
परिसीमन पर क्यों है साउथ को संदेह? यूपी-बिहार की ज्यादा आबादी का डर क्यों दिखा रहे दक्षिण के क्षत्रप
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अगर 2026 में प्रस्तावित देशव्यापी परिसीमन को सिर्फ आबादी के आधार पर किया गया तो इसके परिणाम देश में सत्ता का संतुलन व्यापक रूप से बदल सकते हैं. इसमें हो सकता है कि दक्षिणी राज्यों को कुछ नुकसान हो. और यूपी-बिहार का पलड़ा एकदम से भारी हो जाए. लेकिन देश के दक्षिणी नेतृत्व को आश्वस्त करते हुए केंद्र ने कहा है कि उनकी लोकसभा सीटें घटेंगी नहीं. फिर परिसीमन का आधार क्या होगा ये बड़ा सवाल है.
'परिसीमन के नाम पर भारत के दक्षिणी राज्यों पर एक तलवार लटक रही है. हमारी लोकसभा सीटों में कटौती होने जा रही है और तमिलनाडु की 8 लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी.' तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और केंद्र की NDA सरकार के धुर राजनीतिक विरोधी एमके स्टालिन ने 25 फरवरी को ये बयान देकर भारत में उत्तर बनाम दक्षिण की नई बहस छेड़ दी.
एमके स्टालिन ने परिसीमन से पैदा होने वाली संभावित चुनौतियों पर 5 मार्च को तमिलनाडु के राजनीतिक दलों की एक मीटिंग बुलाई है. आगे बढ़ने से पहले ये गौर कर लिया जाना चाहिए कि स्टालिन का ये बयान तब आया है जब राज्य में अगले ही वर्ष विधानसभा के चुनाव होने हैं.
केंद्र पर निशाना साधते हुए एमके स्टालिन ने जनता को ये बताना चाहा कि राज्य ने जनसंख्या नियंत्रण में कामयाबी पाई है लेकिन इसका ये नतीजा हो सकता है कि अगले परिसीमन के बाद तमिलनाडु की लोकसभा सीटें कम हो जाएगी. उन्होंने कहा, "हम 8 सीटें खो देंगे और परिणामस्वरूप, हमारे पास केवल 31 सांसद होंगे, न कि 39." अभी तमिलनाडु से 39 सांसद चुनकर लोकसभा जाते हैं.
गौरतलब है कि 39 लोकसभा सीटों के साथ संसद के निचले सदन में तमिलनाडु को अभी दमदार प्रतिनिधित्व हासिल है.
चुनावी लक्ष्य को साधकर दिया गया स्टालिन का ये बयान इतना अहम था कि गृहमंत्री अमित शाह ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा कि दक्षिणी राज्यों का 'एक सीट भी नहीं' कम होगा. अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में स्पष्ट किया है कि परिसीमन के बाद भी दक्षिण के किसी भी राज्य की सीटें कम नहीं होंगी.
आखिर परिसीमन का मुद्दा है क्या? भारत के दक्षिण के राज्य इस मसले को क्यों उठा रहे हैं? सीएम स्टालिन क्यों कह रहे हैं कि हमें एक मिशन में सफल रहने का यही प्रतिफल दिया जा रहा है.

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