पार्टनर के हाथों मारी गईं रोज करीब 133 महिलाएं, क्या है फेमिसाइड, जिसमें महिला-हत्या को बनाया जा रहा अलग क्राइम?
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यूनाइटेड नेशन्स (UN) का डेटा कहता है कि दुनिया में हर घंटे औसतन 5 महिलाओं की हत्या उनका ही परिवार कर रहा है. वहीं साल 2022 में रोज लगभग 133 लड़कियां अपने ही साथी के हाथों मारी गईं. अब कई देश एक खास लॉ बना चुके, जिसमें फेमिसाइड को बाकी हत्याओं से अलग जुर्म माना जाएगा. यानी हत्या अलग श्रेणी है, जबकि महिलाओं की हत्या अलग कैटेगरी.
फेमिसाइड एक किस्म का हेट क्राइम है, जो किसी जाति या धर्म के साथ नहीं, बल्कि महिलाओं के खिलाफ होता है. ये नफरत इतनी बढ़ जाए कि किसी महिला की हत्या कर दी जाए तो उसे फेमिसाइड कहते हैं. अब कई मुल्क महिलाओं की हत्या को अलग अपराध बनाने जा रहे हैं, कईयों ने इसपर कानून भी बना दिया. जानिए, क्यों महिलाओं की हत्या को अलग क्राइम का दर्जा दिया जा रहा है.
कब पहली बार फेमिसाइड शब्द का हुआ इस्तेमाल
साल 1801 में आइरिश लेखक जॉन कॉरी ने अपनी किताब में फेमिसाइड टर्म का पहली बार जिक्र किया था. बाद में फेमिनिस्ट लेखिका डायना रसेल ने महिलाओं के खिलाफ एक्सट्रीम हेट-क्राइम यानी हत्या के लिए इसका इस्तेमाल किया. जैसे दूसरे धर्म में या घर के पुरुषों की मर्जी से अलग रिश्ता बनाने पर लड़की की हत्या, या अपनी मर्जी के कपड़े पहनने पर मर्डर जैसा कदम उठाना. ये बर्बरता मर्डर की दूसरी श्रेणी से अलग है क्योंकि ये विशुद्ध नफरत से उपजती है.
साल 2013 में यूएन ने रिजॉल्यूशन 69 पारित किया. ये जेंडर की वजह से महिलाओं की हत्या पर सख्त एक्शन लेने की बात करता है. इसके बाद से कई देशों ने ऐसे कानून बनाए.
इस देश में साल 2007 में बना लॉ
कैरिबियाई देश कोस्टा रिका पहला मुल्क है, जिसने फेमिसाइड को अलग क्राइम का दर्जा दिया. बता दें कि लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में महिला हत्या काफी ज्यादा है. कानून बनने के बाद से कोस्टा में पत्नी या पार्टनर की हत्या करने वाले पुरुष को 20 से 35 साल की कैद होने लगी. इस देश में कई ऐसे नियम भी हैं जो उन पुरुषों को सजा देते हैं जो अपनी पार्टनर या पत्नी को आजादी से रहने से रोकें.
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