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बिरेन सिंह के इस्तीफे के बाद भी मोदी-शाह के लिए मणिपुर हिंसा को रोकना आसान नहीं है
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मणिपुर सहित पूरे उत्तर-पूर्व में जातीय संघर्ष बेहद जटिल और गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं. न तो बिरेन सिंह का इस्तीफा, न कोई नया मुख्यमंत्री और न ही केंद्र का सीधा हस्तक्षेप इस समस्या का कोई आसान समाधान निकाल सकता है. जब तक राज्य के हर जातीय, धार्मिक और भाषाई समुदाय की अपनी अलग पहचान को बनाए रखने की मानसिकता कायम रहेगी तब स्थाई शांति की बीत बेमानी ही होगी.
मणिपुर में 21 महीनों से जारी जातीय हिंसा को रोकने में कथित विफलता के कारण और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के भीतर और बाहर से बढ़ते दबाव के बीच मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह ने आखिरकार 9 फरवरी को अपना इस्तीफा सौंप दिया. पर सवाल अब भी जस का तस बना हुआ है कि क्या बिरेन सिंह के इस्तीफे से मणिपुर हिंसा को रोका जा सकेगा. देखने वाली बात यह है कि बिरेन सिंह के रिजाइन करने के बाद उनकी जगह लेने के लिए मणिपुर के स्थानीय नेताओं में बिल्कुल भी मारा मारी नहीं है. मतलब साफ है कि नेताओं को लगता है कि यहां का मुख्यमंत्री पद कांटों का ताज है. बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद अटकलें तेज हो गईं कि क्या राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा? क्योंकि यह कदम बीजेपी विधायकों के संभावित विद्रोह और कांग्रेस द्वारा विधानसभा में लाए जा रहे अविश्वास प्रस्ताव की खबरों के बीच आया है.दरअसल जिस तरह की परिस्थितियां बन रही हैं उससे तो यही लगता है कि मणिपुर के लिए फिलहाल राज्यपाल शासन ही सबसे उपयुक्त है.
मणिपुर सहित पूरे उत्तर-पूर्व में जातीय संघर्ष बेहद जटिल और गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं. न तो बिरेन सिंह का इस्तीफा, न कोई नया मुख्यमंत्री और न ही केंद्र का सीधा हस्तक्षेप इस समस्या का कोई आसान समाधान निकाल सकता है. जब तक राज्य के हर जातीय, धार्मिक और भाषाई समुदाय की अपनी अलग पहचान को बनाए रखने की मानसिकता कायम रहेगी तब स्थाई शांति की बीत बेमानी ही होगी. जब तक सभी समुदायों को अपनी पहचान से ऊपर मणिपुरी होना पहचान नहीं बनेगा यहां शांति मुश्किल ही है.
हालांकि बिरेन सिंह के इस्तीफे से एक फायदा यह जरूर होने वाला है कि कुकी और मैतेई समुदाय एक दूसरे के सामने बैठकर शांति की बातें कर सकते हैं. इसके पहले तक तो कुकी लोग बिरेन सिंह के रहते किसी भी तरह की शांति वार्ता में शामिल होने से मना कर दिया था. हालांकि दोनों समुदायों के बीच फैला हुआ जहर इतना बढ़ चुका है कि अभी कोई भी वार्ता फाइनल निष्कर्ष की ओर नहीं पहुंच सकती है. इसलिए जरूरी है कि पहले नफरत का जहर कम होने दिया जाए. समय बड़े से बड़े जहर को कम कर देता है.
कुकी समुदाय अपनी जातीय, धार्मिक और क्षेत्रीय पहचान की सुरक्षा के लिए एक अलग प्रशासनिक इकाई की मांग कर रहा है. दूसरी ओर, मैतेई समुदाय सभी कुकी लोगों को भारतीय मानने को तैयार नहीं है.सबसे बड़ी समस्या यह है कि राज्य के 2 प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही कुकी लोगों की स्वायत्त प्रशासनिक इकाई की मांग से सहमत नहीं है. आपको याद होगा पिछले साल नवंबर में वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने अपने ट्वीट में मणिपुर के विभिन्न जातीय समुदायों के लिए राज्य के भीतर क्षेत्रीय स्वायत्तता की वकालत की थी जिसका विरोध उनकी पार्टी की ही मणिपुर इकाई ने कर दिया था.
चिदंबरम ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा था कि मणिपुर में 5000 अतिरिक्त केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) तैनात करना समस्या का समाधान नहीं है. उन्होंने लिखा था कि इसके बजाय, अधिक समझदारी की जरूरत है , यह स्वीकार करना चाहिए कि मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह इस संकट की जड़ हैं और उन्हें तुरंत हटाया जाना चाहिए. जरूरत है कि मैतेई, कुकी-जो और नागा एक राज्य में तभी रह सकते हैं जब उन्हें वास्तविक क्षेत्रीय स्वायत्तता मिले.
मणिपुर के 10 कांग्रेस नेताओं, जिनमें वर्तमान विधायक, पूर्व मंत्री और पूर्व मणिपुर कांग्रेस अध्यक्ष शामिल हैं, ने खड़गे को पत्र लिखकर चिदंबरम की पोस्ट पर नाराजगी जाहिर की. कांग्रेस की स्थानीय इकाई ने लिखा कि यह पोस्ट मणिपुर के इस संवेदनशील समय में बिलकुल अनुचित भावनाओं को व्यक्त करता है. कांग्रेस पार्टी हमेशा मणिपुर की एकता और क्षेत्रीय अखंडता के पक्ष में खड़ी रही है. हम एआईसीसी से अनुरोध करते हैं कि वे पी. चिदंबरम के खिलाफ तत्काल उचित कार्रवाई करें और उन्हें यह पोस्ट तुरंत हटाने का निर्देश दें. मणिपुर कांग्रेस प्रमुख के. मेघाचंद्र और पूर्व मुख्यमंत्री ओक्राम इबोबी सिंह ने चिदंबरम के बयान की आलोचना की. मामले की गंभीरता को इस तरह समझा जा सकता है कि कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने तुरंत चिदंबरम से बात की और उनकी लिखी पोस्ट को डिलीट कराया.
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