पिछड़ों के नाम पर दादी-पिता को कठघरे में खड़ा करने वाले राहुल गांधी भोले हैं या चतुर खिलाड़ी?
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राहुल गांधी लगातार जिस तरह कांग्रेस पार्टी और अपने पूर्वजों को घेर रहे हैं उससे क्या कांग्रेस का नुकसान नहीं हो रहा है? पर इसे इतने साधारण रूप में भी नहीं लिया जा सकता है. हो सकता है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जितना बेहतर कम्युनिकेटर न हों, बेहतर संगठनकर्ता न हों पर ऐसा भी नहीं हैं कि उन्हें रणनीतिकार के तौर पर भी खारिज कर दिया जाए.
राहुल गांधी इन दिनों जिस तरह के बयान दे रहे हैं उससे यही लगता है कि वो बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस पर हमलावर हो गए हैं. वो बार-बार यह कहते रहे हैं कि देश के 90 प्रतिशत लोगों के हितों के लिए जो फैसले लिए जाते हैं उनमें एक से दो परसेंट भी उन 90 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं होता है. हद तो तब हो गई जब दलित और पिछड़ी जातियों के अधिकार की बातें करते हुए उन्होंने अपनी दादी इंदिरा गांधी, पिता राजीव गांधी और यूपीए 1 और 2 की सरकार में प्राइम मिनिस्टर रहे मनमोहन सिंह को भी कठघरे में खड़ा कर दिया.
पंचकूला में एक पैनल चर्चा में भाग लेते हुए राहुल गांधी ने कहा: मैं जन्म से ही सिस्टम के अंदर बैठा हूं. मैं सिस्टम को अंदर से समझता हूं. आप सिस्टम को मुझसे छुपा नहीं सकते. यह कैसे काम करता है, यह किसका पक्ष लेता है, यह कैसे उपकार करता है, यह किसकी रक्षा करता है, किस पर हमला करता है, मैं सब कुछ जानता हूं, मैं इसे देख सकता हूं क्योंकि मैं इसके अंदर से आया हूं. प्रधानमंत्री के घर पर, जब मेरी दादी (इंदिरा गांधी) पीएम थीं, पापा (राजीव गांधी) वहां थे, मनमोहन सिंह जी वहां थे, मैं जाता था... मैं सिस्टम को अंदर से जानता हूं. और मैं आपको बता रहा हूं, व्यवस्था हर स्तर पर भयानक तरीके से निचली जातियों के खिलाफ खड़ी है. कारपोरेट तंत्र, मीडिया तंत्र, नौकरशाही, न्यायपालिका, शिक्षा तंत्र, सेना, जहां देखो, वहां 90 प्रतिशत की भागीदारी नहीं है. और योग्यता को लेकर बहस छिड़ जाती है. यह कैसे संभव है कि 90 प्रतिशत में योग्यता न हो? यह संभव ही नहीं है. सिस्टम में जरूर कुछ खामी होगी.
अपने परिवार, अपनी पार्टी के बनाए सिस्टम को खारिज करने की बात करने वाले राहुल का यह रूप क्या कांग्रेस के लिए फायदेमंद है? क्या ऐसे भाषण देकर वो अपनी पार्टी, अपने पूर्वजों पर सवाल खड़ाकर अपना नुकसान नहीं कर रहे हैं? या सबकुछ किसी रणनीति के तहत कर रहे हैं. कुछ भी हो सकता है . देखना है कि अगर राहुल गांधी किसी रणनीति के तहत कर रहे हैं तो उनकी चतुर चाल को कितना फायदा मिलेगा.
1-राहुल ने अभी कुछ दिन पहले माना था कि कांग्रेस ने गलतियां की हैं और सुधार की भी बात की थी
पिछड़ों, गरीबों और कमजोर लोगों के अधिकारों की बात करते करते राहुल गांधी इतने भावुक हो जाते हैं कि उन्हें अपने पूर्वज ही नहीं अपनी पार्टी भी खलनायक की तरह दिखने लगती है. हालांकि वो खुलकर ऐसे सवाल नहीं उठाते कि आखिर पिछड़े लोगों की इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन है. ऐसा तो है नहीं कि पिछड़े लोगों पर अत्याचार पिछले 10 सालों में शुरू हुआ है. राहुल गांधी खुद कहते हैं कि वो सिस्टम में रही हैं उन्होंने इंदिरा, राजीव और मनमोहन को देखा है कि किस तरह फैसले प्रभावित किए जाते रहे हैं.
राहुल गांधी भले ही यह न पूछें कि इस व्यवस्था के लिए जिम्मेदार कौन है पर उनकी बातों से यही आशय निकलता है कि कांग्रेस उस बुरे सिस्टम में सुधार नहीं कर सकी. अभी कुछ दिन पहले ही लखनऊ में उन्होंने स्वीकार किया था कि कांग्रेस ने कुछ गलतियां की हैं. उन्होंने कांग्रेस में सुधार को भी वक्त का तकाजा बताया था.
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