बिहार: निकाय चुनावों में 'रिजर्व सीट' के मुद्दे पर आया पटना हाई कोर्ट का फैसला
AajTak
बिहार के स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण के मामले पर पटना हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है. मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने राज्य चुनाव आयोग को केवल ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को फिर से अधिसूचित करके, उन्हें सामान्य श्रेणी की सीटों के रूप में मानते हुए चुनाव कराने का निर्देश दिया है.
बिहार के स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए जाने के मुद्दे पर पटना हाई कोर्ट का ने अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नियमों के मुताबिक तब तक स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति नहीं दी जा सकती, जब तक सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित तीन शर्तें पूरी नहीं कर लेती.
एजेंसी के मुताबिक पटना उच्च न्यायालय ने मंगलवार को आदेश दिया कि शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए सीटों का आरक्षण 'अवैध' था.
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने राज्य चुनाव आयोग को केवल ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को फिर से अधिसूचित करके, उन्हें सामान्य श्रेणी की सीटों के रूप में मानते हुए चुनाव कराने का निर्देश दिया है.
छुट्टी के दिन पारित किया गया यह आदेश चल रही चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालता सकता है. दरअसल, बिहार में नगरीय निकाय को लेकर पहले चरण के मतदान के लिए अब एक सप्ताह से भी कम समय बचा है.
बिहार के 224 नगर निकाय में 4875 वार्ड के लिए चुनावी कार्यक्रम होना है. ये चुनाव दो फेज में आयोजित किए जाएंगे. पहले चरण के लिए 10 अक्टूबर को सुबह 7 बजे से वोटिंग शुरू होगी. इस चरण के लिए वोटों की गणना 12 अक्टूबर को होगी. दूसरे चरण के लिए 16 अक्टूबर को नामांकन होगा, 20 अक्टूबर को मतदान और दो दिन बाद वोटों की गिनती होगी. कुल 1.14 करोड़ मतदाता वोट करेंगे.
राज्य निर्वाचन आयोग ने महापौर आरक्षण अधिसूचना जारी की थी, जिसके मुताबिक 19 नगर निगमों में नौ जगहों पर महापौर पद महिलाओं के लिए आरक्षित किया गया था. पटना नगर निगम में 2017 की तरह महिला अनारक्षित कोटि का आरक्षण बरकरार रखा गया था.
मणिपुर हिंसा को लेकर देश के पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम खुद अपनी पार्टी में ही घिर गए हैं. उन्होंने मणिपुर हिंसा को लेकर एक ट्वीट किया था. स्थानीय कांग्रेस इकाई के विरोध के चलते उन्हें ट्वीट भी डिलीट करना पड़ा. आइये देखते हैं कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व क्या मणिपुर की हालिया परिस्थितियों को समझ नहीं पा रहा है?
महाराष्ट्र में तमाम सियासत के बीच जनता ने अपना फैसला ईवीएम मशीन में कैद कर दिया है. कौन महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री होगा इसका फैसला जल्द होगा. लेकिन गुरुवार की वोटिंग को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा जनता के बीच चुनाव को लेकर उत्साह की है. जहां वोंटिग प्रतिशत में कई साल के रिकॉर्ड टूट गए. अब ये शिंदे सरकार का समर्थन है या फिर सरकार के खिलाफ नाराजगी.