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भाला फेंकते हैं, लाठी भांजते हैं और स्कूल... कितना कठिन है कुंभ में दिखने वाले बाल नागा साधुओं का जीवन
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बाल साधु कैसे और कहां से आते हैं? इसके जवाब में सामने आता है कि कई बार निर्धनता और कई बार श्रद्धा के वशीभूत होकर माता-पिता उन्हें अखाड़ों को सौंपते हैं. कुछ और पीछे जाएं तो ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिनमें कई बार बहुत ही नवजात बच्चों को (जैसे 10 से 12 महीने के) दान कर दिया गया है.
प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत होने से पहले आई एक खबर काफी चर्चा में रही थी. खबर थी कि IAS अधिकारी बनने का सपना देखने वाली आगरा की 13 वर्षीय किशोरी को उसके माता-पिता ने जूना अखाड़े को सौंप दिया था. किशोरी ने महाकुंभ मेले में 'साध्वी' बनने की इच्छा जताई थी. उसकी इच्छा को माता-पिता ने ईश्वरीय इच्छा मानते हुए उसे जूना अखाड़े को सौंपा था. किशोरी की मां रीमा सिंह ने बताया था कि महाकुंभ के दौरान उसे सांसारिक जीवन से विरक्ति (वैराग्य) का अनुभव हुआ था.
बाल नागा साधुओं को देखकर होता है अचरज इस खबर के सामने आने के बाद यह भी विषय भी चर्चा के केंद्र में रहा कि क्या संन्यासी होने की कोई उम्र होती है? क्या इस तरह कोई नाबालिग संन्यासी बन सकता है. उसकी दीक्षा कैसे होती है. इन सवालों के जवाब लेखक धनंजय चोपड़ा ने अपनी पुस्तक 'भारत में कुंभ' में दिए हैं. उनके मुताबिक अखाड़ों में बाल नागा साधु भी होते हैं. इनका दिखना, कुंभ के आयोजन में एक और अचरज भरे तथ्य को बढ़ा देता है.
कम उम्र में कैसे होती है दीक्षा इन नागा साधुओं को देखकर लोग सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि, इतनी कम उम्र में कैसे इन बालकों ने साधु जीवन के कठिन पथ को चुना होगा. कुंभ के दौरान बाल नागा साधु कभी अखाड़े में लाठी का अभ्यास करते दिखते हैं, कभी गुरु सेवा में तो कभी भभूत रमाए, गेरुआ पहने गुरु के साथ पूजन-अर्चन में शामिल होते नजर आते हैं. इनके गुरु बताते हैं कि जबसे ये उन्हें प्राप्त होते हैं तब से वे उन्हें पूर्ण संत-संन्यासी बनाने की पूरी कोशिश करते हैं.
नवजात का ही किया जाता है दान ये बाल साधु कैसे और कहां से आते हैं? इसके जवाब में सामने आता है कि कई बार निर्धनता और कई बार श्रद्धा के वशीभूत होकर माता-पिता उन्हें अखाड़ों को सौंपते हैं. कुछ और पीछे जाएं तो ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिनमें कई बार बहुत ही नवजात बच्चों को (जैसे 10 से 12 महीने के) दान कर दिया गया है. ऐसा अक्सर तब होता रहा है, जब माता-पिता के पहले से कई बच्चे हों और वह उन्हें पालने में असमर्थ रहे हों.
स्कूल भी जाते हैं बाल नागा किताब की मानें तो पंचायती अखाड़ा नया उदासीन में हर कुंभ के दौरान ऐसे बाल नागा साधुओं को दीक्षा दी जाती है, जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम होती है. ये बाल नागा कपड़े पहनते हैं और स्कूल भी जाते हैं. हालांकि बाद में ये इच्छा के मुताबिक, वैदिक शिक्षा और संस्कृत शिक्षा भी लेते हैं. बड़े होने पर अखाड़े इन्हें शास्त्र के साथ -साथ शस्त्र की शिक्षा में भी दीक्षित करते हैं.
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