पहले नाराजगी और अब PM मोदी के प्रति पूर्ण समर्पण का ऐलान... जीतनराम मांझी की रणनीति क्या है?
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केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने दिल्ली और झारखंड चुनाव में अपनी पार्टी को सीटें नहीं दिए जाने पर नाराजगी जताई, कैबिनेट छोड़ने की बात कह दी. सियासी हंगामा बरपा तो अब सफाई देते हुए पीएम मोदी के प्रति पूर्ण समर्पण का ऐलान कर दिया है. ये मांझी की बेबाकी है या रणनीति?
इस साल के अंत तक बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं और चुनावी साल की शुरुआत ही सियासी गर्माहट से भरी है. पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पाला बदलने की अटकलों ने जोर पकड़ा तो अब केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के बयान से सियासी पारा हाई है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री मांझी ने पहले जहानाबाद और फिर मुंगेर में सार्वजनिक मंच से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को आंखें दिखाई, कैबिनेट छोड़ने की बात कह दी. मामले ने सियासी रंग लिया और मांझी के गठबंधन छोड़ने के कयास तेज हुए तो पीएम मोदी के प्रति पूर्ण समर्पण का ऐलान करते हुए अब एनडीए के मजबूती के साथ चुनाव मैदान में उतरने की बात कह रहे हैं.
अपने बयान पर कयासों के बीच मांझी ने कहा है कि मरते दम तक पीएम मोदी का साथ नहीं छोड़ूंगा. उन्होंने यह भी कहा है कि हम सब अभी देश और बिहार के हित का कार्य कर रहे हैं. इससे पहले मांझी ने मुंगेर में झारखंड और दिल्ली के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिलने पर नाराजगी जताई थी. उन्होंने कहा था कि कहते हैं हम नहीं मांगे तो नहीं मिला लेकिन ये कोई न्याय है क्या? उन्होंने सवालिया लहजे में कहा था कि हमारा कोई अस्तित्व नहीं है क्या? जब भीड़ और वोटर मेरे साथ हैं तो हमें सीट क्यों नहीं दे रहे हो? जो मेरा वजूद है उसके हिसाब से मुझे सीट दो.
मांझी ने रामचरित मानस की चौपाई 'भय बिनु होय ना प्रीत...' का जिक्र किया और स्पष्ट कहा कि हम फरियाना नहीं चाहते कि हमको इतनी सीट दे दो लेकिन कहते हैं कि वजूद के आधार पर सीट दो. उन्होंने लोगों से सीधे मुखातिब होते हुए कहा कि हमको कोई फायदा नहीं है. आपके (लोगों के) फायदे के लिए कह रहे हैं. लगता है हमको कैबिनेट छोड़ना पड़ेगा. बिहार के पूर्व सीएम मांझी ने लगे हाथ 40 सीटों के लिए दावेदारी भी कर दी. उन्होंने कहा कि हमारे लोग कह रहे हैं 40 सीट चाहिए ताकि हम 20 सीट जीत सकें. उन्होंने दावा किया कि अगर पार्टी इतनी सीटें जीतती है तो हम सारे काम अपनी नीति के हिसाब से करा लेंगे. हम तो लोगों के लिए काम करना चाहते है.
मुंगेर के कार्यक्रम से पहले जहानाबाद में भी मांझी ने कुछ ऐसे ही तेवर दिखाए थे और एनडीए में उपेक्षा किए जाने की बात कही थी. उन्होंने बिहार चुनाव में अपनी औकात दिखाने की बात भी कही थी. हालांकि, मांझी ने एक सवाल के जवाब में एनडीए से नाराजगी की अटकलों को खारिज करते हुए यह भी कहा था कि अगर हमको चार रोटी की भूख है और एक भी रोटी नहीं देंगे तो हम गार्जियन से मांगेंगे नहीं? वही मेरी मांग है. केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी के बेटे और नीतीश सरकार में मंत्री संतोष सुमन ने भी कहा है कि कोई मनमुटाव नहीं है. हम बिहार में एक साथ लड़ेंगे और नीतीश कुमार फिर से सीएम बनेंगे. हम एनडीए के साथ हैं और रहेंगे. बिहार के विकास के लिए कुर्बानी देनी होगी तो हम देंगे.
पहले नाराजगी, अब समर्पण के पीछे क्या
जीतनराम मांझी की इमेज बेबाक राजनेता की है. वह बेबाकी से अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं. लेकिन अब पहले नाराजगी और फिर अब पूर्ण समर्पण जताने के बाद यह चर्चा छिड़ गई है कि क्या ये मांझी के बेबाक बोल हैं या रणनीति? इसे चार पॉइंट में समझा जा सकता है.
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