पॉल्यूशन बढ़े तो सिर्फ पटाखों को दोष क्यों? क्या वाकई सांसों के लिए संकट है आतिशबाजी
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दिवाली आते ही दिल्ली-एनसीआर समेत कई शहरों में पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है. माना जाता है कि पटाखे नहीं फूटेंगे तो प्रदूषण से हालात और नहीं बिगड़ेंगे. हालांकि, प्रतिबंध के बावजूद पटाखे जलते हैं. ऐसे में जानते हैं कि क्या वाकई पटाखे प्रदूषण फैलाते हैं? और पटाखों के केमिकल कितने खतरनाक होते हैं?
दिवाली आ गई है. हर बार की तरह ही इस बार भी पटाखों को लेकर बहस छिड़ गई है. दिल्ली-एनसीआर समेत कई राज्यों में पटाखे जलाने पर रोक लगा दी गई है. ऐसा इसलिए क्योंकि पटाखों से निकलने वाले धुएं से खराब होती हवा और खराब हो जाती है. वहीं, पटाखे फोड़ने की वकालत करने वालों का तर्क होता है कि इससे इतना धुआं नहीं निकलता, जितना इसे लेकर शोर किया जाता है.
दिल्ली-एनसीआर में तो कई सालों से पटाखों पर रोक है. लेकिन इसके बावजूद यहां पटाखे भी खूब जलते हैं और आतिशबाजी भी खूब होती है.
दिवाली से पहले ही दिल्ली की हवा खराब होने लगी है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मुताबिक, 27 अक्टूबर को दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI का स्तर 356 पर था. AQI का स्तर 301 से 400 के बीच रहने पर इसे 'बहुत खराब' की श्रेणी में रखा जाता है. अगर ये स्तर 400 के पार हुआ तो फिर इसे 'गंभीर' माना जाएगा.
एक ओर, दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, दूसरी ओर अब भी बहुत से परिवार दिवाली पर पटाखे फोड़ने की बात कह रहे हैं. लोकल सर्किल नाम की संस्था की ओर से किए गए सर्वे में सामने आया है कि दिल्ली-एनसीआर के 18 फीसदी परिवार दिवाली पर पटाखे जलाएंगे. सर्वे में शामिल 9 फीसदी ने ये तक कहा कि वो दिवाली पर पटाखे जलाएंगे और उन्हें पता है कि इसकी व्यवस्था कैसे करनी है.
सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि बिहार में भी पटाखों पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है. हरियाणा के गुरुग्राम में भी पटाखे जलाने पर रोक रहेगी. महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों में कुछ बंदिशों के साथ ही पटाखे जलाने की अनुमति है.
पर क्या प्रतिबंध से कुछ असर पड़ेगा?
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