रातः 11:08 बजे होगा और इसका समापन 27 फरवरी को प्रातः 8:54 बजे होगा. चूंकि महाशिवरात्रि की पूजा रात्रि में की जाती है, अतः व्रत भी 26 फरवरी को रखा जाएगा और इसी दिन महाकुंभ मेले का समापन होगा.
गंगा स्नान का खास महत्व शिवरात्रि पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है. गंगा नदी को शिवजी से विशेष वरदान प्राप्त हैं और यह उनका अभिषेक करते हुए ही धरती पर उतरती हैं. जहां-जहां गंगा बहकर आती हैं, उस स्थल पर हर जगह पवित्र शिवालय और तीर्थ स्थापित हैं. महाकुंभ के मौके पर त्रिवेणी में स्नान करके 100 यज्ञों के बराबर फल मिलता है. गंगा के लिए पुराणों में कहा गया है कि गंगा के दर्शन मात्र से मुक्ति मिलती है. 'गंगे तव दर्शनात् मुक्ति'
शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक शिवरात्रि महाशिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का प्रतीक है. इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. महाशिवरात्रि के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है. गंगा स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दौरान, स्नान करने से पहले गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का स्मरण करें.जल अर्पण करते हुए संकल्प लें कि यह स्नान आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जा रहा है. स्नान के दौरान "ॐ नमः शिवाय" और "हर हर गंगे" मंत्र का जाप करें और तीन या सात बार डुबकी लगाएं. सूर्य को जल अर्पित करते हुए "ॐ घृणिः सूर्याय नमः" मंत्र बोलें.
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जो अभी तक कुंभ में नहीं जा पाए हैं, और कल्पवास नहीं कर सके हैं, वह संगम तट पर शिवरात्रि का स्नान करके व्रत रखते हुए कल्पवास कर सकते हैं. इसके लिए एक दिन पहले ही त्रयोदशी तिथि के दिन केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करें. फिर शिवरात्रि के दिन, घाट पर पहुंचकर स्नान करें और फिर यहां व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
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