दिल्ली चुनावों में पूर्वांचली बनाम अन्य की जंग कौन कराना चाहता है? किसे होगा फायदा?
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दिल्ली में जिस तरह पूर्वांचली वोटर्स को लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में मारा-मारी मची है उससे तो यही लगता है कि इस बार यहां किंग मेकर यूपी और बिहार के लोग ही हैं. पर अगर एक खास समुदाय पर फोकस बढ़ेगा तो जाहिर है कि दूसरे लोग उसके एंटी हो जाएंगे. फिर यूपी और बिहार के लोग तो दिल्ली हो या मुंबई सबकी आंखों में चुभते हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनावों में पिछले दो बार से आम आदमी पार्टी को जिस तरह एकतरफा जीत मिली है, उससे साफ जाहिर है कि उसे सभी वर्गों का वोट मिला था. पर इस बार पूर्वांचली वोटर्स को लेकर आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही कुछ ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं. पर आम आदमी पार्टी की पूर्वांचल को लेकर कुछ ज्यादा ही सक्रियता बताती है कि उन्हें लगता है कि इस बार उनका यह वोट बैंक उनके साथ नहीं है. क्योंकि दिल्ली में अपने दूसरे वोटर्स के लिए आप उस तरह बेचैन नहीं हैं जिस तरह पूर्वांचलियों के लिए लगातार कुछ न कुछ उनके द्वारा किया जा रहा है. तो क्या समझा जाए कि पूर्वांचली वोटर इस बार दिल्ली विधानसभा चुनावों में किंगमेकर की भूमिका में हैं? क्या ऐसा नहीं लग रहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में पूर्वांचली बनाम अन्य की जंग की कोशिश हो रही है. सवाल यह उठता है कि अगर ऐसा होता है तो फायदे में कौन रहेगा?
1- तीन हफ्ते में ही केजरीवाल का दांव कैसे उल्टा पड़ गया?
20 दिसंबर 2024 को यानी आज से करीब 3 हफ्ते पहले दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया कि बीजेपी के राट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली में बसे पूर्वांचल समाज के लोगों की तुलना बांग्लादेशियों से की है. बीजेपी के लोग पूर्वांचल समाज के नाम कटवाने के लिए फॉर्म भरवा रहे हैं. उन्होंने इसे पूर्वांचल समाज के खिलाफ एक बड़ी साजिश करार दिया. इसके खिलाफ आम आदमी पार्टी दिल्ली में पूर्वांचलियों के सम्मान में संजय सिंह मैदान में अभियान चलाने की घोषणा की थी. पार्टी ने कहा था कि अभियान के दौरान लोगों को जेपी नड्डा का संसद में दिया गया भाषण दिखाया जाएगा और सांसद संजय सिंह कालोनियों में रात्रि प्रवास भी करेंगे. अरविंद केजरीवाल ने कहा, दिल्ली में 30-40 साल से बसे लोग, जो यूपी और बिहार से आए हैं, उन्हें 'रोहिंग्या' और 'बांग्लादेशी' कैसे कहा जा सकता है?
इस बयान के ठीक 20 दिन बाद गुरुवार को अरविंद केजरीवाल मुख्य चुनाव आयुक्त से मुलाकात के बाद कहते हैं कि 15 दिसंबर से 8 जनवरी तक 13 हजार नए वोट बनवाने के लिए आवेदन किए गए हैं. नई दिल्ली एक लाख वोटों की विधानसभा है, उसमें 13 हजार नए लोग कहां से आ गए. पिछले 15 दिनों में 13 हजार नए वोट बनवाने के लिए एप्लिकेशन किए गए हैं. इससे साफ होता है कि ये लोग यूपी, बिहार और आसपास के राज्यों से लोगों को लाकर फर्जी वोट बनवा रहे हैं. तो 13 हजार वो और साढ़े पांच हजार ये, साढ़े 18 प्रतिशत वोट अगर किसी विधानसभा से इधर से उधर कर दिए जाएंगे तो फिर चुनाव थोड़ी है. फिर तो सिर्फ तमाशा है.
केजरीवाल के इसी वीडियो के बाद हंगामा शुरू हुआ-
अरविंद केजरीवाल के कहने का मतलब बता रहा था कि जैसे पूर्वांचली समुदाय कहां से आ जाता है. और आ गया तो उन्हें तो वोट देगा नहीं. उनका भाव इस तरह से, जैसे ये लोग अनावश्यक हैं. जैसे हम इन्हें झेल रहे हों. चुनावी मौसम में बस इतना कहना ही काफी होता है. दूसरी पार्टी इसे लपकने के लिए तैयार बैठी होती है. जैसे जेपी नड्डा के रोहिंग्या वाले बयान को अरविंद केजरीवाल ने कैच किया, जैसे अमित शाह के संसद में दिए गए अंबेडकर वाले बयान को कांग्रेस ने कैच किया था. अब बारी बीजेपी की थी. जाहिर है कि बीजेपी तो इस खेल की मास्टर है. बीजेपी से ही सीखकर आज कांग्रेस और आप ने इस तरह की बातों पर सामने वाली पार्टी को घेरना सीखा है.
दिल्ली में जिस तरह पूर्वांचली वोटर्स को लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में मारा-मारी मची है उससे तो यही लगता है कि इस बार यहां किंग मेकर यूपी और बिहार के लोग ही हैं. पर अगर एक खास समुदाय पर फोकस बढ़ेगा तो जाहिर है कि दूसरे लोग उसके एंटी हो जाएंगे. फिर यूपी और बिहार के लोग तो दिल्ली हो या मुंबई सबकी आंखों में चुभते हैं.
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