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देवनदी, विष्णुपदी, भागीरथी और हिमानी... गोमुख से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक गंगा के कितने नाम
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गंगा नदी का एक नाम ब्रह्मकन्या है. परमपिता ब्रह्मा के कमंडल का जल गंगा जल ही है. उन्होंने सबसे पहले गंगा को शुचिता का वरदान दिया. सप्तऋषियों के आशीर्वाद पाने के बाद गंगा पंडिता कहलाईं. इस तरह उनका नामकरण हुआ और वह पंडितों व ज्ञानियों के समान ही पूज्य मानी गईं. इसीलिए गंगा जल से आचमन किया जाना श्रेष्ठ माना जाता है.
महाकुंभ 2025 का आयोजन तीर्थराज प्रयाग की पावन धरती पर होने वाला है. माघ महीने के इस महोत्सव में देश-विदेश के श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. इसके अलावा ईश वंदना में जुटे संत, महात्माओं का भी यहां जमघट लगा हुआ है. श्रद्धालु गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम में अपने तन-मन को पावन करते हैं.
गंगा-यमुना-सरस्वती की धारा से पवित्र है प्रयाग इस प्रयाग की पवित्रता और इसकी पारंपरिकता आज भी अक्षुण्ण बनी हुई है. यह वही वैदिक और पौराणिक काल का तीर्थ प्रयागराज है, जहां गंगा और यमुना के पवित्र संगम में स्नान करनेवाले मनुष्य मोक्ष-मार्ग के अधिकारी होते हैं. पुराणों में तो यह भी कहा गया है कि, जो लोग अपने शरीर का यहां पर विसर्जन करते हैं, वे अमृतत्व को प्राप्त करते हैं. इसका उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के में हुआ है.
सिन्धुत्तमे सरिते यत्र संगमे तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति. ये वेऽत विश्वजनि धीरास्ते जनासोऽमृतत्वं भजन्ते.. (ऋग्वेद, खंड, 10/75/1)
शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में गंगा की महिमा का वर्णन इसी बात को ‘शतपथ ब्राह्मण’ और अधिक स्पष्ट तरीके से सामने रखता है और कहता है कि, उत्तर वैदिक काल में भारत राजाओं ने इसी गंगा और यमुना के संगम में स्नान किया था. यह वही प्रयाग है, जहां ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम यज्ञों का अनुष्ठान किया था. इन्हीं यज्ञों के संपन्न होने के कारण इस क्षेत्र को प्रयाग नाम मिला. ‘महाभारत के वन पर्व’ में इसका उल्लेख भी हुआ है, लेकिन प्रयागराज की महिमा सिर्फ उसकी पवित्र भूमि के कारण नहीं है, बल्कि इसकी महिमा को और अधिक बढ़ाती हैं मां गंगा. गंगा नदी की युगों से बहती अविरल धारा अपने साथ कई वरदानों की लहर लेकर बह रही है.
देवी गंगा को मिले हैं कई वरदान देवी और मां के रूप में प्रतिष्ठित गंगा सिर्फ देवलोक से उतरने के कारण ही पवित्र नहीं कहलाईं बल्कि उनके साथ ऋषियों और मुनियों के वरदान भी जुड़े हैं. मान्यता है कि देवी को मिले ये वरदान उनमें स्नान करने वाले लोगों को भी मिल जाते हैं. हिमालय की गोद से निकलने के बाद उत्तर के मैदानों को सींचती हुई गंगा जब बंगाल की खाड़ी में गिरती है तो इस सफर के दौरान लोक आस्था उन्हें कई नामों से पुकारती है. यह नाम गंगा के जल की पवित्रता को और अधिक बढ़ाते हैं.
क्यों जरूरी है गंगा स्नान? गंगा स्नान का महत्व इसलिए भी है ताकि मनुष्य पानी की तरह सरलता और तरलता की को सीखे.उसका सारा अभिमान नदी की धारा के साथ बह जाए और जब वह घाट से बाहर निकलकर सामाजिक जीवन में पहुंचे तो एक उत्कृष्ट मनुष्य बनकर पहुंचे. गंगा की यही शिक्षाएं उनके नाम से जुड़ी हैं. जानिए, लोक कथाओं और पुराणों के आधार पर गंगा को किस-किस नाम से पुकारा गया है.
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