![दिल्ली में AAP के 10 साल: केजरीवाल के वो फैसले जिन्होंने फीकी कर दी ब्रांड AK की चमक](https://akm-img-a-in.tosshub.com/aajtak/images/story/202502/67a7572cb0577-brand-arvind-kejriwal-defeat-in-delhi-080753914-16x9.jpg)
दिल्ली में AAP के 10 साल: केजरीवाल के वो फैसले जिन्होंने फीकी कर दी ब्रांड AK की चमक
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दिल्ली की सत्ता पर लगातार 10 साल काबिज रहने के बाद अब अरविंद केजरीवाल को जनता ने सत्ता से बेदखल कर दिया है. बीते दो कार्यकाल के दौरान केजरीवाल ने खुद को 'कट्टर ईमानदार' नेता के तौर पर प्रोजेक्ट किया था लेकिन अब इस छवि को नुकसान पहुंचा है.
दिल्ली में लगातार तीन बार सत्ता संभालने वाली आम आदमी पार्टी को इस बार के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. अन्ना आंदोलन से निकली AAP चुनावी राजनीति में एंट्री के साथ ही 2013 में दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गई थी. इसके बाद 2015 में ऐतिहासिक 67 सीटें और 2020 में 62 सीटें जीतकर लगातार दिल्ली में ब्रांड केजरीवाल मजबूत होता गया. पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने खुद को कट्टर ईमानदार नेता के तौर पर प्रोजेक्ट किया और यह दांव कारगर भी रहा. हालांकि दूसरे कार्यकाल के आखिर में पार्टी के टॉप नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने इस छवि को नुकसान पहुंचाया और चुनाव से ठीक पहले अरविंद केजरीवाल के जेल जाने से AAP की शिकस्त की कहानी लिखी जा चुकी थी.
भ्रष्टाचार के आरोप में जेल
शराब घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में सत्येंद्र जैन से लेकर संजय सिंह, मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल के जेल जाने से चुनाव बदल गया. पहले माना जा रहा था कि जेल से वापस आकर इस्तीफा देने वाले केजरीवाल चुनाव में इस मुद्दे को भुना लेंगे, क्योंकि उन्होंने चुनाव से ठीक पहले आतिशी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना दिया था, ताकि खुद बेदाग छवि के साथ चुनाव में उतर सकें. हालांकि बीजेपी ने इस मुद्दे को प्रचार के दौरान खूब भुनाया और केजरीवाल की 'कट्टर ईमानदार' वाली छवि को 'कट्टर बईमान' के तौर पर प्रोजेक्ट किया. केजरीवाल ने भी चुनाव प्रचार के दौरान अपनी छवि का फैसला जनता पर छोड़ते हुए कहा था कि अगर हम ईमानदार हैं तो हमें जिताकर विधानसभा भेजना.
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जनता के आक्रोश की एक वजह केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बावजूद उनका दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहना मानी जा रही है. केजरीवाल ने 150 से ज्यादा दिन जेल में गुजारने के बाद भी सीएम पद से इस्तीफा नहीं दिया और जब इस्तीफा दिया तब भी अगले चुनाव में सीएम पद के लिए अपना नाम खुद तय कर दिया था. मुख्यमंत्री पद छोड़ने का ऐलान करते हुए उन्होंने आतिशी को चुनाव से ठीक पहले सीएम बनाया और आतिशी भी लगातार खुद को अस्थाई सीएम कहती रहीं ताकि कुर्सी पर केजरीवाल की दावेदारी मजबूत रहे.
शराब की दुकानों को लेकर गुस्सा
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