तेजप्रताप-तेजस्वी के सियासी कैरियर को संभालने में जुटे लालू यादव, जानिए कुर्सी की सेटिंग की कहानी
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राजद में सब कुछ सामान्य करने के लिए लालू यादव ने राजद विधानमंडल दल की बैठक में तेज प्रताप को करीब बैठाया, लेकिन तेजस्वी को दूर बैठाकर ही उन्हें एक बार फिर सियासी जिम्मेदारी सौंप दी.
बिहार में राजद को विरोधी दल प्राइवेट पार्टी का दर्जा देते हैं. लालू अपने अंदाज में विरोधियों को जवाब देते हैं. जमीन की सियासत करने वाले लालू यादव को पता है कि उनके बड़े बेटे तेज प्रताप पार्टी में सम्मान चाहते हैं. शायद इसीलिए जब राजद विधानमंडल दल की बैठक हुई, तो तेज प्रताप को करीब बैठाया, लेकिन तेजस्वी को दूर बैठाकर ही उन्हें एक बार फिर सियासी जिम्मेदारी सौंप दी. हालांकि इस बैठक में कई बड़े नेता उपस्थित नहीं रहे. वृषिण पटेल के साथ अब्दुलबारी सिद्दीकी बैठक में नहीं आए. लेकिन लालू ने अपने अंदाज में बैठक ली और पार्टी को तेजस्वी को लेकर स्पष्ट संदेश भी दे दिया.
जातीय जनगणना को लेकर बुलाई गई थी बैठक वैसे बैठक बिहार में चल रही जातीय जनगणना की चर्चा को लेकर बुलाई गई थी, लेकिन इस बैठक में लालू ने साफ कर दिया कि राजद की बागडोर पूरी तरह से तेजस्वी के हाथ में है. पूर्व मंत्री आलोक मेहता की ओर से लाए गए प्रस्ताव पर भी सभी ने सहमति दे दी. तेजस्वी के चेहरे पर राजद ने 2020 विधानसभा चुनाव में अच्छी खासी उपलब्धि हासिल की थी और राजद सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी.
बैठक में लालू के करीब बैठे तेज प्रताप तत्काल एक्टिव हो गए और सोशल मीडिया पर लिख डाला- 'दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पांच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम. हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे!, दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बांधने चला, जो था असाध्य, साधने चला. जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है.'
लालू ने दिया सियासी संदेश बैठक में लालू यादव पार्टी में बैलेंस करते दिखे. साथ ही दोनों बेटों की सियासी इच्छाओं को साधते भी दिखे. लालू के बायीं तरफ तेज प्रताप और तेज के बाद शिवानंद तिवारी बैठे. लालू की दायीं तरफ राबड़ी देवी बैठीं और उनकी बगल में कांति सिंह. उसके बाद रामचंद्र पूर्वे बैठे, फिर अवध विहारी सिंह के बाद तेजस्वी यादव.
बैठने की सेटिंग में भले तेजस्वी दूर बैठे, लेकिन सियासी रूप से पार्टी की कमान के काफी नजदीक दिखे. अब समझिए तेज प्रताप के इगो को ठंडा रखना लालू जानते हैं. वहीं तेजस्वी को कुर्सी दूर देकर लालू ने उन्हें सियासी रूप से परिपक्व होने का संदेश दे दिया. लालू को मालूम है कि तेजस्वी के लिए पार्टी के अंदर चुनौती कौन है. इसलिए लालू वैसे लोगों पर धीरे-धीरे सही राजनीतिक नियंत्रण चाहते हैं.
तेजस्वी पर जिम्मेदारी का बोझ हालांकि सियासी पंडित मानते हैं कि तेजस्वी के सिर पर लालू ने जिम्मेदारी का बोझ डाला है. तेजस्वी को पार्टी के अंदर विरोध के स्वर को दबाना होगा. ग्लैमरस छवि से निकलकर जमीन से जुड़ना होगा. आम लोगों के लिए सुलभ होने के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच पैठ बनानी होगी जैसे तेज प्रताप आम कार्यकर्ताओं के साथ करते हैं.
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