दिनेश लाल निरहुआ के लिए आजमगढ़ की चुनौती आसान है या मुश्किल?
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निरहुआ और धर्मेंद्र यादव दूसरी बार आमने सामने हैं. 2022 के उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव को शिकस्त देने वाले निरहुआ के लिए लड़ाई आसान नहीं मानी जा रही है - निरहुआ को जहां मोदी-योगी का भरोसा है, वहीं धर्मेंद्र यादव को भाई अखिलेश यादव का - और कुछ हद तक गुड्डू जमाली के साथ आ जाने से भी जोश बढ़ा है.
आजमगढ़ लोकसभा सीट पर निरहुआ के लिए प्लस-पॉइंट यही है कि वो धर्मेंद्र यादव को 2022 के उपचुनाव में शिकस्त दे चुके हैं, लेकिन तब से लेकर अब तक हालात काफी बदल चुके हैं.
2019 के आम चुनाव से तुलना करें तो समाजवादी पार्टी का गठबंधन भी बदल चुका है. तब समाजवादी पार्टी का बीएसपी के साथ चुनावी गठबंधन था, लेकिन इस बार कांग्रेस के साथ गठबंधन INDIA ब्लॉक के बैनर तले हुआ है, जिसमें अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी शामिल है.
लेकिन दिनेश लाल निरहुआ के लिए समाजवादी पार्टी ने ऐसी घेरबंदी की है कि 2022 में बीजेपी सांसद की जीत पक्की करने के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले गुड्डू जमाली भी अब अखिलेश यादव के साथ हो गये हैं. पूर्व विधायक गुड्डू जमाली को मायावती ने 2022 के चुनाव में खड़ा किया था. 2014 में मुलायम सिंह से चुनाव हार चुके गुड्डू जमाली को 2019 में इसलिए मौका नहीं मिल पाया, क्योंकि गठबंधन के तहत आजमगढ़ से अखिलेश यादव खुद चुनाव मैदान में थे - और बीजेपी उम्मीदवार के रूप में निरहुआ को शिकस्त झेलनी पड़ी थी.
निरहुआ के सपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में भी रैली की थी, और इस बार भी 16 मई को आजमगढ़ पहुंचे थे, लेकिन यूपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं - और अपने अपने उम्मीदवारों के लिए मोदी-योगी से मुकाबले के लिए अखिलेश यादव भी पूरे परिवार के साथ इलाके में जमे हुए हैं.
निरहुआ के लिए कितनी बड़ी है 2024 की चुनौती
एक सवाल है कि गुड्डू जमाली यानी शाह आलम के बीएसपी छोड़ कर अखिलेश यादव के साथ चले जाने से निरहुआ को कितना नुकसान हो सकता है?
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