
ब्रिटिश राज को चुनौती देने वाली एक बागी एक्ट्रेस, जिसने 'गोलमाल' में कॉमेडी से जीता दर्शकों का दिल
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'गोलमाल' के ही एक साल बाद रिलीज हुई 'खूबसूरत' में जब दीना एक परिवार की खड़ूस हेड के रोल में नजर आईं तो एक बार फिर से उन्होंने जनता को बहुत इम्प्रेस किया. इन दो फिल्मों में, दो बिल्कुल अलग शेड्स में दिखीं दीना पाठक ना केवल एक दमदार एक्ट्रेस थीं, बल्कि अपनी रियल लाइफ में एक बहुत बड़ी इंस्पिरेशन भी थीं.
अमोल पालेकर की 'गोलमाल' (1979) एक ऐसी कल्ट फिल्म है जो दशकों बाद भी कॉमेडी के लिए जनता की फेवरेट बनी हुई है. इसकी कहानी में नौकरी पाने के लिए अमोल का डबल रोल वाला ट्विस्ट इतना मजेदार था कि आने वाले कई सालों तक ये कई फिल्मों की इंस्पिरेशन बनता रहा. 'गोलमाल' में अमोल का डबल रोल तो मजेदार था ही, मगर इसी कहानी में एक सीनियर एक्टर का डबल रोल जनता के लिए जबरदस्त हंसी भरे मोमेंट्स लेकर आया था.
'गोलमाल' में अमोल अपना काम साधने के लिए ना सिर्फ अपने ही नकली जुड़वां भाई बन जाते हैं, बल्कि अपने बॉस को राजी रखने के लिए उसे अपनी एक नकली मां से भी मिलवा देते हैं. दिक्कत तब होती है जब ये नकली मां एक पार्टी में उसके बॉस को दिख जाती है. इस समस्या का इलाज यूं निकाला जाता है कि अमोल की वो नकली मां भी, अपनी नकली जुड़वां बहन के रोल में आ जाती है. कन्फ्यूजन के इस डबल ट्विस्ट ने 'गोलमाल' की कॉमेडी को डबल मजेदार बना दिया था. ये रोल निभाया था स्वर्गीय एक्ट्रेस दीना पाठक ने.
'गोलमाल' के ही एक साल बाद रिलीज हुई 'खूबसूरत' में जब दीना एक परिवार की खड़ूस हेड के रोल में नजर आईं तो एक बार फिर से उन्होंने जनता को बहुत इम्प्रेस किया. इन दो फिल्मों में, दो बिल्कुल अलग शेड्स में दिखीं दीना पाठक ना केवल एक दमदार एक्ट्रेस थीं, बल्कि अपनी रियल लाइफ में एक बहुत बड़ी इंस्पिरेशन भी थीं. अपनी जिंदगी में उन्होंने जो कुछ किया, वो अपने वक्त से बहुत आगे की बातें थीं और उनका यही तेवर आपने उनकी दोनों बेटियों में भी देखा होगा जो खुद बहुत दमदार और पॉपुलर एक्ट्रेसेज हैं.
बचपन में ही शुरू की बगावत, बहन से मिली इंस्पिरेशन 4 मार्च 1922 को अमरेली, गुजरात में जन्मीं दीना ने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने बचपन से ही बगावत शुरू कर दी थी. दीना एक इंजिनियर पिता की बेटी थीं और शादी से पहले उनका सरनेम गांधी था. उनकी बेटी, मशहूर एक्ट्रेस सुप्रिया पाठक ने बाद में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एक आर्टिकल में लिखा कि शुरुआत में शायद दीना का बागी तेवर इस बात पर आधारित था कि 'मेरी बड़ी बहन ऐसा कर सकती है तो मैं भी कर सकती हूं.'
दीना से 5 साल बड़ी उनकी बहन शांता गांधी ने पुणे के एक्स्परिमेंटल स्कूल में पढ़ाई की थी जहां उनकी क्लासमेट इंदिरा गांधी थीं. वो स्कूल में ही वामपंथी छात्र आन्दोलनों से जुड़ने लगी थीं इसलिए पिता पहले उन्हें लेकर मुंबई आ गए और फिर पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया. इंग्लैंड में शांता स्वतंत्रता आंदोलन चला रहे क्रांतिकारियों के संपर्क में आईं. भारत आकर उन्होंने नाट्यशास्त्र सीखा और नाटकों में हिस्सा लेने लगीं. थिएटर के संसार में बड़ा योगदान देने वालीं शांता से दीना भी बहुत इंस्पायर हो रही थीं.
जब स्कूली शिक्षा के लिए पेरेंट्स ने, पर्दा करने वाली लड़कियों के लिए बने 'लाडली बीबी' स्कूल में नाम लिखवाना चाहा तो दीना अड़ गईं. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उन्होंने पेरेंट्स से जिद की कि उनका नाम लड़कों के स्कूल में लिखवाया जाए. परिवार मुंबई आ गया तो दीना भी छात्र आंदोलनों में हिस्सा लेने लगीं. नतीजा ये हुआ कि उन्हें कई कॉलेज से निकाला गया और उन्होंने कई अलग-अलग जगहों पर पढ़ाई की. ग्रेजुएशन पूरी करने के साथ-साथ दीना ने रसिकलाल पारेख से एक्टिंग सीखी और शांति वर्धान से डांस. इसके बाद उन्होंने गुजरात के फोक थिएटर भवई में परफॉर्म करना शुरू कर दिया.