बांग्लादेश में 93% नौकरियां हुईं आरक्षण मुक्त, क्या सुप्रीम कोर्ट के नए आरक्षण फॉर्मूले से आएगा बदलाव?
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बांग्लादेश में चल रहे हिंसक प्रदर्शनों के बीच वहां के सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में कोटा व्यवस्था को लेकर बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण को घटा दिया है. इसे पीएम शेख हसीना के लिए झटका माना जा रहा है.
बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने कई दिनों तक चले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद सरकारी नौकरियों के लिए कोटा प्रणाली को वापस ले लिया है. कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को ख़ारिज कर दिया, जिसमें आरक्षण को बहाल कर दिया गया था. नौकरियों में कमी और कोटा सिस्टम खत्म करने की मांग को लेकर देश के अधिकांश प्रमुख शहरों में छात्रों और पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों के बीच हिंसक झड़पें हुईं थी जिसमें में 130 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जबकि हजारों लोग घायल हुए थे.
दरअसल, बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 14 जुलाई को कह दिया था कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को कोटे का फ़ायदा ना मिले, तो क्या 'रजाकारों' के पोते-पोतियों को मिलना चाहिए? इस बयान के बाद युवाओं में आक्रोश फैल गया. कोटा सिस्टम हटाने की युवाओं की मांग ने और जोर पकड़ लिया.
क्या थी प्रदर्शनकारियों की मांग दरअसल प्रदर्शनकारी उस कोटा प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे थे, जिसके तहत बांग्लादेश के 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने वाले दिग्गजों के रिश्तेदारों के लिए 30% सरकारी नौकरियां आरक्षित की गई थीं. इनमें से 30 प्रतिशत 1971 के मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए, 10 प्रतिशत पिछड़े प्रशासनिक जिलों के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं के लिए, पांच प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लिए और एक प्रतिशत विकलांग लोगों के लिए आरक्षित हैं. आंदोलन स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को मिलने वाले 30 फीसदी आरक्षण के खिलाफ चलाया जा रहा है.
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प्रदर्शनकारी छात्रों ने दावा किया कि यह नीति भेदभावपूर्ण है और तर्क दिया कि यह प्रणाली देश की सत्तारूढ़ पार्टी के सहयोगियों को फायदा पहुंचाती है जिसने स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया था.हालांकि सरकार ने आरोप को खारिज कर दिया था. बता दें कि बांग्लादेश में हर साल करीब 3 हजार सरकारी नौकरियां ही निकलती हैं, जिनके लिए करीब 4 लाख कैंडिडेट अप्लाई करते हैं.
इसी 80 फ़ीसदी में 30 फ़ीसदी आरक्षण आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वालों के बच्चों को और 10 फ़ीसदी आरक्षण युद्ध से प्रभावित महिलाओं को देने का फैसला किया गया. इसके बाद अलग-अलग सालों में आरक्षण की व्यवस्था में कई बदलाव किये गये. हालांकि ये 30 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था हमेशा जारी रही. इसके बाद आया 2018 का साल. सरकार ने तब कोटा प्रणाली को ख़त्म कर दिया. लेकिन 5 जून, 2024 को हाई कोर्ट ने सरकार के फ़ैसले को अवैध बता दिया और कुल कोटा 56% तय कर दिया. इसके बाद से ही प्रदर्शन जारी था.
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